एक ऑटो चालक से एकनाथ शिंदे कैसे बन गए महाराष्ट्र सूबे के चीफ मिनिस्टर
कौन हैं एकनाथ शिंदे ? देश के अधिकतर लोग इनके बारे में जानना चाहते हैं क्योंकि पिछले कुछ दिनों में एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की राजनीति में चर्चा का मुख्य विषय हैं |
किस तरह एकनाथ सभी को हैरान करते हुए महाराष्ट्र की नई सरकार में मुखिया बन गए | एकनाथ शिंदे का जीवन कई मामलों बेहद ही प्रेरणा दायक है | एक ऑटो चालक से महाराष्ट्र जैसे सूबे के मुख्मंत्री पद की यात्रा करने वाले एक नाथ शिंदे हैं कौन ? उनकी अब तक की जिंदगी का सफ़र कैसा रहा ? जानने के लिए पूरे आर्टिकल को जरूर पढ़िए |
कभी ठाणे की रोड पर एक ऑटो चलाने वाला युवा कभी महाराष्ट्र सरकार की ड्राइविंग सीट पर विराजमान हो सकता है | इसे भारतीय लोकतंत्र और शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे ने साबित कर दिखाया |
शिवसेना सरकार में मंत्री रहे बागी एकनाथ शिंदे ने ऐसा पासा फेंका की चित होने से पहले न तो उद्धव ठाकरे को हवा लगी और न ही महाराष्ट्र राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार को | एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे को चुनौती देते रहे लेकिन इनके जुबान से शिवसेना के फाउंडर और उद्धव के पिता बाला साहब ठाकरे का नाम कभी नदारद नहीं हुआ |
58 सावन देख चुके एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र की राजनीति में शून्य से शिखर तक का सफ़र कर चुके हैं | इनका परिवार सतारा का रहने वाला है | पढ़ाई करने के वास्ते एकनाथ शिंदे थाणे आये लेकिन 11वीं क्लास के बाद की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके | गुजर बसर करने के लिए एकनाथ शिंदे ने ऑटो चलाना शुरू कर दिया | आज इनके पास 11 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है |
आपकी जानकारी के लिए बता दें की एकनाथ पिछले 25 सालों से किसी भी चुनाव में हार नहीं मिली है | महाराष्ट्र की मौजूदा राजनैतिक उथल पुथल इन्ही का नाम सबसे अधिक चर्चा में है | ठाणे की कोपरी पचपा खाड़ी विधानसभा क्षेत्र के ये विधायक हैं | और अब ये महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी बन चुके हैं |
ठाणे में इनकी काफी मजबूत पकड़ है| एकनाथ एक नाम नहीं बल्कि अपने आप में एक पार्टी हैं | ऐसा इनके करीबी कहते हैं | ठाणे की जनता इन्हें शिव सेना के संस्थापकों में से एक आनंद चिन्तामणि दीघे के प्रतिबिम्ब के रूप में देखती है |
यही वजह है लोग आँख बंद करके शिंदे के फैसले के साथ खड़े हो गए हैं | एक ऐसी बात शिंदे के लिए कही जाती है की ये बहुत नीचे से सफ़र शुरू करके आज मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हो चुके हैं | इन्होने नीचे से ही बड़े संघर्ष करके यहाँ तक पहुँचे हैं | एकनाथ शिंदे के साथ न सिर्फ जनता खड़ी है बल्कि शिवसेना के दो तिहाई लगभग 40 विधायक भी पूरा साथ दे रहें हैं |
एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के खिलाफ अपने बगावती सुर क्या बुलंद किये, पूरे ठाणे जिले में इनके समर्थन में बैनर और पोस्टर लगे दिख रहें हैं | इन पोस्टर में बाला साहब ठाकरे तो हैं लेकिन मौजूदा शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की तस्वीर गायब हो गई |
शिंदे का बचपन ठाणे के किशन नगर वाग्ले स्टेट 16 नंबर में बीता | आज यहाँ इनका एक फ्लैट है जहाँ ये अपने माता पिता और तीन भाई बहनों के साथ रहते थे | इनके बचपन के दोस्त बताते हैं की एकनाथ शिंदे बचपन से ही लोगों की मदद किया करते थे |
जब ये छोटे थे तो ठाणे में पीने के पानी की बहुत समस्या थी| महिलाओं को बहुत दूर दूर से पानी लाना पड़ता था | इसी परेशानी को देखते हुए शिंदे एक दिन अपने दोस्तों के पास आये और कहा इस परेशानी का समाधान कैसे होगा ?
इस पर इनके एक दोस्त ने इन्हें राजनीति में उतरने की सलाह दे डाला | शुरुवात में तो इन्होने इन्होने इनकार किया लेकिन बाद में इन्होने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ शाखा से जुड़ने का फैसला ले ही लिया|
ठाणे में एकनाथ शिंदे का कद कुछ ऐसा ही है शिवसेना के मूल कैडर भले ही हिन्दू हो लेकिन इस वक़्त ठाणे की मुस्लिम जनता भी इनके साथ खड़ी दिखाई पड़ रही है |
यही मुख्य कारण है की एकनाथ शिंदे के नाम पर दोनों समुदाय के लोगों ने इनके बेटे श्रीकांत शिंदे को चुनकर लोकसभा में बैठा दिया | एकनाथ शिंदे के पी ए रह चुके इम्तियाज़ शेख ने बताया की शिवसेना में जुड़ने से पहले एकनाथ शिंदे आरएसएस शाखा प्रमुख रह चुके हैं और यही आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन चुके एक नाथ कभी ऑटो रिक्शा भी चलाया करते थे |
एक समय की घटना है आनंद दिघे एक दिन उनके क्षेत्र में आये और उन्होंने लोगों से पूछा की अपने इलाके में पार्षद के रूप में किसे देखना चाहते हैं ? इसके जवाब में इम्तियाज़ शेख समेत सैकड़ों मुसलमानों ने एकनाथ शिंदे का नाम आगे कर दिया |
इसके बाद से ही एकनाथ शिंदे की शिवसेना में सक्रीय रूप से एंट्री हो गई | एकनाथ शिंदे के बारे में कहा जाता है की कोई भी हो अगर इनके पास मदद के लिए पहुँचता है, ये उसकी मदद अवश्य करते हैं | और यही इनकी पहचान है |
एकनाथ शिंदे भले ही आज महाराष्ट्र के सी एम बन चुके हैं लेकिन एक समय ऐसा भी उनके जीवन में आया है जब इनके घर की आर्थिक हालात बेहद ही ख़राब हो चुके थे |
साल 1990-1992 के बीच एक नाथ शिंदे के ड्राईवर रह चुके हलीम शेख बताते हैं की इनके पिताजी संबा जी शिंदे एक गत्ते की कम्पनी में काम करते थे और इनकी माता जी घरों में काम किया करती थीं |
इतनी ज्यादा गरीबी झेल चुके एकनाथ शिंदे ने कभी कोई गलत रास्ते का अख्तियार नहीं किया और यही उनकी अच्छाई है | इसी बीच एकनाथ शिंदे की जिंदगी में एक तूफ़ान आया |
एकनाथ के करीबी बताते हैं की आज से 22 साल पहले यानि 2 जून 2000 के दिन शिंदे के जीवन में एक ऐसा मोड़ आया की इन्होने पार्टी को छोड़ने का निर्णय ले लिया था|
सतारा में हुए एक नाव दुर्घटना में इनकी आँखों के सामने इनके छोटे बेटे दीपेश और बेटी सुभद्रा की डूबकर मृत्यु हो गई थी | इस घटना से एकनाथ शिंदे इस कदर टूट गए थे की इन्होने राजनीति से अलविदा करने का ऐलान कर दिया था |
एकनाथ शिंदे के साथ पिछले 40 साल से रह रहे देवीदास ने बताया की बच्चों की मौत के बाद एकनाथ शिंदे अपने आपको एक कमरे में बंद कर लिया था| ये किसी से मिलते नहीं थे और न ही किसी से बात करते थे | दुःख की इस घड़ी में आनंद दीघे ने उन्हें सहारा दिया |
फिर इनके राजनैतिक गुरु और शिवसेना के कद्दावर नेता आनंद दीघे ने इन्हें काफी समझाया और इन्हें राजनीति में फिर से सक्रीय कराया |
एक वक़्त ऐसा भी था जब परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए एकनाथ शिंदे ऑटो चलाने के साथ साथ लेबर कांट्रेक्टर के तौर भी काम करते थे |
कई बार ऐसा भी हुआ था की काम ज्यादा होता था और मजदूर इनके पास कम होते थे तो ऐसे वक़्त में एकनाथ शिंदे ने बतौर लेबर का काम करने लगते थे | इन्होने अपने हाथों से मछलियों की सफाई तक की है |
इनके निकटतम मित्र बताते हैं की एक वक़्त ऐसा भी इनकी जिन्दगी में आया है जब 15 दिनों तक इनकी आवाज ही गायब हो गई थी | ये साल था 2014, उस समय लोकसभा इलेक्शन चल रहे थे| एकनाथ शिंदे ने इस चुनाव में इतना प्रचार किये की इनकी आवाज तक चली गई |
हालाँकि डॉक्टरों की कोशिश के बाद इनकी आवाज दोबारा वापस लौट आई | इसके बावजूद ये शिवसेना के लिए लड़ते रहे | इनके करीबी ये भी बताते हैं की एक बार किशननगर से गुजरने वाली पाइप लाइन फट गई थी और इलाके में पानी इकठ्ठा होने लगा था क्योंकि नगरनिगम के कर्मचारियों को पहुँचने में देर हो गई थी |
ये जानकारी जैसे ही एकनाथ शिंदे को मिली वो मौके पर पहुँचे और पानी में कूद गए | नगर निगम के कर्मचारियों के पहुँचने से पहले ही उन्होंने टूटी हुई पाइपलाइन को स्वयं ही ठीक कर दिया और इलाके को क्षति पहुँचने से बचा लिया |
एकनाथ शिंदे के बचपन के दोस्त है पोपट दोत्रे | उन्होंने एक अखबार को बताया है की एक बार इनकी चाल में अनाज की कमी पड़ गई थी | स्थानीय लोगों न चीनी मिल रही थी न चावल | जब ये बात एकनाथ शिंदे के कान तक पहुँची तो ये सीधे अनाज को पैक करने वाली कम्पनी के गोदाम में पहुँच गए और वहाँ से अनाज उठाकर कमलानगर में रहने वाले लोगों तक पहुँचा दिया |
इनकी जो कहानियाँ हैं वो कुछ तरह की हैं जिसमे इन्होने लोगों की काफी सहायता करी है | फिलहाल 9 करोड़ से भी अधिक के बंगले और फ्लैट के मालिक हैं एकनाथ शिंदे |
ठाणे के पाश वाग्ले स्टेट की धोत्री गली में 360 वर्गफुट का घर है | एकनाथ शिंदे के पास सात गाड़ियाँ है, एक पिस्टल और एक रिवाल्वर है | शिंदे की पत्नी के पास तीस लाख की एक शॉप है, दो फ्लैट हैं| पास 2370 स्क्वायर फीट का एक आलिशान बंगला भी है | महाबलेश्वर में 12 एकड़ भूमि है, और तीन करोड़ चौहत्तर लाख रुपये का कर्ज भी इस पर है | 28 लाख रुपये की खेती करने वाली जमीन है | चिखल गाँव में 1.26 हेक्टेयर जमीन के भी ये मालिक हैं |
तो इस तरह से एकनाथ शिंदे ने काफी ऊंचाईयों को हासिल कर लिया | आगे उनका जीवन सफ़र बहुत ही उज्जवल हो ऐसी हमारी कामना है |
इनके आस पास के लोग जो किस्से बताते हैं उनमे वो आम आदमी की मदद के लिए सदैव तैयार रहते हैं |
वो कहते हैं न पॉलिटिक्स में दोस्त और दुश्मन हालात तय करते हैं | लेकिन एक नाथ शिंदे जब ऑटो चालक थे | उस दौर के उनके साथियों को अब भी शिंदे पर पूरा विश्वास है | बाला साहब के अतिरिक्त जिस लीडर को एकनाथ शिंदे अपना आदर्श मानते हैं वो हैं शिवसेना के स्वर्गीय नेता धर्मवीर आनंद दीघे | मुंबई पहुँचने से पहले एकनाथ शिंदे ने आनंद दीघे की छत्र छाया में राजनीति की वर्णमाला सीखी | मात्र 18 वर्ष की आयु में एकनाथ शिंदे शिवसेना में शामिल हो गए थे |
इसके बाद साल 1997 में आनंद दीघे ने एकनाथ शिंदे को राजनीति में उतार दिया| ठाणे नगर निगम के चुनाव में शिवसेना से टिकट इन्हें मिल गया| इन्होने अपना पहला इम्हिहान पास कर लिया |
साल 2001 में एकनाथ शिंदे नगरनिगम में विपक्ष के नेता बन गए |
साल 2002 में एकनाथ शिंदे दूसरी बार पार्षद का चुनाव जीत गए |
एकनाथ शिंदे के सफ़ेद कपड़े, माथे पर लाल टीका पहनावे से लेकर हेयर स्टाइल तक एकनाथ शिंदे अपने राजनैतिक गुरु को कॉपी करते नजर आते हैं |
साल 2001 में एक दुर्घटना में आनंद दीघे की मृत्यु के बाद आनंद दीघे ने उनकी जगह ले ली | ठाणे और आस पास के क्षेत्रों में शिवसेना के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे | और महाराष्ट्र के राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार हो चुके थे |
अब पार्षद से विधायक बनने का समय आ चुका था | साल 2004 के विधानसभा इलेक्शन में शिवसेना ने ठाणे से एकनाथ शिंदे को मैदान में उतारा | इन्होने इस बार फिर अपना दबदबा बरक़रार रखा |
एकनाथ शिंदे साल 2009, 2014 और 2019 के विधान सभा चुनाव में भी विधायक चुन लिए गए | आज एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच में घमासान भले ही चल रहा हो लेकिन एक समय था जब एकनाथ शिंदे ठाकरे परिवार के करीबियों में आते थे | शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे भी इनके ऊपर भरोसा किया करते थे | पार्टी से जुड़े फैसलों में एकनाथ शिंदे की सलाह ली जाती थी | साल 2005 में नारायण राणे और राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ दी थी | इसी के बाद पार्टी में एकनाथ शिंदे की ऊंचाई और बढ़ गई थी |
साल 2014 में महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी की गठबंधन सरकार बनी और तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेद्र फडनवीस ने एकनाथ शिंदे को लोक निर्माण मंत्री बना दिया था | देवेद्र फडनवीस एकनाथ शिंदे पर भरोसा करने लगे लेकिन देवेद्र फडनवीस के साथ शिंदे की नजदीकियाँ शिवसेना के कई नेताओं को रास नहीं आ रही थी |
साल 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद एकनाथ शिंदे का नाम मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे था | इन्हें शिवसेना विधायक दल का नेता चुन लिया गया था | इनके समर्थकों ने तो भावी मुख्यमंत्री के पोस्टर भी चस्पा कर दिए थे लेकिन बीजेपी और शिवसेना के बीच बात न बन सकी|
साल 2019 में एनसीपी और कांग्रेस के दबाव के कारण उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र का सी एम बना दिया गया| इस उद्धव सरकार में एकनाथ शिंदे को शहरी विकास मंत्री बनाया गया | ये पार्टी में दूसरे सबसे प्रमुख नेता माने जाने लगे थे | लेकिन शिंदे महा विकास अघाड़ी के गठबंधन से प्रसन्न नहीं थे | एक नाथ शिंदे की शिकायत थी की सी एम उद्धव ठाकरे इन्हें अनदेखा कर रहे थे |
बताया जाता है की सी एम उद्धव ठाकरे से मुलाकात करने के लिए इन्हें लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती थी |पार्टी में एकनाथ शिंदे की तुलना में आदित्य ठाकरे का कद बढ़ता जा रहा था | ऐसे में उद्धव ठाकरे के साथ एकनाथ शिंदे के रिश्तों में कड़वाहट आने लगी थी | एकनाथ शिंदे 40 वर्षो तक शिवसेना पार्टी के विश्वासपात्र और शक्तिशाली सिपाही बने रहे | लेकिन इनके बागी सुर ने शिवसेना के सत्ता की बुनियाद हिलाकर रख दी है | और यही मुख्य कारण है की उद्धव ठाकरे आज भूत पूर्व सी एम हो चुके हैं |
जबकि एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नाथ बन चुके हैं |