15 August Happy Independence Day History Speech in Hindi
आज हम आपको independence day speech in hindi में बताने वाले हैं 14 अगस्त की वो सच कहानी, जिसे हर एक भारतीय को जान लेना अति आवश्यक है| वो रात जिसने हमारे देश भारत की सोच, भविष्य, इतिहास और भूगोल हर चीज को बदलकर रख दिया| वो रात थी – आजादी की रात
14 – 15 August 1947 day की पूरी कहानी
Independence Day Speech in Hindi
15 august 1947 को दिल्ली के प्रिंसेस पार्क में, पांच लाख के जन सैलाब के सामने लहराया था हमारा भारतीय तिरंगा (Indian National Flag)
हिन्दुस्तानी ध्वज Indian National Flag को 15 august 1947 को सलामी दिए जाने की ऐतिहासिक घटना –
दुनिया और भारत की महत्वपूर्ण तारीख और भारत के जीवन में एक नया मोड़
जब 14 august 1947 की शाम लार्ड माउंट बेटन कराची से दिल्ली लौटे तो वो अपने हवाई जहाज से, मध्य पंजाब में आसमान की ओर जाते हुए काले धुएं को, साफ़ देख सकते थे | इस धुएं ने पंडित नेहरु के राजनैतिक जीवन के सबसे बड़े पल की चमक को, काफी हद तक धुंधला कर दिया था |
14 august की शाम जैसे ही सूर्य अस्त हुआ, दो सन्यासी एक कार में, जवाहरलाल नेहरु के 17 यार्क रोड स्थित घर के सामने आकर रुके | उनके हाथ में सफ़ेद सिल्क का पीताम्बरं, नदी का पवित्र पानी, भभूत और मद्रास के नटराज मंदिर में सुबह चढ़ाये जाने वाले पके हुए चावल थे |
जैसे ही नेहरु को उनके बारे में पता चला वो बाहर आ गए | सन्यासियों ने नेहरु जी को पीताम्बरं पहनाया, उनके ऊपर पवित्र पानी का छिड़काव किया और उनके माथे पर पवित्र भभूत लगाये | इस प्रकार की रस्मो का नेहरु जी, अपने पूरे जीवन विरोध करते आये थे | लेकिन उस दिन उन्होंने मुस्कुराते हुए सन्यासियों के हर अनुरोध को स्वीकार किया |
थोड़ी देर बाद अपने माथे पर लगे भभूत को धोकर पंडित नेहरु, इंदिरा गाँधी, फिरोज गांधी पद्मजा नायडू के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठे ही थे की बगल के कमरे में फ़ोन की घंटी बजने लगी| ट्रंक कॉल की लाइन इतनी बुरी थी की नेहरु ने फोन कर रहे शख्स से बोले की, उसने जो कुछ कहा उसे फिर से दोहराए |
लाहौर में हिन्दुओ और सिखों पर जुल्म (Independence Day Speech in Hindi)
पंडित नेहरु ने जब फ़ोन रखा तो उनका चेहरा सफ़ेद हो चुका था| वो एक शब्द भी नहीं बोल सके और उन्होंने अपना चेहरा अपने हाथों से ढँक लिया| जब उन्होंने अपना हाथ चेहरे से हटाया तब उनकी आँखे आंसुओ से भर चुकी थीं | इन्होने इंदिरा गाँधी को बताया की वो फ़ोन लाहौर से आया था |
वहां के नए प्रशासन ने हिन्दू और सिख इलाकों में पानी के आपूर्ति बंद कर दी थी | लोग प्यास से तड़प रहे थे | जो औरतें और बच्चे पानी की खोज में बाहर निकल रहे थे, उन्हें चुन चुनकर मारा जा रहा था | लोग तलवारे लिए रेलवे स्टेशन पर घूम रहे थे | ताकि वहां से भागने वाले हिन्दुओं और सिखों को मारा जा सके |
फ़ोन करने वाले ने नेहरु को बताया की, लाहौर की गलियों में आग लगी हुई थी | नेहरु ने लगभग फुसफुसाते हुए कहा – मैं आज कैसे देश को संबोधित कर पाउँगा ? मैं ये कैसे जता पाउँगा की देश की आजादी पर मैं खुश हूँ ? जबकि मुझे पता है की मेरा खूबसूरत लाहौर जल रहा है |
इंदिरा गाँधी ने अपने पिता को दिलासा देने की कोशिश की | आप अपने भाषण पर ध्यान दीजिये जो आज रात आपको देश के सामने देना है लेकिन नेहरु का मूड उखड़ चुका था | संसद के सेंट्रल हॉल में ठीक 11 बजकर 55 मिनट पर, नेहरु की आवाज गूंजी |
कई सालों के पूर्व हमने भाग्य से एक वायदा करा था| वो पल अब आ गया है की हम अपने वायदे को निभा सकें | शायद सम्पूर्ण रूप से तो नहीं लेकिन काफी हद तक अवश्य| अर्ध रात्रि के वक़्त, जब पूरी दुनिया सो रही है, भारत स्वतंत्रता की सांस ले रहा है |
14 august की रात 12 बजे, संसद में तिरंगे को लहराया गया (Independence Day Speech in Hindi)
अगले दिन अखबारों में छपने के लिए, नेहरु ने अपने भाषण में दो लाइन अलग से जोड़े| उन्होंने कहा – हमारे ध्यान में वो भाई और बहन भी हैं जो राजनैतिक सीमाओं की वजह से हमसे अलग थलग पड़ गए हैं और वो आजादी की खुशियाँ नहीं मना सकते जो आज हमारे पास आई है |वो लोग भी हमारे हिस्से हैं और हमेशा हमारे ही रहेंगे चाहे कुछ भी हो |
जैसे ही घड़ी में रात के 12 बजे, शंख बजने लगे , वहां उपस्थित लोगों की आँखों आंसू बहने लगे और महात्मा गांधी के जयकारे के नारों से सेंट्रल हॉल गूँज गया | सुचेता कृपलानी ने, जो साठ के दशक में, उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी, पहले इक़बाल का गीत – सारे जहाँ से अच्छा और फिर बंकिम चन्द्र चटर्जी का वंदेमातरम् गाया जो भारत का राष्ट्रगीत बना बाद में |
सदन के अन्दर सूट पहने हुए एंग्लो इंडियन नेता फ्रैंक एंटनी ने दौड़कर, जवाहरलाल नेहरु को गले लगा लिया | संसद के बाहर मूसलाधार बारिश में, लाखों भारतीय इस बेला का इंतज़ार कर रहे थे |
जैसे ही पंडित नेहरु संसद भवन के बाहर निकले, मानो हर कोई उन्हें पकड़ लेना चाहता हो | सत्रह साल के इन्दर मल्होत्रा भी, उस पल की नाटकीयता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके थे | जैसे ही घड़ी में रात के 12 बजे, उन्हें ये देखकर ताज्जुब हुआ की दूसरे लोगों की तरह ही उनकी आँखे भी भर आईं थीं |
उस समय वहां पर मशहूर लेखक खुशवंत सिंह भी मौजूद थे | वो अपना सब कुछ छोड़कर लाहौर से दिल्ली पहुँचे थे | उन्होंने बीबीसी से बताया था की हम सब रो रहे थे और अनजान लोग ख़ुशी से एक दूसरे को गले लगा रहे थे |
लार्ड माउन्टबेटन को पहला गवर्नर जनरल बनाये जाने की सहमति
आधी रात के थोड़ी देर बाद जवाहरलाल नेहरु और राजेंद्र प्रसाद, लार्ड माउन्ट बेटन को औपचारिक रूप से, भारत का पहला गवर्नर जनरल बनने का आमंत्रण देने पहुँचे | माउन्ट बेटन ने उनको अनुरोध स्वीकार कर लिया | उन्होंने पोर्ट वाइन की एक बोतल निकाली और अपने हाथ से, अपने मेहमानों के गिलास भरे | फिर अपना गिलास भरकर उन्होंने अपना हाथ ऊँचा किया और कहा – टू इंडिया
एक घूँट लेने के बाद नेहरु ने माउन्ट बेटन की ओर अपना गिलास ऊपर करके कहा – किंग जॉर्ज षष्टम के लिए | नेहरु ने उन्हें एक लिफाफा दिया और कहा की इनमे उन मंत्रियों के नाम है जिनको कल शपथ लेना है| नेहरु और राजेंद्र प्रसाद के जाने के बाद, जब माउन्ट बेटन ने उस लिफाफे को खोला तो वो हंस पड़े क्योंकि वो लिफाफा खाली था| जल्दबाजी में नेहरु उसमे मंत्रियों के नाम वाला कागज रखना ही भूल गए थे |
15 august 1947 सुबह आठ बजे पहले मंत्रियो को शपथ दिलाई गई और उसके बाद लार्ड माउन्ट बेटन को | शाम को दिल्ली की सड़कों पर, लोगो का हुजूम दिखाई देने लगा था | शाम 5 बजे, इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क में माउन्ट बेटन को भारत का तिरंगा झंडा लहराना था | उनके सलाहकारों का मानना था की वहां तक़रीबन तीस हज़ार लोगों का आना होगा | लेकिन वहां अब तक पांच लाख लोग एकत्र हो चुके थे | भारत में तब तक एक स्थान पर इतने लोग कभी नहीं इकठ्ठा हुए थे |
आजादी के दिन दिल्ली में उमड़ा था जन सैलाब
उस समय वहां मौजूद बीबीसी संवाददाता विनफर्ड वान टॉमस ने अपनी पूरी जिंदगी में इतनी ज्यादा लोगों की भीड़ कभी नहीं देख सके थे | माउन्ट बेटन के रथ के चारो ओर लोगों का इतना ज्यादा हुजूम था की वो उससे नीचे उतरने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे | चारो तरफ फैले इस अपार जन समूह ने झंडे के खम्भे के पास बनाये गए छोटे से मंच को अपनी लपेट में ले लिया था. Independence Day Speech in Hindi
15 august 1947 को भीड़ को रोकने के लिए लगाये गए बैरिअर, बैंड वालों के लिए बनाये गए मंच, बड़ी मेहनत से बनाई, विशिष्ट अतिथियों की दर्शक दीर्घा और रास्ते के दोनों तरफ बंधी रस्सियाँ, हर चीज इस जन सैलाब की प्रबल धारा में बह गई थी |
फ्रिलिप टालबोट अपनी किताब An American witness to India’s Partition में लिखा है – भीड़ का दबाव इतना अधिक था की उससे पीसकर माउन्ट बेटन के एक अंगरक्षक का घोड़ा जमीन पर गिर पड़ा | सबके उस समय जान में जान आई जब वो थोड़ी देर में खुद ब खुद उठकर चलने लगा |
माउन्ट बेटन के सत्रह साल की बेटी पामेला भी, दो लोगों के साथ उस समारोह को देखने पहुंची थी | नेहरु ने पामेला को देखा और चिल्लाकर कहा की – लोगों के ऊपर से फांदती हुई मंच पर आ जाओ | पामेला भी चिल्लाई – मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ ? मैंने ऊंची हील की सैंडिल पहन रखी है | नेहरु ने कहा – सैंडिल को हाथ में लो | पामेला इतने ऐतिहासिक अवसर पर, ये सब करने के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकती थी |
माउन्ट बेटन की पुत्री ने अपनी किताब में किया जिक्र
अपनी किताब India Remembered में पामेला लिखती हैं – मैंने अपने हाथ खड़े कर दिए, मैं सैंडिल नहीं उतार सकती थी | नेहरु ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा – तुम सैंडिल पहने पहने ही लोगों के सिर के ऊपर पैर रखते हुए आगे बढ़ो | ये बिलकुल भी बुरा नहीं मानेंगे | मैंने कहा – मेरी हील उन्हें चुभेगी | नेहरु फिर बोले, बेवकूफ लड़की सैंडिल को हाथ में लो और आगे बढ़ो | पहले नेहरु लोगों के सिर पर पैर रखते हुए मंच पर पहुँचे फिर उनकी देखा देखी, भारत के अंतिम वायसराय की लड़की ने अपनी सैंडिल को उतारकर अपने हाथों में लिया और इंसानों के सिरों की कालीन पर पैर रखते हुए मंच पर पहुँच गई |
जहाँ सरदार पटेल की बेटी मणिबेन पटेल पहले से ही मौजूद थीं
Dominique Lapierre और Larry Collins अपनी किताब Freedom at Midnight में लिखते हैं – मंच के चारो ओर उमड़ते हुए इंसानों के उस सैलाब में ऐसी औरतें भी थी जो अपने दूध पीते बच्चों को सीने से लगाये हुए थीं |
इस डर से कहीं उनके बच्चे बढ़ती हुई भीड़ में पिस में न जायें | जान पर खेलकर वो उन्हें, रबड़ की गेंद की तरह, हवा में उछाल देती, जब वो नीचे गिरने लगते तो फिर उन्हें हवा में उछाल देती |
एक ही समय में, हवा में ऐसे लाखों बच्चों को उछाल दिया गया| पामेला माउन्टबेटन की पूरी तरह से हैरान हो गई थी और वो सोचने लगी ‘ हे ईश्वर, इस स्थान पर तो बच्चों की बारिश हो रही है | जबकि दूसरी तरफ, अपने रथ में बंदी माउन्टबेटन, नीचे उतरने में सक्षम नहीं थे| उन्होंने वहीँ से चिल्लाकर नेहरु से कहा – बैंड वाले फील्ड के बीच में खो गएँ हैं | तिरंगे Indian National Flag को फहराया जाए |
माउन्ट बेटन के आदेश पर फहराया गया था तिरंगा
15 august 1947 को वहाँ पर बैंड के चारो लोग इतने लोग जमा थे की वो अपने हाथ तक को न हिला सके | मंच पर उपस्थित लोगों ने सौभाग्य से माउन्ट बेटन की आवाज सुन ली और तिरंगे को लहरा दिया गया और लाखों लोगों से घिरे माउन्ट बेटन ने अपनी बग्घी से ही खड़े खड़े, तिरंगे Indian National Flag को सलामी दिया|
लोगों के मुंह से आवाज निकली माउन्ट बेटन की जय, पंडित माउन्ट बेटन की जय | भारत के पूरे इतिहास में इससे पहले किसी दूसरे अंग्रेज को ये सौभाग्य हासिल नहीं हुआ था की वो लोगों को इतनी दिली भावना के साथ, ये नारा लगाते हुए सुने | उस दिन उन्हें वो चीज मिली जो न तो उनकी पर नानी रानी विक्टोरिया को हासिल हो सकी थी और न ही उनकी किसी और औलाद को |
ये माउन्ट बेटन की कामयाबी को भारत की जनता का समर्थन था | उस मधुर क्षण के उल्लास में, भारत के लोग प्लासी का युद्ध, सन 1857 का अत्याचार, जलियावाला बाग़ की खूनी दास्तान हर चीज भूल चुके थे |
जैसे ही झंडा ऊपर गया उसके ठीक पीछे, एक इन्द्रधनुष आसमान में उभर आया| मानो प्रकृति ने भी भारत की आजादी के दिन का स्वागत करने और उसे और रंगीन बनाने की ठान रखी हो |
वहाँ से अपनी बग्घी से गवर्मेंट हाउस लौटते हुए माउन्ट बेटन सोच रहे थे की सब कुछ मानो ऐसा लग रहा है जैसे लाखों लोग एक साथ पिकनिक मनाने निकले हों और उनमे से हर एक को इतना आनंद आ रहा हो जितना जीवन में, पहले कभी नहीं आया था |
माउन्ट बेटन ने कुछ महिलाओं को दी अपनी बग्घी में बैठने की सीट
इस बीच माउन्ट बेटन ने उन तीन औरतों को अपनी बग्घी में बैठा लिया जो बहुत बुरी तरह से थक चुकीं थीं और उनकी बग्घी के पहिये के नीचे आते आते बचीं थीं | वो औरतें काले चमड़े से मढ़ी हुई सीट पर बैठ गईं जिनकी गद्दियाँ इंग्लैंड के राजा और रानी के बैठने के लिए बनाई गईं थीं | उसी बग्घी में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु भी थे | जवाहर लाल नेहरु बग्घी के हुड पर बैठे थे क्योंकि उनके बैठने के लिए बग्घी में सीट ही नहीं बची थी |
दिल्ली में 14 अगस्त की शाम से ही, जोरदार बारिश हो रही थी| रात के 9 बजते बजते रायसीना हिल्स पर, तक़रीबन पांच लाख लोगो का जमावड़ा हो चुका था| बारिश अभी भी जारी थी| रात को लगभग 10 बजे जवाहरलाल नेहरु, सरदार बल्लभ भाई पटेल, डॉ राजेंद्र प्रसाद और माउन्ट बेटन वायसराय हाउस पहुँचे|
14 अगस्त 1947 की रात, 12 बजने में कुछ ही मिनट शेष थे तब पंडित जवाहरलाल नेहरु ने दो लाइन बोलकर, अपना भाषण देना शुरू किया|
कुछ ही क्षणों के बाद 12 बज गए और 15 august का ये दिन, भारत के लिए खुशियों की सौगात लेकर आया| 190 सालों की, अंग्रेजो की पराधीनता से हमारा देश भारत आजाद हुआ था| लेकिन इन खुशियों के साथ साथ, गम भी कम नहीं था| क्योंकि भारत ने अपना 3 लाख छियालीस हजार सात सौ सैंतीस वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल और करीबन आठ करोड़ 15 लाख लोग, एक ही रात्रि में खो चुका था |
भारत अब दो दुकड़ों में बंट चुका था – हिंदुस्तान और पाकिस्तान
हिंदुस्तान इतनी आसानी से स्वतंत्र नहीं हुआ| 15 august 1947 day के बहुत पहले ही, अंग्रेजों के शासन का अंत शुरू हो चुका था| राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के जन आन्दोलन से, देश में नई क्रांति का आरम्भ हो चुका था|
दूसरी ओर सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फ़ौज ने, अंग्रेजों का रहना दुश्वार कर दिया था| इसके साथ ही दूसरे विश्व युद्ध के बाद, अंग्रेजी हुकूमत में इतना दम भी नहीं रह गया था की वो हिंदुस्तान पर अब हुकूमत जमा सके|
इसी वजह से माउन्ट बेटन को भारत में, आखिरी वायसराय चुना गया था| ताकि हिंदुस्तान को बिलकुल आधिकारिक तरीके से, आजादी दी जा सके|
अंग्रेजों ने शुरुवात में, 3 जून साल 1948 को, भारत को आजादी देने की घोषणा किया था लेकिन मुहम्मद अली जिन्ना ने, पाकिस्तान नामक एक अलग देश बनाने की जिद पर अड़ गए थे| जिसकी वजह से देश को कई जगह सांप्रदायिक मतभेद भी देखने पड़े|
इस ख़राब होती परिस्थितियों के बीच, अंग्रेज भारत को जल्द ही स्वतंत्र देश घोषित कर देना चाहते थे| क्योंकि अंग्रेज भी भारत को दो टुकड़ों में बांटना चाहते थे|
स्वतंत्रता के लिए दिन 15 august 1947 day को ही क्यों चुना गया ?
इसके पीछे की वजह है की, हम भारतीय ही शुभ अशुभ को नहीं मानते थे बल्कि अंग्रेज भी शुभ अशुभ में विश्वास रखते थे| माउन्ट बेटन मानता था की 15 अगस्त का दिन शुभ है क्योंकि 15 august 1945 के दिन ही जापान ने, इनकी शरण ली थी| और इसके लिए आधिकारिक हस्ताक्षर 2 सितम्बर को हुए थे|
इसलिए 15 august 1947 day, इनके लिए शुभ था |
फिर रात 12 बजे के समय को क्यों निर्धारित किया गया ?
इसके लिए हिन्दुस्तानी ज्योतिष विशेषज्ञों का मानना था की रात 12 बजे का समय, देश की आजादी के लिए शुभ समय है| ये तय हुआ था की जवाहरलाल नेहरु को अपना भाषण, रात के 12 बजने के पहले ही, ख़त्म कर देना है|
और रात के 12 बजे, शंखनाद के साथ भारतीय लोकतंत्र की शुरुवात होगी, सबकुछ वैसा ही हुआ | 15 august 1947 की सुबह आठ बजकर तीस मिनट पर, पंडित नेहरु और उनके कैबिनेट ने अपने पद और गोपनीयता की शपथ ली| रात की निरंतर वर्षा के बाद, सुबह का आसमान पूरी तरह से साफ़ था|
लोग बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे, स्वतंत्र भारत के तिरंगे Indian National Flag को लहराते हुए अपनी आँखों से देखने के लिए| रात के 12 बजे ही सबसे पहले पंडित नेहरु ने, संसद भवन के सेंट्रल हॉल में, तिरंगे को लहरा दिया था| और दूसरी बार 15 august 1947 को, सुबह 8:30 a.m. पर विशाल तिरंगे को, जनता के समक्ष दिल्ली के प्रिंसेस पार्क में ब्रिटिश झंडे को उतारकर लहरा दिया गया था|
देश वासियों के आँखों में ख़ुशी के आंसू छलक पड़े थे| आजादी के बाद 15 august के दिन ही, एक साथ, अंग्रेजो ने भारत को नहीं छोड़ा| आजादी के बाद भी, भारत के कुछ शीर्ष अफसर, अंग्रेज ही रहे| 1500 की संख्या में अंग्रेज सैनिकों की पहली टीम, 17 august 1947 को अपने देश रवाना हुई| वहीँ आखिरी टीम 27 अगस्त 1948 के दिन, भारत को अलविदा बोली|
बैंड बाजों के साथ अंग्रेजों की भारत से विदाई
दोस्तों चौंकाने वाली बात ये की लुटेरे अंग्रेज जैसे हमारे देश में अतिथि बनकर आये हो, इस तरह से उनको विदा किया गया| उनकी आखिरी फ़ौज जब मुंबई के बंदरगाह से विदाई ली तब जॉर्ज पंचम को विदाई देने वाला गाना, बैंड बाजों के साथ बजाया गया|
स्वतंत्रता के 190 वर्ष पहले भी अमीरचंद और मीर जाफर ने रोबर्ट क्लाईव का ऐसे ही सम्मान के साथ वेलकम किया था और फिर हुआ प्लासी का युद्ध और आगे 190 साल की पराधीनता|
फिर भी हम हिन्दुस्तानियों ने अपनी आदत नहीं बदला, अतिथि देवो भवः को हमने आज भी नहीं छोड़ा चाहे वो अतिथि वास्तव में देव तुल्य हो या हमें लूटने आया हो|
दोस्तों आज के लिए बस इतना ही, और देश के आजादी की इस सच कहानी को अधिक से अधिक भारतियों तक पहुँचाना आपका कर्त्तव्य है|और हो सके कमेंट भी अवश्य करिए|