हैप्पी महाशिवरात्रि की कहानी व्रत कथा

Happy Mahashivratri ki kahani vrat katha in hindi

दोस्तों अधिकतर लोगों को यही पता है की महाशिवरात्रि का त्यौहार भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है| Happy Mahashivratri ki Kahani Vrat Katha in Hindi.

परन्तु कुछ विद्वानों का मानना है की शिवरात्रि के दिन ही भगवान् भोलेनाथ ने काल कूट नाम का विषपान करा था| जिसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी|

लेकिन शिव पुराण नामक ग्रन्थ में एक कहानी का जिक्र किया गया है| इस आर्टिकल में आज हम आपको शिव पुराण में लिखित महाशिवरात्रि की कहानी पेश करने जा रहें हैं|

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आध्यात्मिक कहानी महाशिव रात्रि की व्रत कथा 

ग्रन्थ शिव पुराण में वर्णित एक भील की कथा 

शिव पुराण के कोटिरूद्र संहिता में लिखित कहानी के अनुसार, प्राचीन समय में एक जंगल में एक भील रहा करता था| उस भील का नाम गुरुदुरुह था| उसके परिवार में कई सदस्य थे | गुरु दुरूह बलशाली और क्रूर स्वभाव का था | क्रूर स्वाभाव के कारण उसके कर्म भी क्रूरतापूर्ण हुआ करते थे |

वो हर रोज जंगल में जाकर जंगली जानवरों को मारा करता था| और आस पास के स्थानों पर चोरी जैसे बुरे कामो को करना भी उसे बहुत पसंद था | उसने अपनी जिन्दगी के शुरुवात यानि बचपन से ही कोई अच्छे काम नहीं किया था |

और इसी तरह जंगल में रहते हुए उस दुरात्मा भील का बहुत वक़्त बीत चुका था| ऐसे में एक दिन बहुत शुभ और सुन्दर शिवरात्रि वाली रात आई|

वो दुरात्मा भील क्योंकि घने जंगल का निवासी था इसलिए उसे महाशिवरात्रि के महत्त्व और शिवरात्रि व्रत के बारे में तनिक भी ज्ञान नहीं था|

उसी दिन उस दुरात्मा भील के माता पिता, पत्नी और बच्चे भूख से अत्यधिक व्याकुल होने की वजह से, भोजन की मांग कर रहे थे| अपने परिवार के बारम्बार निवेदन पर वो भील अपना धनुष बाण लिया और वन की ओर चल पड़ा| वन में हिरन का शिकार करने के लिए इधर उधर घूमने लगा|

दुर्भाग्य से उस दिन उसे कोई शिकार नहीं मिला| सूर्यास्त होने के कारण उसे बहुत कष्ट हुआ| वो अब सोच रहा था की अब मैं क्या करूँ कहाँ जाउँ? घर में बच्चे माता पिता पत्नी बहुत भूखें हैं उनका क्या होगा अब ? इसलिए मुझे उनके खाने के लिए जरूर कुछ न कुछ लेकर घर जाना चाहिए|

Happy Mahashivratri ki Kahani Vrat Katha

भील रात्रि हो जाने पर भूख से हुआ व्याकुल 

ये सोचते हुए वो क्रूर शिकारी एक तालाब किनारे पहुँचा| तालाब में पानी में उतरने का घाट भी बना हुआ था, वहाँ पहुँचते ही रुक गया और उसके मन में अब ये विचार आया की – यहाँ जरुर कोई न कोई जानवर अपनी प्यास मिटाने जरूर आएगा|

उसी को मारकर और अपने साथ लेकर ख़ुशी से घर को जाउँगा| ऐसा निर्णय करके वो भील एक पेड़ पर चढ़कर,, पेड़ की एक डाल पर पानी कवंडल में लेकर बैठ गया| भील को भी अब भूख सताने लगी थी|

उस समय उसके मन में बस एक चिंता थी की कब कोई जानवर यहाँ आएगा और कब मैं उसे मारकर घर जाउँगा खाना लेकर| इसी इंतज़ार में वो भूख से व्याकुल भील उस पेड़ पर बैठा रहा |

और इस तरह अब रात भी हो चुकी थी और जब रात्रि की पहली पहर शुरू हुई तो प्यास से व्याकुल एक हिरनी उस तालाब के पास आई| उस हिरनी को देखते ही वो भील अत्यंत खुश हुआ| तुरंत ही उसने उस हिरनी के शिकार के लिए अपने धनुष पर एक तीर को चढ़ाना चाहा और ऐसा करते समय उसके हाथ के ठोकर से थोड़ा सा पानी और कुछ बेल के पत्ते नीचे स्थित शिवलिंग पर गिर गए|

शिवरात्रि के पहले पहर की पूजा 

shivling ka pic

उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थित था जिसके बारे में उस भील को नहीं पता था| इस तरह पानी और बेल के पत्ते से भगवान् शंकर की पहली बेला की पूजा पूर्ण हो गई| और उस पूजा के महात्म्य से भील के ढेरों पाप फ़ौरन नष्ट हो गए|

उधर हिरनी इस खड़खड़ाहट की आवाज सुनकर डर से भयभीत ऊपर की तरफ देखने लगी| भील को देखते ही वो व्याकुल होकर कहने लगी, भील तुम करना क्या चाहते हो ? मुझे अभी सही सही बताओ|

शिकारी और हिरनी का प्रश्नोत्तर 

हिरनी की बात सुनकर भील बोला- आज मेरा परिवार बहुत भूखा है| इसलिए मैं तुम्हारा शिकार करके, अपने परिवार के सदस्यों लिए भोजन का प्रबंध करूँगा| और उन्हें तृप्ति प्रदान करूँगा|

भील का ऐसा कठोर कथन सुनकर और उस भील को अपनी तरफ बाण साधे देखकर, हिरनी सोचने लगी की अब क्या करूँ मैं ? कहाँ जाउँ?

कोई उपाय करतीं हूँ ऐसा विचार करके हिरनी बोल पड़ीं – मेरे मांस से तुमको सुख मिलेगा| इस विनाशकारी देह के लिए, इससे ज्यादा उपर्युक्त काम क्या होगा ? एक परोपकारी मनुष्य को इस पृथ्वी पर जो पुण्य प्राप्त होता है| उसको सौ सालों में भी बयां नहीं किया जा सकता है|

लेकिन इस वक़्त मेरी संताने मेरे आश्रम में ही हैं| मैं उन सभी को अपनी बहन या स्वामी को सौंपकर, यहाँ वापस आ जाउंगी| हे भील तुम मेरे द्वारा कही गई इस बात को झूठ न समझो, मैं वापस जरुर आउंगी|

क्यों सत्य के बलबूते ये पृथ्वी चलायमान है| सत्य से समुन्दर की मर्यादा निर्मित है और सत्य के दम पर ही झरनों से निर्मल धारा बहती रहती है| सत्य में सब कुछ समाहित है|

हिरनी के ये सब कुछ बोलने पर भी जब भील उसकी बात से सहमत नहीं हुआ तब अत्यंत डर से व्याकुल होकर हिरनी बोली – सुनो मैं तुम्हारे समक्ष शपथ लेती हूँ जिससे हटने पर मैं अवश्य तुम्हारे पास वापस लौट आउंगी|

Happy Mahashivratri ki Kahani Vrat Katha

हिरणी की शपथ 

ब्राह्मण अगर वेद की बिक्री करे और तीनों पहर संध्या वंदना न करे तो उसे जो पाप लगता है| अपने पति की आज्ञा न मानकर अपने इच्छापूर्वक काम करने वाली औरत को जिस पाप की प्राप्ति होती है| किये गए एहसान को न मानने वाले, शिव शंकर को न मानने वाले, छल और विश्वासघात करने वालों को जो पाप हासिल होता है, उसी पाप से मैं भी ग्रसित हो जाऊ, अगर लौटकर तुम्हारे पास वापस न आउं|

इस प्रकार कई शपथों को लेने के बाद हिरनी जब शांत होकर खड़ी हो गई तब भील शिकारी ने उस पर विश्वास करते हुए बोला – अच्छा तुम अब अपने घर जाओ|

और अब हिरनी जलाशय से पानी पीकर बहुत ही ख़ुशी के साथ अपने घर को पहुँची तो इतने में रात की वो पहली बेला, भील के जागते जागते ही बीत गई|

इसके बाद उस हिरनी की बहन, दूसरी हिरनी जिसको पहली हिरनी ने याद किया था, उसी का रास्ता देखते हुए पानी पीने जलाशय किनारे पहुँची| उस नई हिरनी को देखकर भील ने फिर से बाण को धनुष पर चढ़ाने की कोशिश किया| और ऐसा करते समय फिर से पहले की तरह पेड़ के नीचे शिवलिंग पर जल और बेल के पत्ते गिरे|

भगवान शंकर की दूसरी बेला की पूजा 

इस तरह भगवान शंकर की दूसरी बेला का पूजन भी संपन्न हो गया| जबकि ये पूजा सिर्फ अनजाने में हो रही थी तो भी भील के लिए सुखकारी साबित हो रही थी|

ऐसे में हिरनी ने भील को अपने तरफ तीर खींचते हुए देखा और पूछा – वन्य प्राणी ये क्या कर रहे हो ?

भील ने पहले की तरह ही उत्तर दिया- मैं अपने भूखे परिवार वालों की तृप्ति के लिए तुम्हे मारने जा रहा हूँ| ये सुनने के बाद वो हिरनी बोल पड़ी – मेरा ये शरीर धन्य हो जायेगा तुम्हारे इस काम से| लेकिन मेरे छोटे छोटे बच्चे घर पर मेरी प्रतीक्षा कर रहें हैं| इसलिए यहाँ से जाकर उन्हें मैं अपने स्वामी को सौंप दूं फिर तुम्हारे पास आपस आ जाउंगी|

Happy Mahashivratri ki Kahani Vrat Katha

भील को हिरणी पर विश्वास न हुआ 

हिरनी की बातें सुनकर भील बोला, मुझे तुम पर विश्वास नहीं हो पायेगा| मैं तुम्हे अपना शिकार बनाऊंगा इसमें तनिक भी संदेह नहीं है |

दूसरी हिरनी ने भी ली शपथ 

उस शिकारी की बाते सुनकर हिरनी प्रभु श्री हरी विष्णु की शपथ लेकर बोली – व्याध जो कुछ मैं कह रही हूँ उसे तुम ध्यान से सुनो- अगर मैं लौट कर वापस न आऊ यहाँ तो अपना सारा पुण्य खो बैठूंगी| क्योंकि जो भी वचन देता है और अपने वचन से मुकर जाता है वो अपने सारे पुण्य खो बैठता है|

जो पुरुष अपनी विवाहिता पत्नी को छोड़कर किसी दूसरी औरत के पास जाता है| वैदिक धर्म का उल्लंघन करके कुधर्म के मार्ग पर चलता है| भगवान् विष्णु का भक्त होते हुए भी, भोलेनाथ की निंदा में रहता है| माँ बाप की मृत्यु की तारीख पर श्राद्ध वगैरह न करके, उसे यूँ ही गुजार देता है और मन ही मन दुःख का अनुभव करते हुए अपने द्वारा दिए गए वचन को पूर्ण करता है ऐसे लोग को जिस पाप की प्राप्ति होती है वही मुझे भी हासिल हो अगर मैं यहाँ वापस लौटकर तुम्हारे पास न आऊ|

हिरनी द्वारा ऐसा कहे जाने पर भील ने कहा- जाओ| उसके बाद हिरनी जलाशय का पानी पीकर ख़ुशी से अपने आश्रम को चली गई| इतनी देर में रात की दूसरी बेला भी भील के जागते जागते ही गुजर गई|

तीसरी बेला की शुरवात में आया हिरन  

इसके बाद रात का तीसरा पहर शुरू हो जाने पर हिरनी के लौटने में बहुत देर होता देख अब भील उसकी खोज में लग गया| और तभी उसने पानी के रास्ते की तरफ एक हिरन को देखा, वो हिरन काफी मोटा तगड़ा था| ऐसा देखकर ब्याध एक बार फिर अत्यंत प्रसन्न हुआ और धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कोशिश किया| ऐसा करते वक़्त फिर से एक बार कुछ जल और बेल के पत्ते नीचे शिवलिंग पर गिर गए|

Happy Mahashivratri ki Kahani Vrat Katha

प्रभु शिव की तीसरी बेला की पूजा 

इस कारण उसके सौभाग्य से भगवान शंकर की तीसरी बेला की पूजा भी पूरी हो गई| इस तरह भगवान ने उस भील पर अपनी दया की दृष्टि डाली| पत्तों और जल के गिरने की आवाज को सुनकर उस हिरन ने ऊपर की ओर देखा और व्याध से बोला की – क्या करने वाले हो ? भील ने कहा की मैं अपने भूखे घर वालों को भोजन देने के लिए तुम्हे मारूंगा|

भील की ये बातें सुनकर हिरन का मन ख़ुशी से भर गया और तुरंत बोला – मैं धन्य हो गया| मेरे शरीर का हष्ट पुष्ट होना आज सफल हो जायेगा क्योंकि मेरे इस देह से आपके परिवार वालों की तृप्ति होगी| जिसकी देह परोपकार के काम नहीं आती उसका सब कुछ व्यर्थ हो जाता है| जो सामर्थ्य के रहते हुए भी परोपकारी नहीं बनता उसकी वो सामर्थ्य भी व्यर्थ हो जाती है और वो परलोक में नरक को प्राप्त होता है|

लेकिन एक बार मुझे यहाँ से जाने दो| मैं अपने बच्चों को उनकी माँ के हवाले करके और उन सबको धैर्य धारण कराकर यहाँ पुनः आ जाउँगा| ये सुनकर वो भील अपने मन में बहुत ही चकित हुआ| उसका ह्रदय अब पवित्र हो चुका था और उसके सारे पाप ख़त्म हो चुके थे|

उसने हिरन से कहा जो भी यहाँ पहुँचा वो सारे तुम्हारे जैसे ही बहाने बनाकर यहाँ से निकल गए लेकिन अभी तक कोई नहीं लौटा| हिरन तुम भी अभी समस्या में हो इस वजह से झूठ बोलकर यहाँ से चले जाओ| फिर आज हमारा और हमारे परिवार का जीवन निर्वाह कैसे हो सकेगा?

हिरण का शिकारी को जवाब 

व्याध की बातों का जवाब देते हए हिरन बोला – हे भील मैं जो कुछ भी कहता हूँ उसे ध्यान से सुनना – मुझमे में असत्य तनिक भी नहीं है| ये सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड सिर्फ सत्य से टिका हुआ है| जिसकी वाणी से असत्य बोला जाता है उसका सम्पूर्ण पुण्य तुरंत ही समाप्त हो जाता है|

और हे भील तुम मेरी सच्ची प्रतिज्ञा सुन लो- संध्या के समय मैथून और शिवरात्रि के दिन खाना खाने से जो पाप मिलता है| झूठी गवाही देने और धरोहर को हड़पने से जिस पाप की प्राप्ति होती है और संध्या न करने से द्विज को जो पाप हासिल होता है| उसी पाप से मैं भी ग्रस्त हो जाऊ अगर मैं यहाँ वापस न लौटूं|

जिसके मुंह से कभी भगवान शिव का नाम उच्चरित नहीं होता| जो सामर्थ्य के बावजूद दूसरों की सहायता नहीं करता| त्यौहार के दिन श्री फल तोड़ता और न खाने वाली चीज का भक्षण करता और शंकर भगवान की पूजा किये बगैर और भस्म लगाये बिना ही खाना खा लेता है| इन सबका पाप मुझे मिले अगर मैं लौटकर वापस न आऊ|

हिरन के ये सब कहने पर भील बोला- जाओ और जल्दी लौटना| व्याध के ऐसा कहने पर हिरन पानी पीकर वहाँ से चला गया|

आश्रम पहुँचकर तीनो ने की अपनी प्रतिज्ञा पर वार्तालाप 

इसके बाद दोनों हिरनी और हिरन अपने आश्रम पर मिले| वे तीनो अब प्रतिज्ञाबद्ध  हो चुके थे| आपस में तीनो ने एक दूसरे की बात सुनकर सत्य के बंधन में बंधे हुए सबने यही निर्णय लिया की उन्हें वापस वहाँ जरूर जाना चाहिए|

ऐसा फैसला लेने के बाद वहाँ अपने बच्चों को सांत्वना देकर तीनो जाने के लिए उत्सुक हो गए| उस समय बड़ी हिरनी ने अपने स्वामी से कहा- स्वामी आपके बिना यहाँ बच्चों का क्या होगा? स्वामी मैंने ही वहाँ पहले जाकर प्रतिज्ञा ली है इसलिए वहाँ सिर्फ मुझे जाना चाहिए| आप दोनों को यहीं रहना होगा|

बड़ी हिरनी की बात सुनकर छोटी हिरनी ने कहा- बहन मैं तुम्हारी सेविका हूँ इसलिए सबसे पहले मैं उस भील के पास जा रही हूँ तुम यहीं ठहरो| ये सब सुनकर हिरन बोला- मैं ही वहाँ जा रहा हूँ तुम दोनों यहीं रुको क्योंकि संतान की रक्षा माता से ही होती है|

हिरन की ये बात सुनकर दोनों हिरनी बोली- पति के बिना इस जीवन को धिक्कार है| इसके बाद तीनो ने अपने बच्चों को सांत्वना देकर उन्हें अपने पड़ोसियों के हवाले कर दिया| और सभी जल्द ही उस स्थान की तरफ चल पड़े जहाँ वो भील इनके इंतज़ार में बैठा था|

हिरन और दोनों हिरनी अपनी प्रतिज्ञा अनुरूप शिकारी के पास पहुँचे 

उन्हें जाता देख उनके सारे बच्चे भी उनके पीछे पीछे चल पड़े| बच्चे ये निश्चय कर चुके थे जो गति माता पिता की हो रही है वही हमारी भी हो|

उन सबको एक साथ आते हुए देखकर भील बहुत खुश हुआ| जैसे ही उसने बाण को धनुष पर रखने की कोशिश की, फिर से कुछ जल और बेल पत्र नीचे स्थित शिवलिंग पर जा गिरे|

इससे भगवान की चौथी बेला की शुभ पूजा भी पूरी हो गई| अब तक उस भील का सारा पाप भस्म हो चुका था| इतने में ही वो तीनो हिरन बोल पड़े – व्याध शिरोमणि कृपया करके जल्दी से हमारे इस देह को सार्थक कर दो| उनके ऐसा कहने पर भील शिकारी आश्चर्य चकित हो गया| शिव पूजा से उस भील को अब दुर्लभ ज्ञान प्राप्त हो चुका था|

भील शिकार को ज्ञान प्राप्त 

भील ने सोचा की ये अज्ञानी जानवर होने पर भी धन्य हैं जो ज्ञान हीन होकर भी अपने शरीर से परोपकार करने के बात कर रहें हैं लेकिन धिक्कार है मेरे जीवन को जो मैं कई प्रकार के कुकर्मो को करते हुए अपने परिवार का पोषण करता रहा|

अब उसने अपने बाणों को हटा दिया और सभी मृगों से बोला की – आप सभी धन्य हैं और उन्हें वापस जाने दिया| भील के द्वारा ऐसा करने पर शिव जी प्रसन्न होकर फ़ौरन उसे अपने दिव्य रूप का दर्शन दे डाला और उसे सुख समृद्धि का आशीर्वाद देकर ‘गुह’ नाम प्रदान किया |

निष्कर्ष 

दोस्तों ये वही गुह था जिससे प्रभु श्री राम की दोस्ती हुई थी| मित्रो Happy Mahashivratri ki Kahani Vrat Katha in Hindi  महा शिवरात्रि की शुभ कहानी यहीं पर ख़त्म होती है| अगर आपको ये अच्छी लगी हो तो इसे अधिक से अधिक लोगों के बीच शेयर जरूर करिए और अपनी राय कमेन्ट में जरूर बताएं|

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