Gurunanak Dev Ji History Biography Nanak Jivan Yatra
Sri Gurunanak Dev Ji History धन धन गुरु नानक देव महराज जी, सारे जगत के कल्याण, सत्य का मार्ग बताने, मानवता का पाठ पढ़ाने, एक ओंकार से हमें जोड़ने के लिए, इस संसार में आये| Sri Guru Nanak Jivan Yatra
अन्धकार से हमें निकाल प्रकाश की ओर, और अधर्म से धर्म की ओर ले जाने वाले, धन धन guru nanak dev ji महराज के जीवन के कुछ भागों (Shri Guru Nanak Dev ji History Biography) को बताने का प्रयास हम लेख के माध्यम से कर रहें हैं|
हमें मालूम है की Sri Guru Nanak Jivan Yatra ये कार्य हमारे लिए मुश्किल है की, हम धन गुरु नानक देव जी के जीवन यात्रा से (Shri Guru Nanak Dev ji History Biography), आपको रूबरू भी करा सकें|
क्योंकि इसके लिए अगर समुन्दर के पानी को, स्याही बनाकर भी लिखे और जबकि सारे शब्दों का उपयोग भी करें, तो ये सारे शब्द मिलकर भी धन गुरु नानक देव जी महराज के जीवन इतिहास और उनकी महिमा का बखान नहीं कर सकेंगे|
धन Shri Guru Nanak Dev ji महराज के जीवन से जुड़ी कुछ वाक्याओं घटनाओ को बताने का हमारा ये प्रयास है| हमारी कोशिश में कुछ कमी रह जाए तो इसके लिए हम आपसे, क्षमा प्रार्थी हैं|
Sri Guru Nanak Dev Ji Life History
एक ऐसा युग जब शासक प्रजा पर बड़ा अत्याचार करते थे, शासक के जुल्मो से जनता त्राहि त्राहि कर रही थी हर ओर अज्ञान का अंधकार फैला हुआ था| धार्मिक आस्थाओं को जबरन खंडित किया जा रहा था और शासन द्वारा बलपूर्वक महाराज के हुक्म को मानने के लिए, जनता को विवश किया जाता था|
लोग एक दूसरे से जातियां और धर्म के आधार पर, नफरत किया करते थे| हर तरफ अत्याचार, जुल्म का बोलबाला था| गरीबों, असहायों के दुःख दर्द को दूर करने, कोई मददगार सामने नहीं आता था|
Shri Guru Nanak Dev ji Biography History
श्री गुरु नानक देव जी की जिंदगी से परिचय
ऐसे समय में लोगों के दुखों को हरने, उन्हें सही मार्ग दिखाने, ज्ञान के प्रकाश को जलाने, समस्त जीव के कल्याण के लिए धन Shri Guru Nanak Dev ji ने, इस धरती पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन 15 अप्रैल 1469 को, माता तृप्ता के कोख से जन्म लिया| धन गुरु नानक देव जी महराज के पिता का नाम, मेहता कालू राय था जोकि खेती बाड़ी और व्यापार करते थे और साथ ही गाँव के पटवारी भी थे|
पाकिस्तान में लाहौर से 30 मील दूर, तलवंडी में जिस स्थान पर गुरु नानक देव जी महराज का जन्म हुआ, उसे आज नानकाना साहिब के नाम से जाना जाता है| गुरु नानक देव जी महराज के जन्म पर, विद्वान पंडित गोपाल दास ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था की ये बालक ईश्वर का अवतार है जो जगत के कल्याण हेतू पृथ्वी पर आया है|
Gurunanak Dev Ji History प्रधान पटवारी कालू राय मेहता के घर गुरु नानक देव जी महराज का लालन पालन से होने लगा| गुरु नानक देव जी महराज के जन्म के पहले, माँ तृप्ता ने एक पुत्री को जन्म दिया था जिनका नाम नानकी था| बहन नानकी की वजह से ही, भाई का नाम नानक पड़ा था जबकि उनकी बहन का नाम, उनके ननिहाल में रहने के कारण, नानकी पड़ा था |
बड़ी बहन नानकी अपने छोटे भाई, गुरु नानक देव जी का बहुत ध्यान रखती थी| धन Shri Guru Nanak Dev ji का बचपन तलवंडी गाँव में ही गुजरा| उनका मन, बचपन से ही अध्यात्म की तरफ रहने लगा| ये सांसारिक सुख से परे रहा करते| उनके साथी जब खेल कूद में अपना समय व्यतीत करते तो वे आँखों को बंद करके, आत्मचिंतन में निमग्न हो जाते|
Shri Guru Nanak Dev ji का बचपन में ही स्कूल छूटा
सात आठ साल की उम्र में स्कूल छूट गया क्योंकि भगवद प्राप्ति के सम्बन्ध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें, ससम्मान घर छोड़ने आ गए| जिसके पश्चात वो अपना पूरा वक़्त, अध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे|
बचपन से ही धन गुरु नानक देव महाराज जी के, आध्यात्मिकता की ओर झुकाव को देखकर, उनके पिता परेशान रहने लगे एवं उन्हें भैंसे चराने का काम दे दिया गया|
Shri Guru Nanak Dev ji के चमत्कार
Gurunanak Dev Ji History एक बार भैंसे चराते चराते धन गुरु नानक देव महाराज जी सो गए| भैंसे एक किसान के खेत में चली गईं और सारी फसल चर डालीं| खेत मालिक शोर शराबा करने लगा मगर जब उसका खेत देखा गया तो सब ही आश्चर्य में पड़ गए क्योंकि, फसल का एक पौधा भी, नहीं चरा गया था|
एक बार की बात है Shri Guru Nanak Dev ji महाराज सत्कार्तार के ध्यान में डूबे एक पेड़ के नीचे लेट गए| कुछ देर में ही उन्हें गहरी नींद आ गई| कुछ देर बाद, बालक नानक के चेहरे पर धुप पड़ने लगी| उसी समय, एक सफ़ेद रंग का बड़ा सांप वहां आया और अपना फन इस तरह से फैलाकर खड़ा हो गया की धूप गुरु नानक देव जी महाराज के चेहरे पर, पड़ न सके| जब तक धूप पड़ती रही, वह सांप अपना फन फैलाये इधर उधर सरकता रहा|
उसी समय नगर का राजा, घोड़े पर सवार होकर अपने कारिंदे के साथ, उधर से निकला, उस दृश्य को देखकर दोनों ठिठक कर खड़े हो गए| राय बुलार ने अपने सेनापति से बोला, देखिये ये बच्चा कोई सामान्य बालक नहीं है| ये बच्चा आगे चलकर, या तो सम्राट बन जायेगा या फिर कोई महान गुरु|Gurunanak Dev Ji History
इनके बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं घटीं जिन्हें देखकर, गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे| बचपन से ही इनमे श्रद्धा रखने वालों में इनकी बड़ी बहन नानकी तथा नगर के राजा राय बुलार प्रमुख थे|
धन धन Shri Guru Nanak Dev ji का विवाह
सन 1485 ईसवी में गुरु नानक देव जी महाराज जी का विवाह बटाला निवासी मूला की कन्या सुलखनी से हुआ| 28 साल की उम्र में, श्रीचन्द्र के रूप में बड़े पुत्र और 31 साल की उम्र में दूसरे पुत्र लक्ष्मी चन्द्र की प्राप्ति हुई|
गुरु नानक देव जी महाराज के पिता ने उन्हें कृषि, व्यापार आदि में लगाना चाहा लेकिन उनकी सारी कोशिशें नाकाम साबित हुईं|
Shri Guru Nanak Dev ji का सच्चा सौदा
Gurunanak Dev Ji History एक बार पिता जी ने उनसे कहा की ये लो बीस रुपये, जाओ जाकर कुछ सच्चा सौदा करो| गुरु नानक देव जी महाराज ने पिता कालू राय से बीस रुपये लेकर, मर्दाना के साथ सौदा करने निकल पड़े| वे एक मेले में पहुंचे जहाँ साधू संत बड़ी संख्या में भूखे प्यासे थे| Shri Guru Nanak Dev ji महाराज ने सभी को भर पेट लंगर खिलाया और उन्हें दान पुण्य भी किया और फिर वापस लौट आये|
पिता जी को जब ये बात पता चली तो उन्होंने गुस्से में आकर गुरु नानक देव जी महाराज को एक थप्पड़ जड़ते हुए कहा, मैंने ये पैसे सौदा करने के लिए दिए थे| इसका जवाब देते हुए बड़े ही संतुष्टि भरे हुए शब्दों में गुरु नानक देव जी महाराज ने कहा पिताजी – यही तो है सच्चा सौदा|
बता दें की Shri Guru Nanak Dev ji महाराज द्वारा उस समय शुरू की गई लंगर की प्रथा आज भी, दुनिया भर में, हर गुरूद्वारे में शुरू है जहाँ संगत को लंगर बताया जाता है|
नवम्बर 1504 में, नानकी के पति यानी उनके बहनोई, जयराम ने गुरु नानक देव जी महाराज को अपने पास, सुल्तानपुर बुला लिया| नवम्बर 1504 से अक्टूबर 1507 तक, वे सुल्तानपुर में ही रहे| अपने बहनोई जयराम की कोशिशों से वे सुल्तानपुर के गवर्नर, दौलत खान के यहाँ मादी रख लिए गए|Gurunanak Dev Ji History
श्री गुरु नानक देव जी भजन, दान और तीर्थ यात्रा
ये अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा गरीबों और साधुओं को दे देते थे, कभी कभी ये पूरी रात, परमात्मा के भजन में ही गुजार देते थे| Shri Guru Nanak Dev ji, हर सुबह वेई नदी में नहाने जाया करते थे|
कहतें हैं एक दिन वे नहाने के लिए गए तो तीन दिन तक वापस नहीं लौटे| और जब वापस लौटे तो जपजी साहिब की वाणी, उनके मुख से निकल रही थी| इसके बाद वो अपने परिवार का भार, अपने ससुर मूला को सौंपकर, मर्दाना अपने भाई लहना, बाला और रामदास, इन चार साथियों को लेकर, तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े और ये चारो ओर घूमकर, धर्म का प्रचार प्रसार करने लगे|
सन 1521 ईसवी तक इन्होने तीन यात्रा चक्र पूरे किये जिनमे भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य स्थान शामिल थे| इन यात्राओं को पंजाबी में उदासियाँ कहा जाता है| धर्म के प्रचार प्रसार के लिए की गई यात्रा में, इन्होने बहुतों का ह्रदय परिवर्तन किया| ठगों को साधू बनाया, अहंकारियों का अहंकार दूर कर, उन्हें इंसानियत का पाठ पढ़ाया|Gurunanak Dev Ji History
निष्कर्ष
Shri Guru Nanak Dev ji का व्यक्तित्व असाधारण था| संगत पर उनके विचारों का खासा असर हुआ उनमे पैगम्बर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्म सुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्ति, विश्वबंधु आदि सभी गुण मौजूद थे|
जातिगत वैमनस्य की समाप्ति के लिए गुरू नानक देव जी जी ने, संगत की परम्परा भी शुरू की,जहाँ प्रत्येक जाति के लोग साथ साथ इकट्ठे होते थे| प्रभु आराधना किया करते थे, गुरूजी ने अपनी यात्रा के दौरान हर उस शख्स के अतिथि सत्कार को स्वीकार किया|
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