Short Motivational Story in Hindi for Success

Short Motivational Story in Hindi for Success

किसी भी काम की शुरुवात प्रायः अपने साथ ढेर सारी बाधाएं भी लेकर आती है |इस संसार में कहा जाता है की कोई भी काम छोटा नहीं होता|  जो भी काम आप कर रहे हो, जिस भी क्षेत्र में आप काम करते हैं, जिस भी लेवल पर आपका काम हो, उसी काम को आप बहुत उंचाईयों तक ले जा सकते हो, अगर आप उसे ऊंचाईयों पर पहुँचाना चाहो |

इस आर्टिकल में आपको दो बातें पता चलेगी | जो काम शुरू कर दिया है उसे पूरा जरूर करना क्योंकि वो पूरा हो सकता है और आप कर सकते हैं |

दूसरी बात इस दुनिया में कोई भी कुछ भी कर सकता है अगर वो सच में करना चाहता है तो | 

ये भी संभव है की आप किसी लक्ष्य के लिए अपनी यात्रा शुरू तो किये हों लेकिन शुरुवाती समय में ही आपका सामना कई कठिन बाधाओं से सामना भी हो गया हो ऐसे में शायद आप रूकने की सोच रहें होंगे लेकिन बीच रास्ते में रुकने से पहले आप एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जानिये जिससे आपको पता चलेगा की जब लक्ष्य पाने की यात्रा पर चल ही दियें हैं तो अब रूकने की क्या आवश्यकता ?

ये कहानी है एक ऐसे ब्रांड की जो आज लोगों के दिलो पर राज करता है | तो शुरू करते हैं उस ब्रांड की कहानी 

एक परिवार था जो मोची का काम किया करता था| सदियों से इनका जूते बनाने का काम था| इनकी हर पीढ़ियाँ यही काम करती रही थी| इसी परिवार में एक लड़का था जिसका नाम था – टॉमस |टॉमस साल 1876 के अप्रैल महीने की 3 तारीख को पैदा हुए थे|

टॉमस ने सोचा मुझे अपने इस पारिवारिक काम बहुत ऊंचाईयों तक ले जाना है| मुझे इस काम को अरबों खरबों की कम्पनी बना देनी है|

आप जरा सोचिये जहाँ पर भी आप रहते हैं, अपने जूते किसी छोटे मोची के यहाँ ठीक करवाने जाते होंगे अगर वो बंदा आपसे बोले की मैं अपने इसी काम को यहीं से अरबों की कंपनी बनाना चाहता हूँ तो आप क्या जवाब देंगे , कमेंट में जरूर बताईयेगा |

तो उस टॉमस को लोगों ने क्या क्या बोला होगा ? हजारों लोगों ने बोला उसे पागल हो है क्या ? ऐसा कैसे हो सकता है ? कोई नहीं कर पाया तेरे दादा नहीं कर पाए तेरे पापा नहीं कर पाए कोई नहीं कर पाया, तू करेगा ? और इस काम को तू जो जूते बनाता है जूते ठीक करता है उस काम को तू अरबों की कम्पनी बना देगा | ऐसा नहीं होगा

लेकिन इस लड़के ने निश्चय कर लिया था की मैं इसे करूँगा ही करूँगा कैसे भी इस काम को पूरा करके दिखाऊंगा | इस सफ़र का आरम्भ होता है वर्ष 1894 से |

तो उसने शुरू कर दिया चेकोस्लोवाकिया के शहर Zlin  में, टॉमस ने अपने भाई  Jan Antonin  और बऔर बहन anna के साथ जूते बनाने की कम्पनी की नींव रखी| शुरुआती पैसे लगाने के लिए इनकी माता जी इन्हें 320$ दिए थे |

जिसमे ये लोग जूते बनाने और बेचने का काम करते थे| प्रोडक्ट इनका खुद का ही था | इस कम्पनी द्वारा बनाए गए अच्छे और सस्ते जूते लोगों को पसंद आने लगे और बिक्री बढ़ने लगी| कुछ ही दिनों में 10 लोगों को नौकरी पर भी रख  लिया गया कम्पनी में ताकि जूते अधिक मात्रा में बनाये जा सके| लेकिन बाटा की सफलता का सफ़र इतना सरल नहीं था |

धंधा तो शुरू हो गया था लेकिन ये सुनिश्चित नहीं हो जाता है की शुरू किया तो अब चलेगा ही चलेगा, सफल हो ही जायेगा| तो जो भी पैसे इनके पास पड़े थे सब तो धंधे में लग चुके थे | और धीरे धीरे करके सब कुछ ख़त्म हो गया और इनकी कम्पनी नीचे गिर गई |

महज एक साल के बाद ही सब कुछ ख़त्म हो गया | इनके पास अब पैसे भी नहीं बचे थे और इनका प्रोडक्शन भी बंद चुका था |

अपनी कम्पनी को आगे बढ़ाने के लिए ये एक समय भारी कर्ज में डूब गए थे | टॉमस को अपने जीवन में ऐसा समय भी देखना पड़ गया था की उधार चुकता न कर पाने की स्थिति में दिवालियेपन की नौबत आ गई थी | इसी दौर में टॉमस को अपने तीन कर्मिचारियों के साथ इंग्लैंड की एक शू कम्पनी में बतौर मजदूर काम करना पड़ा था |

ये समय आते ही लोगों के ताने आने फिर शुरू हो गए | इस समय में आने वाले भयंकर ताने इंसान को मानसिक रूप से तोड़ देते है और यहीं पर अधिकतर लोगों इच्छाएं, लक्ष्य सब ख़त्म हो आते हैं |

लेकिन इस लड़के का विचार था की नहीं जब मैंने शुरुवात कर ही दी है तो अब रुकने और पीछे मुड़ने का साल ही नहीं पैदा होता | मैं क्विट नहीं करूँगा मैं इसी काम को करते ही रहूँगा चाहे कुछ भी हो जाए | लोग कुछ भी कहे दुनिया कुछ भी कहे |

चमड़े खरीदने के पैसे नहीं है तो क्या हुआ जूते तो बना ही सकते हैं | काम मेरा है जूते बनाने का है, चमड़े के जूते बनाने का नहीं | फिर उन्होंने कैनवास के जूते बनाना शुरू कर दिया | उस समय कैनवास सस्ता भी होता है |

जरा ध्यान दीजिये, एक माइनस पॉइंट की उनके पास पैसे नहीं चमड़े खरीदने के, उसीको उन्होंने प्लस पॉइंट बना दिया – कैनवास के जूते बनाना शुरू कर दिया | एक अलग ही खोज कर दी जो वास्तव में बहुत सफल हुई |

और आज भी हम कैनवास के जूते पहनते हैं | आज तो तक़रीबन सभी कम्पनी कैनवास के शूज उपलब्ध करवा पा रही है | ये जूते लोगों को भी काफी कम दाम में मिल जाते हैं | क्योंकि इसकी प्रोडक्शन कॉस्ट कम हो जाती है | तो इनका तरीका काफी हिट होने लगा | कम्पनी फिर से धीरे धीरे बढ़ने लगी |

कम्पनी में स्थायित्व आने के बाद इन्होने अब ज्यादा प्रोडक्शन पर अपना दिमाग लगाया| 

क्योंकि इसी तरीके से काम करते रहने से तो कुछ होगा नहीं, बाकी लोग कैसे काम करते होंगे | कुछ समझने के लिए वो अमेरिका गए की मॉस प्रोडक्शन कैसे होता है अमेरिका में जाकर ये सीखा और वापस आये |

भारी मात्रा में प्रोडक्शन करने के लिए जो भी सीखकर आये थे सब अप्लाई कर दिया और उत्पादन बढ़ गया |

कुछ ही दिन बीतने के बाद इनके भाई की मौत हो गई और बहन की शादी हो गई |

फिर लोगों ने बोलना शुरू किया | तू अकेले अब नहीं कर पायेगा इतना बड़ा व्यापार कैसे संभाल पायेगा ? और नुकसान हो जायेगा |

फिर उस लड़के ने संकल्प लिया की नहीं शुरुवात मैंने की है तो इसे पूरा करके मैं रहूँगा | लेकिन जो इंसान था कम्पनी के पीछे वो बहुत ही सख्त था अपने संकल्प को लेकर | 

इसी के बाद पहला विश्व युद्ध शुरू हो गया | जब 1914 में पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ तो आराम और गुणवत्ता के लिए चर्चित इस ब्रांड को सेना के लिए जूते बनाने का बहुत बड़ा काम मिल गया|

और इनको सेना के लोगों के लिए, जूते बनाने का बहुत ही बड़ा आर्डर मिल गया| वो आर्डर इतना बड़ा था की इनको अपने कर्मचारियों की संख्या को दोगुना करना पड़ गया था| 6 साल तक चलने वाले इस विश्व युद्ध के दौरान काम को समय पर पूरा करने के लिए बाटा ब्रांड ने अपने कर्मचारियों की संख्या में दस गुने का इजाफा कर दिया |

इस आर्डर में इन्हें सेना को तक़रीबन 5 साल जूते सप्लाई करने थे |

इस काम के मिलने के कारण इनकी कम्पनी बहुत ज्यादा ऊंचाईयों तक पहुँच गई | भारी मात्रा में उत्पादन हो रहे थे | कम्पनी ने अपने शो रूमों की संख्या में इजाफा कर दिया था | सब कुछ सेट हो चुका था |

टॉमस बाटा ने अपने छोटे भाईयों को अपने बिज़नेस में शामिल कर लिया |  |  इसी समय पर इस कम्पनी के कई शहरों में स्टोर्स भी खोले गए |

इन्होने ऑफिस जाने वाले लोगों के लिए एक स्पेशल जूता बनाया जिसका नाम रखा Batovky. Batovky नाम के इस मॉडल को इसकी स्टाइल, हलके वजन, दाम और इसके लुक की वजह से काफी सराहा गया | अच्छी क्वालिटी होने के कारण इस जूते की बिक्री ने कम्पनी की ग्रोथ बहुत ज्यादा बढ़ा दी थी |

साल 1912 आते आते  बाटा कम्पनी में कर्मचारियों की संख्या तक़रीबन 600 से ज्यादा पहुँच चुकी थी | 

लेकिन जैसे ही विश्व युद्ध ख़त्म हुआ पूरी दुनिया में आर्थिक संकट आ चुका था | तो उस दौर में इस कम्पनी को भी बहुत अधिक नुकसान हुआ | लोगों के पास पैसे ही नहीं थे तो कौन खरीदता इनके जूतों को ? गुणवत्ता कितनी भी अच्छी हो ?

पैसों की जरुरत तो इनको भी थी, जूते तो इनको बेचना ही था | इस समय पर टॉमस ने क्या किया इन्होने एक रिस्की कदम लिया |

टॉमस  के साथ अभी तक सब कुछ बहुत बढ़िया था लेकिन विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद तगड़ी वाली मंदी का दौर चला | जो इस कम्पनी को भी घाटे का दरवाजे दिखा दिया |

इस समय में टॉमस ने एक बहुत जोखिम भरा फैसला लिया इन्होने अपने प्रोडक्ट्स के दामों को 50% यानि आधे रेट पर कर दिया | इनके कर्मचारियों ने भी अपने बॉस की बात को महत्वपूर्ण समझते हुए अपने सैलरी में 40% की गिरावट कर दी की हमको सिर्फ 60% सैलरी ही देना |

इनके इस निर्णय से आश्चर्यचकित होकर लोग इनको मूर्ख कहने लगे थे |

ऐसे करके इन्होने अपने बिज़नेस को लगातार जारी रखा | जिस वातावरण में बड़ी बड़ी कंपनियों पर भी ताले लग चुके थे उसी माहौल में इस कम्पनी ने बहुत ज्यादा मुनाफा कमा लिया |

सच ही कहते हैं की बिज़नेस, टीम वर्क का काम है | अगर हमारी टीम हमारे साथ खड़ी है तो कैसी भी समस्या हम पर हावी नहीं हो पाती है | इस कम्पनी का हेड क्वार्टर स्विट्ज़रलैंड में स्थापित है |

जूतों के आधे दाम और घोर मंदी के बावजूद टॉमस बाटा के बनाये जूतों की डिमांड इतनी बढ़ चुकी थी की उसी दौर में इनको जूतों के उत्पादन में 15 गुने की बढोत्तरी करनी पड़ी थी | इसी समय तक बाटा का कारोबार 27 देशों तक पहुँच चुका था | बाटा के शोरूम तेज़ी से पूरी दुनिया में खुलने लगे | आगे चलकर बाटा ने मोज़े, चमड़े और रबड़ के और भी प्रोडक्ट बनाकर कम्पनी का विस्तार किया |

आज की बात करें तो दोस्तों , इस कम्पनी के 90 से भी अधिक देशों में 5300 से भी अधिक शोरूम हैं | इस कम्पनी की उत्पादन यूनिट 18 देशों में भारी मात्रा में उत्पादन करती है|

जी और इस कम्पनी का नाम है बाटा | विश्व की अग्रणी जूते बनाने वाली कम्पनी बाटा इसके फाउंडर का नाम है टॉमस बाटा | उसी मोची का लड़का जिसकी सारी पीढ़ियाँ एक छोटे से स्थान पर बैठकर जूते सही किया करतीं थी |

दुनिया का नामचीन ब्रांड बाटा – जिसकी कामयाबी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं की उस समय जूते का मतलब ही बाटा होता था|

टॉमस बाटा की सिर्फ 56 साल की उम्र में एक विमान हादसे का शिकार हो गए | और 12 जुलाई सन 1932 में टॉमस बाटा की विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी |  दुर्भाग्यवश ये विमान दुर्घटना इनकी ही एक बिल्डिंग की चिमनी से टकराने के कारण हो गई थी |

टॉमस बाटा की मृत्यु के उपरान्त कम्पनी की जिम्मेदारी इनके भाई और बेटे के कन्धों पर आ गई थी | इन नए मालिकों ने भी टॉमस बाटा के बनाये गए रास्तों पर चलते हुए कम्पनी के विकास के के लिए जी तोड़ मेहनत किया |

इस शानदार ब्रांड की स्थापना करने वाले टॉमस बाटा ने साल 1932 में इस संसार से अलविदा कह दिया | लेकिन उनका ये जीवन हम सभी को अब भी बहुत कुछ सीखा रहा है |

उसने सोचा की मैं इसी काम को इतने बड़े स्तर तक ले जा सकता हूँ |

हजारो बार ऐसा लगा की अब सब कुछ ख़त्म हो चुका है | अब इसको आगे नहीं ले जा सकते | क्विट करना पड़ेगा, लोगों ने भी बोला की तू नहीं कर पायेगा  नहीं कर पायेगा !

लेकिन ये लड़का हर बार यही बोला की मैंने शुरुवात की है तो मैं इस काम को पूरा करूँगा | जो मैंने कहा है वो मैं करके दिखाऊंगा | मैं एग्जिट नहीं करूँगा |

हिंदुस्तान में बाटा का प्रवेश 

बाटा कम्पनी ने अपना कदम भारत के भीतर साल 1931 में रखा | इस कम्पनी की सबसे पहली फैक्ट्री बंगाल राज्य में शुरू की गई थी | जिसका स्थानांतरण बाद में बिहार के बाटागंज में हो गया था | इसके बाद भारत के हरियाणा, कर्नाटक और तमिलनाडु में पाँच और यूनिट की शुरुआत हो गई |

इन सभी स्थानों पर चमड़े, रबर, कैनवास और pvc से सस्ते और टिकाऊ जूते तैयार किये जाने लगे |

विश्व भर में नामचीन फुटवियर ब्रांड बाटा की महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ 

शू कम्पनी बाटा ने हिंदुस्तान के पटना शहर में एक चमड़े की फैक्ट्री की शुरुवात करी| इसी फैक्ट्री में जूते बनाने के लिए काफी अच्छी गुणवत्ता वाले लेदर का निर्माण किया जाने लगा| इसी स्थान को अब लोग बाटागंज के नाम से जानते हैं |

वर्ष 2004 में बाटा कम्पनी को गिनीज बुक ऑफ़ रिकार्ड्स की तरफ से दुनिया की सबसे बड़ी शू कम्पनी का खिताब मिल चुका है |

पूरे विश्व में बाटा के स्टोर्स सबसे अधिक हिंदुस्तान के भीतर विद्यमान हैं | इन स्टोर्स की संख्या तक़रीबन 1300 हैं |

बाटा जूते बनाने के साथ साथ कई अन्य सामान जैसे बैग, मोज़े और पोलिश जैसी चीजें भी बनाने लगी है |

बाटा के संस्थापक टॉमस बाटा के नाम पर चेक रिपब्लिक में विश्वविद्यालय भी चल रहा है जिसमे दस हज़ार से लोग शिक्षा प्राप्त कर रहें हैं |

हम आशा करते हैं की आपको इस आर्टिकल से कुछ तो मिला होगा | और आप समझ पाएंगे होंगे जो दो बातें आपने आर्टिकल की शुरुवात में पढ़ीं थी |

तो वास्तव में सब कुछ संभव है अगर इंसान को करना हो तो !

आपने क्या सीखा इस कहानी से कमेंट में जरूर बताईयेगा जोकि हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है |

अगर आपको हमसे बात करनी है तो ये हमारी instagram id है  @hindiaup_motivation

हम सभी के सामने आज ये दर्शन है की जिसने जिन्दगी को खुलकर जिया उसे मकाम भी मिले और खुशियाँ भी मिलीं| और जो सोचता रहा वो बस सोचता ही रह गया| 

हम आशा करते हैं की आपने इस कहानी को पढ़ने के बाद अपने सफ़र को बीच में छोड़ने के इरादे को नष्ट कर दिए होंगे|

किसी के कहे शब्दों में पूरी सच्चाई है की जो बीच राह में बैठ जाते हैं तो हमेशा के लिए बैठे रह जाते हैं | जो लगातार चलते रहते हैं निश्चित ही मंजिल हासिल करते हैं | 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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