Motivational Story in Hindi Dharampal Gulati MDH Owner

    Motivational Story in Hindi Dharampal Gulati MDH Owner 

                         तांगा चलाने वाला कैसे बना अरबपति ?

                                      

 

 

 
इस आर्टिकल में हम आज बात करने वाले MDH मसाले के इतने बड़े साम्राज्य को खड़े करने वाले महाशय धरमपाल गुलाटी के बारे में जो दादा जी, महाशय जी, मसालों के शहंशाह, King Of Spices
जैसे नामों से प्रसिद्द व्यक्ति रहे हैं|
 

MDH Owner Dharampal Gulati का जीवन परिचय 

 

 

Motivational Story in Hindi Dharampal Gulati MDH Owner
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धरमपाल गुलाटी का जन्म सन 1923 के मार्च महीने में,  23 तारीख को हुआ था| उनका पालन पोषण पाकिस्तान के सियालकोट शहर में हुआ था|
 
महाशय चुन्नी लाल गुलाटी, धरमपाल गुलाटी के पिताजी थे, और श्रीमती चनन देवी उनकी माताजी थीं| उनके दो भाईयों के नाम सतपाल गुलाटी और धरमवीर गुलाटी है| श्रीमती लीलावती महाशय धरमपाल की पत्नी है, संजीव गुलाटी उनके बेटे हैं|
 
और अगर बात करें उनकी आदतों के बारे में तो उन्हें योगा करना, रेसलिंग और पतंग उड़ाने का बहुत शौक था|
 
धरमपाल गुलाटी, पाकिस्तान के एक साधारण पंजाबी समुदाय के संयुक्त परिवार में पैदा हुए थे और उनके पिताजी सन 1919 से वहीँ, महाशय दी हट्टी नाम की एक दुकान से, मसाले बेचने का काम करते थे|
 
धरमपाल गुलाटी महाशय की फैमिली धार्मिक विचारों में आस्था रखने वाली थी और वे खुद आर्यसमाज में यकीन रखने वाले इंसान थे| 
 
धरमपाल का दिल, पढ़ने लिखने का बिल्कुल भी नहीं करता था जबकि पिता जी उनके चाहते थे की उनका बेटा खूब पढ़े| पर कहीं न कहीं उनके पिता समझ चुके थे की उनके बेटे धरमपाल गुलाटी का मन, अब आगे की पढ़ाई के लिए राजी नहीं है| कैसे भी करके उन्होंने चौथी क्लास पास की और सन 1933 में, उन्होंने पांचवीं क्लास की पढ़ाई मध्य में ही छोड़कर घर पर ही रहने लगे|
 
बेटे की पढ़ाई में रूचि न होने के कारण, पहले तो बहुत ज्यादा दुखी हुए लेकिन बाद में उन्होंने अपने बेटे धरमपाल गुलाटी को कोई न कोई व्यवसाय सिखाने की ठान ली ताकि वो कम से कम अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बन सकें|
 
और इसके बाद धरमपाल के पिताजी ने अपने सुपुत्र को, लकड़ी के फर्नीचर का काम सीख लेने के लिए, एक बढ़ई के पास भेजा, आठ महीनो तक वहां लकड़ी का काम सीखने के पश्चात्, धरमपाल ने उस बढ़ई के पास जाना बंद कर दिया क्योंकि उन्हें बढ़ई का काम पसंद नहीं आया तथा उसके पश्चात उन्होंने साबुन की फैक्ट्री में, चावल की फैक्ट्री में और कपड़े के कारखाने में काम किया लेकिन वो किसी भी काम में रुक नहीं पाए|
 
और अभी पंद्रह वर्ष के हुए ही थे महाशय की 50 से भी अधिक काम सीख चुके थे और इसके सबके के बावजूद धरमपाल गुलाटी का दिल कहीं नहीं रहा था और इसके उपरांत, इनके पिताजी ने इन्हें अपने पुराने कामकाज में लगा दिया| 
 
भारत पाकिस्तान के बँटवारे के बाद,7 सितम्बर सन 1947 को महाशय धरमपाल गुलाटी पूरी फैमिली के साथ पाकिस्तान से भारत चले आये और अमृतसर शहर के एक शरणार्थियों के शिविर में पहुँचे बाद में वो अपने बहनोई के साथ किसी काम की खोज में दिल्ली पहुँच गए|
 
दिल्ली आने के बाद शुरुवाती दिनों में वो अपनी भतीजी के घर पर रुके जहाँ काफी कठिनाईयों के साथ जीवनयापन होता था वहाँ पर ठीक से न तो जल की आपूर्ति थी और न ही बिजली की कोई सुविधा थी और तो और शौचालय की भी कोई व्यवस्था नहीं थी| 
 
जब वो दिल्ली पहुँचे तब उनके पिता द्वारा दिए गए 1500 रुपये ही थे| उन्ही पैसों में से धरमपाल गुलाटी ने 650 रुपये का तांगा खरीद लिया और कनाट प्लेस से करोल बाग़ तक, यात्रियों से दो आना किराया लेने लगे|
 
सन 1948 के अक्टूबर महीने में, उन्होंने अपना ख़रीदा हुआ तांगा बेच डाला और इसके एवज में मिले पैसों से एक लकड़ी की दुकान खरीदकर, करोलबाग के अजमल खान रोड पर, एक छोटी सी दुकान शुरू कर दी|
 
और अब धरमपाल गुलाटी ने उसी छोटी सी लकड़ी की शॉप में अपना पुराना मसालों का, पुश्तैनी काम फिर से प्रारंभ कर दिया| अपनी इस दुकान का नाम गुलाटी जी ने महाशियाँ दी हट्टी सियालकोट वाले रख दिया| पहले सियालकोट में अच्छी भली दुकान चला चुके, धरमपाल उस छोटी सी दुकान में ही कड़ी मेहनत के साथ मसाले कूटने और मिर्च पीसने का काम करने लगे|
 
शुरुवाती कुछ उपलब्धियों के मिलने के परिणामस्वरुप,  बाद वो सन 1953 में, दिल्ली के चाँदनी चौक में एक और दुकान भाड़े पर ले लिए| सन 1954 में उन्होंने करोलबाग में ‘ रूपक स्टोर ‘ की स्थापना की जो उस वक़्त  Delhi में, इंडिया का पहला आधुनिक मसाले का स्टोर बना वैसे तो धरमपाल ने बाद में इस रूपक स्टोर को, अपने ही छोटे भाई सतपाल गुलाटी को दे दिया था|
 

MDH की स्थापना – 

 
सन 1959 के आते आते तक माननीय धरमपाल गुलाटी जी ने स्वयं की मैन्युफैक्चरिंग फैक्ट्री डालने का फैसला ले लिया और इसकी पहली यूनिट को स्थापित करने के लिए, कीर्तिनगर में कुछ भूमि खरीद लिया और वही पर उन्होंने, MDH  मसालों के एक बड़े साम्राज्य मतलब महाशय दी हट्टी को स्थापित कर दिया|
 
Motivational Story in Hindi Dharampal Gulati MDH Owner
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आज 2020 तक MDH  मसाले पूरे विश्व के सबसे अच्छे और बड़े ब्रांड की सूची में शुमार किया जाता है, सिर्फ हिन्दुस्तान तक ही नहीं अपितु पूरी दुनिया की बाज़ार में सबसे बड़े ब्रांडो के एक विकल्प के रूप में, विश्व भर के लोगों के सामने है और 95 की उम्र पार करने के बाद भी, धरमपाल गुलाटी स्वयं MDH उत्पादों का विज्ञापन करते हैं|
 
आज MDH मसाला कम्पनी 100 से अधिक राष्ट्रों में, अपने 60 से अधिक मसाला उत्पाद की सप्लाई कर रहा है जैसे स्विट्ज़रलैंड, अमेरिका, जापान, कनाडा और सऊदी अरबिया|
 
महाशय चुन्नीलाल चैरिटेबल नाम से  एक परोपकारी ट्रस्ट भी  आज महाशय धरमपाल गुलाटी के द्वारा चलाई जा रही है जो पूरे सेवा भाव से  परोपकारी गतिविधियाँ कर रही है जिसके तहत 250 बेड वाला एक हॉस्पिटल और झुग्गी झोपड़ी के वासियों के लिए एक मोबाइल हॉस्पिटल भी चलाया जा रहा है|
 
इस ट्रस्ट के के माध्यम से विभिन्न सामाजिक संगठनो को वित्तीय सहायता  भी मिल जाती है| इनके द्वारा एक ‘ सन्देश ‘ पत्रिका भी चलाई जाती है जो भारत के पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों को प्रकट करती है|
 
इयर 2017 में वो FMCG ( Fast Moving Consumer Goods ) के क्षेत्र में सबसे अधिक सैलरी पाने वाले C.E.O  थे| उनकी सलाना सैलरी लगभग 21 करोड़ रुपये थी| 
 
महाशय गुलाटी जी ने अपनी आत्मकथा को भी प्रकाशित किया है जिसमे उन्होंने अपने बचपन से लेकर अब तक की सफलता के पीछे के रहस्यों का खुलासा किया है|
 

MDH Owner धरमपाल गुलाटी का निधन

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महाशय धरमपाल गुलाटी, 3 दिसंबर 2020 को, दिल का दौरा पड़ने के कारण इस संसार को अलविदा कह कर चले गए|
 
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