क्यों मनाई जाती है दिवाली? काली चौदस के पीछे क्या कहानी है?

Diwali Essay in Hindi, The Diwali Festival is on which date?

When Diwali is..दिवाली कब की है ? Diwali Essay in Hindi दिवाली का त्यौहार क्यों और कब मनाया जाता है? When & Why Diwali Festival  is Celebrated? साल 2024 में लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है ?

ये सभी जानकारी आपको मिलेगी… Diwali Essay in Hindi ( Deepalwali par Nibandh )

Happy Diwali

 
एक और बेहतरीन दिन दोस्तों, आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है दोस्तों कैसे हैं आप लोग यह बताने के लिए, जय लक्ष्मी माता जरूर लिखें| ये लेख Diwali Essay in Hindi के रूप में भी हमारे बच्चों के लिए बहुत उपयुक्त है| 
 
आज हम अपने पाठकों को इस लेख के माध्यम से बतायेंगे की वर्ष 2024 में दिवाली यानि दीपावली, कब मनाएगी जायेगी?
 

Diwali kab ki hai? Diwali Festival is on which date?

 साल 2024 में दिवाली 31
October, दिन बृहस्पति को पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाएगी|

काली चौदस की कहानी Kali Chaudas Ki kahani / Chhoti Diwali

रक्तबीज, पौराणिक कथाओं का एक ऐसा असुर, जिसके सर पर, ब्रह्मा जी का हाथ था| उसे ये अद्भुत वरदान प्राप्त था की जब भी उसके रक्त की बूँद, जमीन पर गिरेगी तो उससे एक और रक्तबीज का जन्म होगा|

इस कारण रक्तबीज युद्ध में जैसे अजेय बन गया था| वह शक्तिशाली था और देवियों को हासिल करने की विकृत मानसिकता के साथ, स्वर्ग पर राज करना चाहता था| 
 
वह देवलोक जाकर देवी देवताओं पर, हमला कर दिया| सभी को मजबूरन अपने प्राण बचाकर, वहां से भागना पड़ा, पर रक्तबीज नहीं रुका| वो देवियों से मोहित होकर, उनका पीछा करने लगा|
 
देवी देवता परेशान होकर कैलाश पर्वत पहुँच गए और देवी पार्वती को सब कुछ बताया| देवी पार्वती ने सभी को पीछे हटने को कहा और खुद रक्तबीज का सामना करने के लिए खड़ी हो गयी|
 
रक्तबीज ने जब कैलाश जाकर देवी पार्वती को देखा तो ये राक्षस उन पर भी मुग्ध हो गया| देवी पार्वती ने उसे लौट जाने का आदेश दिया| रक्तबीज हँस पड़ा और देवी पार्वती की तरफ बढ़ने लगा| 
 
देवी पार्वती ने सामने रखा शिव जी का त्रिशूल उठाया और रक्तबीज पर प्रहार कर दिया परिणामस्वरूप रक्तबीज के शरीर से रक्त टपकने लगा और फिर ब्रह्मा जी के वरदान के अनुसार, रक्त के हर एक बूँद से रक्तबीज का जन्म हुआ|
 

देवी पार्वती ने धारण किया महाकाली का रूप

 
ये देखकर देवी कोपित होने लगी और सारे रक्तबीजों पर हमला कर दिया इससे कई और रक्तबीजों का जन्म हो गया| देवी पार्वती का क्रोध अब आसमान छूने लगा था| वो अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पा रहीं थीं| 
 
जब उनका गुस्सा चरम सीमा पर आ गया, उनका शरीर काला पड़ने लगा, आँखे खून से लाल हो गयीं और देखते ही देखते देवी ने एक भयंकर रूप धारण कर लिया|

पूरा ब्रह्माण्ड इस शक्तिशाली देवी के भयानक गर्जन से हिल गया, वो राक्षस जो पराक्रमी देवी के सबसे निकट खड़े थे| उनके गर्जन से ही भस्म हो गए| बाघ की खाल पहने हुए, हाथों में प्रतिशोध की तलवार लेकर, नरमुंडो की माला पहनकर, विकराल रुपी महाकाली प्रकट हुईं|

 
वो इतनी भयानक थीं की रक्तबीज डरकर भागने लगा, माँ काली ने भयंकर गर्जन किया और रक्तबीज के पीछे दौड़ने लगी| काली माँ ने शक्तिशाली प्रहार किया और वो एक एक करके सारे असुरों को निर्मम तरीके से चीरने लगीं पर उससे और रक्तबीज पैदा होने लगे|
 
Devi Mahakali Photo
 
प्रलय से क्रोधित माँ काली, उनके क्रोध से सारा संसार जलने लगा| उन्होंने एक हाथ से रक्तबीज के सर को पकड़ा और तलवार से उसके सर को धड़ से अलग करके उसे खप्पर में रख दिया ताकि एक बूँद भी धरती पर न गिर सके फिर वो रक्तबीज के शरीर को निगल गईं| 
 
काली माँ के एक ही सांस में, बाकि असुर भी उनके मुंह में समा गए| और माँ काली की चीरती हुई हंसी की आवाज से आसमान कांप उठा|
 

महाकाली ने किया रक्तबीज का वध

 इस प्रकार से असुरों के नायक रक्तबीज का भयानक वध हुआ|
 
माँ काली की गुस्से ने जैसे उनको ही वश में कर लिया था| उनके तांडव से त्रिलोक में हाहाकार मच गया| सब कुछ तबाह होने लगा| देवी देवता चिंतित होकर महादेव की शरण में गए| 
 
महादेव भी, देवी कलिका को रोकने का साहस नहीं कर पाए| ऐसा लग रहा था जैसे कुछ भी नहीं बच पायेगा और फिर से जीवन का पतन हो जायेगा|
 
महादेव के पास अब देवी को रोकने का एक ही रास्ता था, वो काली माँ के सामने एक शव की तरह लेट गए| देवी तांडव करते हुए आगे बढ़ रहीं थीं की अचानक उनका पैर महादेव के शरीर से टकराया और वो शिवजी के ऊपर खड़ी हो गईं|
 
जब उन्होंने नीचे देखा तब उन्होंने एहसास हुआ की जिन्हें वो अपने पैरों के नीचे कुचल रहीं थीं, वो उनके पति साक्षात् भगवान् शिव जी थे, तब जाकर माँ काली शांत हुईं|
 
इस प्रकार ख़त्म हुआ रक्तबीज का आतंक और माँ काली का तांडव|
 
माँ काली के शरण में दिवाली Diwali के एक दिन पहले, काली चौदस Chhoti Diwali मनाई जाती है| Kali Chaudas, Chhoti Diwali के इस दिन को काली पूजा होती है| और इस दिन को नरक चतुर्दसी के नाम से भी जाना जाता है|
 

Diwali ki Kahani: Diwali Essay in Hindi

बहुत समय पहले की बात है भारत देश के अयोध्या में, एक राजा हुआ करते थे- राजा दशरथ| उनकी तीन रानियाँ थी-कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी और उनके चार पुत्र थे – राम, लक्ष्मण,भरत और शत्रुघ्न|
 
राजा दशरथ ने अपने सबसे बड़े पुत्र यानि राम जी को, अपना उत्तराधिकारी घोषित किया| रानी कौशल्या के पुत्र राम को राजा बनता देख, सबसे छोटी रानी यानि, कैकेयी नाराज हो गई|
 
उन्होंने राजा दशरथ से कहा- राजन हमने आपकी जान बचाई थी| तो आपने हमें दो वचन मांगने को कहा था| आज वो वचन मांगने का समय आ गया है| हम चाह्ते हैं की, आप हमारे पुत्र भरत को राजा बनाये| और राम को, चौदह वर्ष के लिए वनवास भेजें|
 
यह सुनकर राजा दशरथ काफी दुखी हो गए किन्तु वो अपने वचन के कारण मजबूर थे| तो उन्होंने राम जी को वनवास भेज दिया| राम के साथ उनकी अर्धांगिनी सीता और भाई लक्ष्मण भी चल पड़े|
 
तीनो, वन में रहने लगे| एक दिन सूपर्णखा नाम की राक्षसी, एक सुंदर नारी का रूप धारण कर वहां आई| वो रामजी को देखकर मोहित हो गई और उन्हें जाकर बोली – मुझे आपसे विवाह करना है|
 
रामजी ने मुस्कुराकर कहा- देवी, मैं तो पहले से ही शादी शुदा हूँ| आप मेरे भाई लक्ष्मण के पास जाईये और उनसे पूछिए,क्या वो आपसे विवाह करेंगे ?
 
ये सुनकर सूपर्णखा, लक्ष्मण के पास चली गई लेकिन सूपर्णखा का प्रस्ताव लक्ष्मण ने भी ठुकरा दिया|
 

सूपर्णखा के लक्ष्मण जी ने काटे नाक कान 

 
ये देखकर सूपर्णखा बहुत गुस्सा हुई और अपने असली रूप में आ गई| और उसने सीता जी को मारना चाहा किन्तु लक्ष्मण ने सूपर्णखा के नाक और कान काट दिए|
 
सूपर्णखा रोते रोते अपने भाई रावण के पास गई| रावण लंका में रहता था और वो सारे राक्षसों को राजा था| उसने अपनी बहन के अपमान का बदला, लेने की ठानी|
 
उसने एक राक्षस को भेजा, इस अपमान का बदला लेने के लिए, वो राक्षस अपना रूप बदलकर एक सोने के हिरण का भेष धारण कर लिया और जंगल में  राम , लक्ष्मण और सीता की कुटी के आस पास टहलने लगा|

इस सोने के हिरण को टहलता देख, राम, लक्ष्मण और सीता जी मोहित हो गए| सीता जी राम से इस हिरण को पकड़कर लाने का आग्रह किया, तो राम जी चल पड़े उस सोने के हिरण को पकड़ने, ताकि उस हिरण को पकड़कर, वो सीता जी को दे सके| 

 जैसे जैसे राम हिरण के पास जाते, वो हिरण और दूर चला जाता| ऐसे करते करते राम, अपनी कुटी से बहुत दूर चले गए| और जब वापस लौटने में देर होने लगी तो सीता जी को चिंता होने लगी|
 
फिर उन्होंने लक्ष्मण से जंगल में जाने और रामजी का पता लगाने को कहा, की जाकर पता लगायें की रामजी कहाँ हैं ? 
 
सीता के इस अति आग्रह पर, लक्ष्मण ने जंगल में जाने का निश्चय लिया और एक लक्ष्मण रेखा खींचकर जंगल में राम को खोजने चले गए| 
 

रावण ने किया सीता का अपहरण

 इतने में राक्षस रावण, सीता को अकेला देखकर, उन्हें चुरा ले जाने के लिए एक साधू का वेश बना लिया और सीता जी के पास आया और धोखे से, सीता जी को अगवा करके ले गया|
 
कुछ देर बार जब राम और लक्ष्मण, जंगल से वापस आये तो उन्होंने देखा की- सीता जी कुटी में नहीं है, न ही कुटी के आस-पास, तो दोनों, उन्हें खोजने लगे|
 
खोजते खोजते, उन्हें एक घायल पक्षी मिला, जिसका नाम जटायु था| जटायु ने, राम जी को बताया की रावण, सीता जी को अगवा करके, ले गया है| उसने, रावण को रोकने की कोशिश की लेकिन रावण ने उसके पंख काट दिए|
 
राम और लक्ष्मण लंका की ओर चल पड़े| रास्ते में उन्हें वानरों और भालुओं की सेना मिली और उनके साथ, रावण से युद्ध करने चल पड़ी|
 
इस सेना में एक वानर थे- हनुमान, वो काफी शक्तिशाली थे और उड़ भी सकते थे| वो बड़े बड़े पहाड़ों को अपने हाथ में उठा लेने की शक्ति रखते थे|
 
हनुमान उड़कर समुन्दर के उस पार गए और देखा की रावण ने सीता जी को कैद करके रखा है|
 
ये बात जानकार रामजी ने, अपनी सेना के साथ, सागर के ऊपर पुल बनाना शुरू किया और लंका पहुँच गए|
 
लंका में इनका, राक्षस रावण और उसकी विशाल सेना के साथ, घनघोर युद्ध हुआ|
 
आखिर में राम जी ने, और उनकी सेना ने, सारे राक्षसों को मार भगाया, रावण का भी अंत हो गया और रामजी युद्ध जीत गए|
 
रावण का वध करके जीतने के बाद, राम जी और सेना, सीता जी को लेकर वापिस आ गए| 
 

अयोध्या में मनाई गई दीपावली Diwali Essay in Hindi

 चौदह साल का वनवास पूरा कर, जब राम सीता और लक्ष्मण वापस अयोध्या आये, तो पूरी अयोध्या में खुशियाँ छा गई| तब जैसे हवा में ख़ुशी की लहर, दौड़ रही थी| हर कली खिल गई और फूल मुस्कुराने लगे|
 
अयोध्यावासियों का मन, अपने राजा रघुवंश के उत्तराधिकारी, दशरथ पुत्र श्री राम के लौटने पर, प्रफुल्लित हो उठा| हर कदम पर दीप जलाये गए थे| अयोध्यानगरी जैसे एक नई दुल्हन की तरह सजी हुई हो| 
 
सारी प्रजा ने, अयोध्या को दीयों और फूलों से सजाया और भगवान् राम का स्वागत किया|
 
रावण पर राम की जीत का भी उत्सव, मनाया गया| और तब से हम हर साल, कार्तिक अमावस्या के दिन, भलाई का बुराई पर जीत का त्यौहार, दिवाली मनाते हैं| 
 
रावण पर राम की जीत, असत्य पर सत्य की जीत और राम जी के विजयी होकर अयोध्या लौटने की ख़ुशी में मनाया जाता है दिवाली का यह त्यौहार- हैप्पी Diwali festival.
 

When Diwali festival is Celebrated? कब मनाया जाता है दीपावली का त्यौहार?

 
Diwali essay in Hindi दिवाली का त्यौहार कार्तिक मॉस के अमावस्या तिथि को पूरे भारतवर्ष में, यहाँ तक की विदेशों में भी पूरे धूमधाम से मनाया जाता है|
diwali essay in hindi
 
दिवाली का त्यौहार सबसे पवित्र और जगमगाता हुआ त्यौहार है जिसे सभी लोग बड़े हर्ष और उल्लास से मनाते हैं|
 
इस दिन हर कोई अपने घरों की साफ़ सफाई करता है और घर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है|
 
दिवाली के दिन हर किसी के घर में, माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का विधान है|और इस दिन लोग अपनी दुश्मनी भुलाकर भाई चारे का सन्देश देते हैं|
 
लोग ऐसा मानते हैं की दिवाली के दिन, पूरे विधि विधान से पूजा करने पर, धन और वैभव की देवी, माँ लक्ष्मी खुश होकर सभी के घर में धन की वर्षा करती हैं| इस पावन पर्व को छोटे, बड़े और बुजुर्ग, सभी बड़ी ख़ुशी से मनाते हैं|
 
ऐसा माना जाता है की अमावस्या की इस रात को, माँ लक्ष्मी, स्वयं पृथ्वी लोक पर आती हैं और हर घर में अपना कदम रखती हैं| (Diwali Essay in Hindi)
 
ऐसे में माँ लक्ष्मी की पूजा के साथ इसकी सही विधि का भी ध्यान रखना चाहिए और सही मुहूर्त में ही पूजा करने से, पूजा का सही फल प्राप्त होता है तो चलिए जानते है …

दिवाली  2024 लक्ष्मी पूजा मुहूर्त 

दीपावली के दिन माँ लक्ष्मी पूजन में कुछ नियमों का पालन करना बहुत जरुरी है| इस दिन माँ लक्ष्मी की विशेष पूजा अर्चना करते हैं |

लक्ष्मी माँ अमावस्या तिथि के प्रदोष काल और निशीथ काल में विचरण करती हैं | इसी वजह से माँ लक्ष्मी पूजन इन्ही काल में किये जाने का विधान है| 

लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल है मुहूर्त है – 5:36 PM – 8:51PM

निशिता काल लक्ष्मी पूजा शुभ मुहूर्त – रात 11 बजकर 39 मिनट से सुबह 12 बजकर 31 मिनट तक 

कार्तिक अमावस्या तिथि आरम्भ –  3:52 PM 31 अक्टूबर 2024
अमावस्या तिथि समाप्त – 6:16 शाम, 1 नवम्बर 2024  
 

दिवाली में लक्ष्मी पूजन के नियम

 
माँ लक्ष्मी सफाई प्रिय हैं| इसलिए दिवाली के दिन साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए| जिस स्थान पर लक्ष्मी पूजन करना है उसे अच्छी तरह धोकर साफ़ कर लें| इस स्थान को गंगा जल के छिडकाव से पवित्र कर लें |
 
दिवाली के दिन माँ लक्ष्मी की पूजा उत्तर पूर्व दिशा में ही करें| इस दिन लक्ष्मी पूजन में साधक के मुंह की दिशा उत्तर दिशा में हो, ये सर्वोत्तम है| क्योंकि उत्तर दिशा को कुबेर की दिशा माना जाता है | 
 
पूजा में कोई भी सफ़ेद सामग्री जैसे सफ़ेद फूल या सफ़ेद कपड़े अर्पित न करें |
 
लक्ष्मी पूजा शुभ मुहूर्त में ही करें | धन के देवी के साथ कुबेर देव, माँ सरस्वती और गणेश भगवान की पूजा करना बिलकुल न भूलें |
 
दीपावली पर माँ लक्ष्मी की ऐसी फोटो लगायें | जिसमे गणेश भगवान माँ सरस्वती के दाईं तरफ विराजमान हों |
 
दिवाली पर लक्ष्मी जी की ऐसी मूर्ति की पूजा न करें जिसमे वो खड़ीं हो| ऐसी मूर्ति माँ लक्ष्मी के जाने का प्रतीक मानी जाती है|
 
पूजा की चौकी पर माता लक्ष्मी की मूर्ति के पास चावल रखें | माँ के दोनों तरफ एक एक दीपक जलाएं | और एक सात मुखी दिया माँ के समक्ष जरूर जलाएं |
 

निष्कर्ष :Diwali Essay in Hindi

 
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