व्यर्थ में वीर्यपात करते हो ? सावधान हो जाओ !!

Vyarth me viryapaat karte hai

अगर अश्लील विचार आपको रात में परेशान करते हैं तो यह सत्संग आपकी रात को दिव्य बना देगा| क्यों vyarth me viryapaat karte hai?

सोते समय सावधान रहें – मन की सबसे बड़ी परीक्षा!

यह बात आप जरूर स्वीकार करें कि सोते समय आपको बहुत सावधान रहना है और प्रायः गलती सोते समय करते हैं उपासक की|

कोई प्रपंच की बात याद करते हुए या मोबाइल देखते हुए या कोई गंदी चेष्टा का चिन्ह, आपकी रात बेकार चली जाएगी| अगर गंदी चेष्टा हो गई तो सुबह भी बेकार हो जाएगी दिन भी बेकार हो जाएगा,

निरुत्साहित हो जायेगा|

खासकर रात में आपको समय नहीं देना व्यर्थ चिंतन का, उसी समय विषय चिंतन होता है उसी समय विषय भोग की आकांक्षा जागृत होती उसी समय विषय देखने की इच्छा होती है| उसी समय vyarth me viryapaat karte hai.

मोबाइल है, तो जिस समय आप अपनी शैय्या पर जाये तब स्विच ऑफ कर दें उसमें मैसेज घंटी आने का कोई भी रास्ता मत रखें मान लीजिए| आप उपासक है भगवत प्राप्ति के!

30-35 वर्ष पहले यह नहीं था तो सब मर नहीं गए थे| और बोले इमरजेंसी है, जब 30- 35 वर्ष से पहले इसकी कोई रचना नहीं थी मुझे लगता है, क्योंकि 30-35 वर्ष में ही इसका विस्तार देखा है|

नहीं तो कभी किसी के पास मोबाइल नहीं होता था| कोई बड़े अधिकारी हैं तो वो रखते थे| नहीं तो कोई नहीं रखता था मोबाइल तो हमें लगता है 30-35 वर्ष तो फिर इमरजेंसी कैसे चलती थी?

कैसे चलती थी इमरजेंसी और आप ब्रह्मा हो क्या कि इमरजेंसी संभाल लोगे?

मोबाइल: साधना में सबसे बड़ा बाधक!vyarth me viryapaat karte hai

स्विच ऑफ करो जो सब इमरजेंसी संभालने के लिए तैयार रात दिन ना सोता है वो हर समय जागृत रहता है वो हमारा आराध्य देव है| स्विच ऑफ करो मोबाइल!

चिंतन लगाओ श्री जी का

vyarth me viryapaat karte hai ये जो रात्रि के समय मोबाइल में इधर-उधर दृश्य देखने हैं अपने सर्वनाश का बीज बोना है|  मान लो हमारी प्रार्थना!

मान लो यह उस समय मन आपको परेशान करेगा जब कमरे की सिटकनी अंदर से बंद होगी सबसे प्रार्थना है रात्रि के शयन के समय|

तो बोले फिर ठीक है 10 बजे तक देख लेंगे मोबाइल इसके बाद शयन के समय भजन कर लेंगे| होगा ही नहीं!

क्या तुम देखना चाहते हो?

प्रिया प्रीतम के सिवा और कुछ क्या देखना चाहिए वो तो सुभग सुंदरी सहज श्रृंगार सहज शोभा सर्वांग प्रति सहज रूप वृषभान नंदिनी

हमारी स्वामिनी जी की सुंदरता छुपाने के लिए आभूषण पहनाए जाते हैं औरों को तो आभूषण सुंदरता बढ़ाने के लिए| ये छवि को छिपाती हैं, ऐसे के दास होकर क्या देखोगे मोबाइल में?

क्या देखना चाहते हो वासना की क्रीड़ा? और तुम उस क्रीड़ा को देखना चाहते हो?

परमार्थ के पथिक हो देखना है तो प्रभु को देखने की वृत्ति रखो अन्यथा मूंद लो आंखें प्यारे महान फल प्राप्त करोगे| 

सबसे प्रार्थना है| 

गुप्त दुश्मन से बचाव: एकांत में मोबाइल से दूरी क्यों आवश्यक है?

vyarth me viryapaat karte hai एकांत में मोबाइल रूपी दुश्मन से बचो क्योंकि जब आप गंदी बात कहीं देखोगे तो आपके अंदर वैसे ही चिंतन बनेगा ऐसे ही लगेगा मैं भी ऐसा करूं, मैं भी ऐसा भोग मैं भी ऐसा देखूं| मान लीजिए आप!

जब हमारे शास्त्र कहते कि पशु पक्षियों के मैथुन को भी नहीं देखना है अगर ऐसा एक बार दृष्टि पड़े तो मानसिक प्रणाम करके दोबारा दृष्टि ना देना और आप मोबाइल में ऐसी चेष्टा देखोगे कैसे आप भगवत भजन करोगे?? कैसे भगवत प्राप्ति का उद्देश्य रख पाओगे?

यह कलयुग की बहुत महीन चाल है उसके बिना काम नहीं चलेगा हम तुम्हें काम से युक्त कर देंगे इसके बिना काम चलेगा नहीं तुमको रखना पड़ेगा और जब तुम इसे रखोगे तो हम काम अपना कर लेंगे कलयुग ने कहा- हम अपनी व्यवस्था बना लेंगे

भगवत भजन से रात को दिव्य कैसे बनाएं?

यहां कह रहे जब आप नींद में जा रहे तो बिल्कुल मानो मृत्यु सैया पर जा रहे हैं आपको उस समय नाम जप में बहुत ध्यान देना है कहीं मन बहक ना जाए तो क्या होगा 5-6 घंटे जो आप लेटोगे ना वह भी भजन हो जाएगा| 

हमारा जो सततम योमा स्मृत नित है ना, यह पूरा हो जाएगा| नहीं उस समय हम सो जाएंगे तो हमारा छ घंटे का वियोग हो गया छ घंटे भजन रुक जाएगा और यह 100% पक्की बात अनुभव की कहते है| 

यदि सोते हुए भजन करोगे तो जगते कई बार तो पकड़ा है कि अगर आधे पद में बेशुद्ध हो गए तो वह पद पूरा जगते ही शुरू हो गया है मतलब बीच में स्थिति भगवाटिक रही जैसे बेहोश करते समय हमने कहा था जब ऑपरेशन करना हो तो हमें बता देना| 

तो उन्होने कहा बाबा इंजेशन लगाने वाले हैं तो एक मिनट हमें केवल दीजिए अपनी चित्तवृत्ति तो जब होश आया तो वही पहले चिंतन चल रहा था वही चिंतन जैसे सोने के समय बेहोश हुए तो जगने के समय वही चिंतन ऐसे ही इंजेशन से जब बेहोश हुए और जब होश आया तो वही चिंतन बहुत बड़ा चमत्कार अभ्यास का है| 

नींद खुले तब से लेकर गाढ़ नींद आने तक स्मरण में कभी रुकना नहीं और आपको एक छूट दे रहे हैं कभी-कभी क्या होता है कि एक मंत्र में एक नाम में जैसे बहुत देर अभ्यास करते तो मन ऊबने लगता है इसका स्वभाव है| यह अनुभव की बातें कहते हैं

मन का स्वाभाव है – इसे चाहिए नया नया 

इसका स्वभाव है नवम नवम ! मतलब इसको हम लोगों ने कैसे फसाया है? जैसे गुरु मंत्र जप रहे हैं अब दो तीन घंटे लगातार गुरु मंत्र अब इसको ऊबन बढ़ेगी अब ये छोड़ रहा है बीच बीच में पता चलता है छोड़ना चाहता, छोड़ रहा है तुरंत इसको नाम में फसाया अब थोड़ी देर नाम में चला फिर उभरा बहुत विचित्र है ये अब उसको फसा दिया – नमामि समी शन निर्वाण रूपम विभु व्यापकम ब्रह्म वेद स्वरूपम चिंतन

पद गान करें भगवान शिव पद गान कर रहे| 

उसका चिंतन निर्वाण रूपम विभु व्यापकम ब्रह्म वेद स्वरूपम अब अपने यहां अवसर है सुंदर सुंदर कोई पद गुरु मंत्र जप करते हुए मन जब ऊबने लगे राधा वल्लभ श्री हरिवंश राधा वल्लभ श्री हरिवंश राधा वल्लभ श्री हरिवंश इसमें भी ऊबने लगे शुरू जोई जोई प्यारो करे सोई मोही भावे भावे मोही जोई इसमें भी ऊबने लगे सुधा निधि का कोई एक लाइन ले लो ब्रह्मेश्वरा सुदर पद रविंद श्रीमत पराग परमाद भुत वैभव ब्रह्मेश्वरा सुदुरुह

छोड़ना नहीं है तू भाग मैं नवम नवम दे रहा हूं नवम इसको फसाने के लिए आपके पास अस्त्र जैसे यहां चाकू यहां पिस्तौल तलवार यह वो सब बिल्कुल वीर सजा रहता है ऐसे अपने लोग सजे रहते छोटा राधा अब एकदम चिपक गया तो कैसे?

तो छोटी चाकू है राधा राधा राधा थोड़ा दूरी राधा वल्लभ श्री हरिवंश बड़ी दूर गुरु मंत्र बड़े बड़े अस्त्र पले पास रख हैं| ले बहुत भाग रहा है तो फसा दिया प्रथम यथा प्र श अलग पूरा पद पूरा पद उसम ल प्रथम यथा मति प्रणव

नाम जप भजन छूटने के स्थान 

भोजन पाते समय ऐसा अभ्यास किया है एक घंटा के पहले भोजन नहीं होता चाहे दो रोटी पाना समय लगता है आराम से एक एक नाम एक कुछ भी कुछ भी हल्ला मचाओ कोई फर्क नहीं पड़ेगा अपना चलेगा अभ्यास स्नान के समय भोजन के समय किसी क्रिया के करते समय किसी से बात करते समय सोते समय यह विशेष स्थान जहा में सावधान रहना है यहाँ भजन छूटता है ध्यान देना!

यही भजन छूटता चलते समय क्रिया वान होते समय प्रसाद पाते समय या किसी से बात करते समय यह सब भजन के छूटने के स्थान है और यही पकड़ना है भजन को

जब आपको बिल्कुल ना लगे तो मानसिक सब बंद कर दो और गुनगुनाने लगो जो ध्वनि आपको अच्छी लगे उसी में नाम कोई नाम लेके संसार का चिंतन ना होने पावे चाहे जो कुछ जहां तुम्हारा मन आवे गंगावली गोदावरी कुछ भी भागवत चिंतन के सिवा संसार के चिंतन आने न पाए| पहले ऐसे अनन्य बनो फिर बाद में अनन्यता आती है| 

रसना कटो जोन विषय चिंतन कर रहे प्रपंच कर रहे हो बोले रसना कटो जन रटो और नहीं बोल सकते प्रपंच बोलेंगे बस रसना यह शब्द वहा नहीं आते| 

पहले हम आपको छूट देते हैं भक्त चरित्र भगवान के चरित्र नाम कीर्तन मंत्र जो भी चाहो संसार का चिंतन मत होने देना पहले ये पकड़ो फिर आगे चलकर के जब पवित्र हदय होगा तब निष्ठा आती है|

संसार का चिंतन रोकना है 

रसना कटो जवन रटो निरख फटो नैन मान लो संसार का चिंतन नहीं करने देना है इसको आप जैसे बने वैसे करो भागवत चिंतन

कोई नाम ले लो कोई मंत्र ले लो तुम्ह जो प्रिय लगे हम छूट देते हैं ये नहीं करे कि रसना कटो जोन रटो ये बाद की बात है हमें पहले इसका संसार चिंतन रोकना है कैसे छूटेगा कैसे छूटेगा?

हमें ये पकड़ना है

जो तुम्हें प्रिय लगे पहले उसे पकड़ो यह हम अंदर की बात कर रहे प्रवचन की बात नहीं मन को फसाना है हमें राम कृष्ण हरि जहां लगे इसको लगाओ पहले पहले इसको फसाओ| संसार का चिंतन ना होने दे गीता भागवत भक्त चरित्र कुछ भी कहीं भी इसे फसाओ पहले संसार का चिंतन ना होने दो फिर लाओ इसको

घुमा के निकुंज वाटिका में फिर तो भागेगा ही नहीं फिर नहीं भागेगा अब सीधे निकुंज वाटिका में किसी महा भाग्यशाली गुरु आश्रित का लगेगा अन्यथा बहुत प्रपंच मन है आप आश्रय इधर का लोगे प्रपंच का चिंतन करोगे बात बनेगी नहीं चिंतन छोड़ना है हमें जैसे बने तैसे संसार का चिंतन छूट जाए तो हम विजय को प्राप्त होंगे

परमात्मा को कौन प्राप्त कर पाता है 

ध्यान दीजिए इस परमात्मा तत्व को वही प्राप्त कर पाता है जिसका राग बीत गया है खत्म हो गया है वैराग्य वान, ज्यादा परिश्रम नहीं है वैराग्य में, विवेक नहीं होने के कारण हम वैराग्य नहीं धारण कर पाते|

हम बाहरी बातों को वैराग्य ले लेते हैं ऐसा कपड़ा बदल लेना या कपड़ा ना पहनना या लौकी का कमंडल मिट्टी का पात्र तो हम अपने को वैरागी मान लेते हैं| 

बात यहां नहीं रुकेगी वैराग्य का इतना ही मतलब नहीं है| यह भी एक बाह्य अंग है वैराग्य का| पर वैराग्य का सच्चा स्वरूप है बीत रागा कहीं कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा कोई भी सुख आकर्षित नहीं कर रहा लोक लोककांतर की प्रतिष्ठा मान सुख ऐश्वर्य व्यक्ति कुछ अच्छा नहीं लग रहा|

काल ने सबको घेर रखा है 

राग खत्म हो गया ऐसा उस अक्षर ब्रह्म को अविनाशी तत्व को जान पाता है जगते भयो फिरे बैरागी जै सत हरिवंश प्रपंच बंच सब य काल बयाल को खायो |

हालत यह है कि जैसे साप ने मेंढक को पकड़ रखा और मेंढक सामने पतिंगा को कीड़े को पकड़ना चाहता है उसे यह पता नहीं कि मैं खुद किसी का कवल बन चुका हूं व एक झटके में मुझे अपने पेट में ले जाएगा| 

ऐसे ही हम सब है काल के द्वारा ग्रसित है| काल ने हमें पकड़ रखा है पर हम भोग भोगना चाहते हैं हम नाना प्रकार की मन प्रतिष्ठा पाना चाहते है| जबकि पता नहीं एक झटके में हमारा अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा| 

जिनके अंतःकरण में किसी भी व्यक्ति वस्तु स्थान पद प्रतिष्ठा का राग ही नहीं रह गया है उसे कहते हैं वैराग्य वान बीत रागा राग ही नहीं है जिनका अंतःकरण निष्पाप निर्मल हो चुका है जिनके हृदय में केवल भगवत प्राप्ति की उत्कट लालसा जागृत हो गई है| ऐसा साधन संपन्न उपासक परमात्मा तत्व में प्रवेश पाता है| अध्यात्म मार्ग की ऊंचाई पर वह स्थित हो जाता है| 

ब्रह्मचर्य पालन: भगवत प्राप्ति का अनिवार्य नियम

यदि छंतू ब्रह्मचरयं चरन्ति जिनकी इच्छा एक मात्र भगवत प्राप्ति की है यदि छं तो उनको क्या करना होगा ब्रह्मचरयं चरन्ति ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा प्रत्येक इंद्रियों का निर्विषय हो जाना वास्तविक ब्रह्मचर्य है| 

केवल जनेन्द्री से ही ब्रह्मचर्य को नहीं लेते हमारी प्रत्येक इंद्री भोगों से रहित होकर भगवत अनुराग में नेत्र प्रभु को देखना चाहते हैं त्वगेन्द्री प्रभु को स्पर्श करना चाहती है

घ्राण इंद्री प्रभु के श्री अंग की गंध पाना चाहती है| श्रवण प्रभु के वचन सुनना चाहती है एक एक इंद्री अपने प्रभु में लग गई है अंतर्मुखी हो गयी है| बाहर विषयों का त्याग हो गया इसे ब्रह्मचर्य कहते हैं| 

पर प्रारंभिक ब्रह्मचर्य में जनेन्द्री का ब्रह्मचर्य अत्यंत आवश्यक है यदि जनेन्द्री व्यभिचार दोष से युक्त है तो कदापि उसे भगवत प्राप्ति नहीं हो सकती| 

शुभ गति व्यभिचारी व्यभिचारी शुभ गति चाहे असंभव और भगवत मार्ग में सबसे बड़ा दुश्मन यही व्यभिचार दोष है, काम!

इसी से हमारा हृदय मलिन होता रहता है अंधा बटे पड़ा चबाए वाली दशा रहती है 50 वर्ष हो गए अरे 50 जन्म हो जाए तुम व्यभिचार करो गंदी बातें करो गंदे चिंतन करो समय व्यतीत कर अनंत जन्म व्यतीत हो गए भगवत प्राप्ति हुई क्या?

पांच मिनट काफी है भगवत प्राप्ति में

50 वर्ष से भगवत प्राप्ति हो जाएगी क्या? पांच मिनट काफी है भगवत प्राप्ति में एक बार नाम काफी है वो स्थिति तो लाओ बार-बार बहिर्मुखी वृत्तियों के द्वारा विषयों में सुख बुद्धि कर लेने से हमारा सारा सारा अध्यात्म चिंतन बदलता रहता है| 

इसलिए लाभ नहीं मिल पाता एक रस चिंतन नहीं रह पाता बार-बार विक्षेप या विषय करते रहते हो हम सहते रहते हैं और भोगते रहते हैं एक बार तो हिम्मत करके उठो अबलो निशानी अब ना नसईहों| 

विषय के वेग को सहना होगा vyarth me viryapaat karte hai

एक बार तो दृढ़ बनो बस मन के अनुकूल चलने की बात को तुम्हें रोकना होगा तभी तुम्हारे अंदर यदि छंतो ऐसी इच्छा जागृत होगी| पक्का पक्का!

ऐसा ही है जब हम किसी विषय के वेग को सहते हैं विषय नहीं भोगते तो मन बहुत जलाता है उस जलन में फिर एक ही बात होती बस भगवत प्राप्ति हो जाए झंझट खत्म हो जाए कब तक हम इसमें चलेंगे एक बार भगवत प्राप्ति| 

वह जलन हमको भगवत प्राप्ति की इच्छा प्रकट करती है अपने लोग क्या करते हैं जलन को मिटाने की कोशिश करने लगते हैं तो भगवत प्राप्ति की इच्छा होती है  

तभी भोग प्राप्ति की तृष्णा जागृत हो जाती है भोगे हुए भोगों को बार-बार भोगने की इच्छा का नाम तृष्णा है बाहर और भीतर से कोई सहयोगी नहीं, जल रहा है उपासक| 

तब रास्ता निकलता है भगवत प्राप्ति का, तब इच्छा प्रकट होती, अब नहीं! बहुत जल लिया अब तो केवल प्रिया जू के समीप जाना है अब तो प्रभु के सानिध्य में रहना है|

नहीं इन भोगों की जलन में जलना है यहां तक पहुंचने के लिए जलना होगा तभी लिखा है सहत सहत बाढ़ै भगति तास भारत क्योंकि आग मा पायन अनित्यास नाशवान| 

काम क्रोध आदि तुम्हें प्रेरित करेंगे तुम इनके वेगो को सह जाओ यह स्थाई नहीं है आने जाने वाले हैं और यह सहन करने से नष्ट होते हैं| 

यदि भगवत प्राप्ति की तीव्र इच्छा है, तो यह एक मार्ग अपनाएं!

vyarth me viryapaat karte hai भोग, भोगने से बढ़ते हैं यदि छंतो अगर भगवत प्राप्ति की इच्छा है तो ब्रह्मचर्य चरन्ति! ब्रह्मचर्य का पालन करना ही होगा इसमें कोई गुंजाइश नहीं क्योंकि आप चल ही नहीं सकते ध्यान से पढ़ लो| 

यह मनोरंजन का मार्ग नहीं है इसमें मनही मार तनहार के वृंदावन में गाज| इसमें मन मारना होगा प्रायः यह मन को दुलार करने वाले लोग कभी भाग्य से सत्संग में भी आ जाते हैं कभी श्री विग्रह के दर्शन करने भी मंदिर पहुंच जाते हैं कभी तीर्थाटन भी करते पर इनका कोई लक्ष्य नहीं होता| हा सुन लिया सत्संग बढ़िया है| 

लक्ष्य नहीं होता यहां लक्ष्य वालों की बात हो रही यदि छंतो यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा जागृत हो रही किसी जन्म में भगवत प्राप्ति करनी तो ब्रह्मचरयं चरन्ति!

आप सच्ची मानिए जिसके निकालने में तुमको सुख की अनुभूति हो रही उसको रोकने में कितनी सुख की अनुभूति होगी?

उन्मत हो जाओगे बहुत जल्दी| आपके सारे के सारे कार्य भगवदाकार होने लगेंगे अगर आप ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे शरीर स्वस्थ मन हल्का नींद आदि पर विजय कितने गुण ही गुण|  vyarth me viryapaat karte hai

और ब्रह्मचर्य हीन – आलस्य प्रमाद, भोगों का चिंतन मन का डिप्रेशन में पहुंचना, बदन में दर्द टांगो में दर्द सर में दर्द घबराहट होना बिना किसी कारण के मन भयभीत हो रहा है भोजन अपच हो रहा है| 

व्यर्थ में वीर्यपात करते हो vyarth me viryapaat karte hai

बिना किसी प्रक्रिया के वीर्य नाश हो रहा है बिना किसी प्रक्रिया के| काहे को मृत्यु स्वयं स्वीकार कर रहे हो यह मृत्यु है चाहे भगवान दत्तात्रेय जी बोल रहे हो या भगवान कपिल देव जी बोल रहे हो जब उपासक को

संबोधन करते हैं भगवत प्राप्ति के लिए तो कहते हैं कि इस भोग वृत्ति को साक्षात मृत्यु रूप देखो यह मृत्यु है तुम्हारी जब शरीर राग त्यागना है तो तुम शरीर से भोग भोगोगे तो आसक्ति शरीर की पुष्ट होगी आसक्ति भोग सुख की पुष्ट होगी| नहीं!

कितने दिन शरीर रहेगा कितने दिन भोग रहेंगे विचार वान बनो ब्रह्मचर्य चरन्ति ब्रह्मचर्य का पालन करो|

उपासक जो ब्रह्मचारी होता है उसका खिला हुआ चेहरा रहता है जैसे कमल खिला हुआ बिना किसी कारण के उसकी मुख मुद्रा में प्रसन्नता होती है जो ब्रह्मचर्य हीन होता है बुझा हुआ चेहरा होता है तेज हीन बिना किसी कारण के वह शोक ग्रस्त लगता है, बैठा है आपको लग रहा शांत है लेकिन आप चेहरे को देखो वो एक शोक ग्रस्त है बुझा हुआ चेहरा अशांत चेहरा| 

वीर्यपात यानी हत्या, महापाप (vyarth me viryapaat karte hai)

मुख प्रसन्न तन तेज विराजा यह है ब्रह्मचर्य चरन्ति भगवत आराधन संपन्न उपासक का जैसे आग में पैर रखते हुए कोई चले तो कैसे चलेगा ऐसे ही ब्रह्मचारी की पहचान है इतनी स्फूर्ति उसके अंदर होती जैसे आग में चलने वाला पूरा पैर नहीं रख पाएगा अगला कदम रख देगा क्योंकि ताप लग रहा है| 

ऐसे उसकी स्फूर्ति होती है पैरों में उसकी आंखें एकाग्र रहती है चंचलता इधर उधर या बार-बार झपकना यह विषयी पुरुष का लक्षण है बारबार पलक झपकना ये विषयी पुरुष का लक्षण है इधर उधर ताक झाक चंचलता ऐसा बैठे तिनका तोड़ रहा पैर हिला रहा है| 

ये सब विषयी पुरुष के लक्षण है यह तो बिल्कुल साधारण स्पष्ट दिखाई देता है आदमी विषयी है या ब्रह्मचारी एक सेकंड में पता चल जाता है| लक्षण होते हैं!

आपको जब भगवत मार्ग का अवसर मिला है तो गृहस्थ हो संतान हो गई ब्रह्मचर्य से रहो| नहीं चाहिए संतान भ्रूण हत्या गर्भ हत्या जैसे महापाप करने की क्या जरूरत है| 

vyarth me viryapaat karte hai उसी वीर्य से संतान उत्पन्न होती है जिसको आप नष्ट कर रहे हो जिसको आप ऐसे पानी में बहा रहे हो व्यर्थ फेंक रहे हो तो उसको भ्रूण हत्या का पाप लग रहा तो तुमको पुण्य लग रहा है? वीर्यपात कर रहे हो तुम!

तुम्हें भी वही हत्या लग रही है क्योंकि उसमें वही जीवात्मा है जो मां के गर्भ में जाकर बालक रूप धारण कर लेती है उसको तुम नष्ट कर रहे हो और बुद्धि भ्रष्ट हो गई है समझ नहीं आता व्यर्थ में वीर्यपात करते हो व्यर्थ में| 

तुम्हारा भजन बनेगा? तुम अध्यात्म के योगी बनोगे? मजाक है अध्यात्म का मार्ग?

सावधान हो जाओ!! vyarth me viryapaat karte hai

अश्लील विचारों से बचने के लिए हमें अपने जीवन में संयम, साधना और सत्संग को अपनाना चाहिए। रात्रि का समय विश्राम और ध्यान के लिए होता है, न कि व्यर्थ चिंतन और विषय-वासना में लिप्त होने के लिए।

यदि हम इन बातों का पालन करेंगे, तो न केवल हमारी रातें दिव्य बनेंगी, बल्कि हमारा संपूर्ण जीवन भगवद-भक्ति से परिपूर्ण होगा।

होश में हो जाओ ये मन की दुलार को बंद करो जब तक इच्छा ही नहीं भगवत प्राप्ति की तो फिर तुम कैसे भगवत प्राप्ति कर पाओगे?

भगवत प्राप्ति की इच्छा कैसे होगी जब तुम्हारी इस तरह से निंदनीय वृत्तियाँ है इंद्रियों को दुलार कर रहे हो मन को दुलार कर भगवत प्राप्ति चाहते हो आचरण नीच और चाहते हो उच्च पदवी!

निष्कर्ष: vyarth me viryapaat karte hai

आज के डिजिटल युग में मोबाइल हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है, लेकिन इसका अनुचित उपयोग हमें आध्यात्मिक और मानसिक रूप से कमजोर कर सकता है।

सोते समय मोबाइल स्विच ऑफ करें: इससे हमारा ध्यान इधर-उधर नहीं भटकेगा। मोबाइल और व्यर्थ चिंतन से बचें

सोने से पहले सकारात्मक चिंतन करें: विषय भोग की आकांक्षा जागृत न हो, इसके लिए ध्यान और प्रार्थना करें।

भगवद-नाम जप करें: इससे हमारी रात भी भजनमय हो जाएगी।

अशुद्ध विचारों से बचें: यदि हम गंदे दृश्य देखते हैं, तो हमारे मन में उसी प्रकार के विचार उत्पन्न होते हैं।

विषय-वासना से दूर रहें: मोबाइल और इंटरनेट पर गलत सामग्री देखने से बचें।

सतत भजन और चिंतन का अभ्यास करें| 

सोते समय नाम-स्मरण करें: इससे हमारा संपूर्ण रात्रि भजनमय हो सकती है।

मन को एक जगह पर स्थिर रखें: जब हम भगवद-चिंतन में लीन होते हैं, तो हमारा मन भटकता नहीं है।

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