आज इस आर्टिकल की मदद से हम Swami Vivekananda के जीवन को समझने का प्रयत्न करेंगे| वो मात्र ऐसे महापुरुष हैं जिन्हें पूरा संसार आदर्श मानता है और मानती रहेगी| बहुत महान-महान व्यक्तियों ने इनसे प्रेरणा लेकर, अपने जीवन में, चमक डाली है|
चाहे वो नेता जी यानि सुभाष चन्द्र बोस हों, या फिर वो लाल बहादुर शास्त्री जी हों, चाहे वो हमारे प्रधानमंत्री 2020 नरेन्द्र भाई मोदी हों, या राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी हों, 21 सदी के सबसे जिनिअस वैज्ञानिक एलन मस्क हो, बहुत लम्बी कतार है|हर किसी ने Swami Vivekananda प्रेरणा ली है|
ये पहले इंसान थे, जो हमारे वेदों की ताकत, हमारे उपनिषदों की शक्ति को, पूरी दुनिया में फैला दिया और झुका दिया| पूरी दुनिया में, भारत के झंडे का सम्मान बढ़ा देने वाले, स्वामी विवेकानंद ने भारत के अध्यात्मिक उत्थान के लिए अपने छोटे से जीवन काल में बहुत कार्य किया|
19 वीं सदी के महाज्ञानी, श्री रामकृष्ण परमहंस के चेले एवं भारत के साहित्य और संस्कृति के महत्व को, देश विदेश में समझाने वाले, स्वामी विवेकानंदने, सम्पूर्ण विश्व में हिन्दू धर्म के महत्व को बताया|
स्वामी विवेकानंद ने गरीबों की सेवा और कल्याण के लिए ‘रामकृष्ण मिशन‘ को स्थापित किया| उन्होंने देश के नौजवानों को, प्रगति करने के लिए नए जोश और उत्साह भर दिया|
साल 1984 में भारत सरकार ने स्वामी जी के जन्मदिवस यानि 12 जनवरी को National Youth Day राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा कर दिया था|
और तब से पूरा देश 12 जनवरी यानि उनके जन्मदिन को नेशनल यूथ डे के रूप में मनाता आ रहा है|
Swami Vivekananda Hindi Biography Story
देखिये लेख में, कुछ लिखने से पहले हम आपसे आग्रह करना चाहेंगे की ये आपकी नैतिक जिम्मेवारी है की इस लेख को सभी पाठक अधिक से अधिक लोगों के बीच, जरुर शेयर करेंगे|
Swami Vivekananda Biography in Hindi
सर्वप्रथम Swami Vivekananda जी के बचपन के बारे में जानते हैं, इनकी जो माँ थी, भुनेश्वरी देवी, उन्होंने भगवान शंकर से प्रार्थना की- भगवान शिव शंकर मुझे, आप एक प्यारा सा बेटा दे दीजिये|
शंकर भगवान इनकी माताजी के स्वप्न में, भुवनेश्वरी देवी को दर्शन देते हैं और उनसे कहते हैं परेशान मत होना, आ रहा हूँ, मैं!
एक महापुरुष का जन्म होता है, 12 जनवरी 1863 को, सोमवार की सुबह, मकरसंक्रांति के दिन, सूर्योदय से ठीक पहले 6:33 AM बजे, हिंदुस्तान के कलकत्ता शहर में! उस समय भारत देश में, अंग्रेज शासन किया करते थे|
पश्चिमबंगाल की, बंगाल परम्परा में विश्वास रखने वाले, एक बंगाली फैमिलीमें स्वामी विवेकानंद का जन्म होता है| इनके घर वालों ने बचपन में इनका नाम नरेन्द्र नाथ दत्त रखा और ये कुल 9 भाई बहन थे|
इनके पिता जी, विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट में, एक अधिवक्ता यानि अटोर्नी थे और स्ट्रिक्ट भी थे इनको लेकर,इनकी माता जी भुवनेश्वरी देवी, एक धर्मपरायण गृहिणी थी|
Essay on Swami Vivekananda
नरेन्द्र के दादाजी, फारसी और संस्कृत भाषा के, एक अच्छे विद्वान व्यक्ति थे|
Swami Vivekananda के बचपन से ही, इनके घर में धार्मिक ग्रंथो रामायण, महाभारत का प्रभाव, बहुत ज्यादा था और बचपन से ही स्वामी विवेकानंद, भगवान से जुड़ने लगे थे और तो और ध्यान और समाधि में बैठने का काम, उन्होंने बहुत ही, कम उम्र से ही, शुरू कर दिया था|
स्वामी जी भगवान राम से, बहुत प्रेरित थे| महाभारत, रामायण जैसे पवित्र ग्रंथो की कहानियाँ इनके दिमाग में घर कर गई थीं|
बचपन से ही स्वामी जी भगवान के सम्बन्ध में जानने के लिए बड़े जिज्ञासु थे| और उस समय समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार के रीति रिवाजों, मान्यताओं और जातिवाद के बारे में, कठोर सवाल किया करते थे
विवेकानंद जी बचपन में बहुत नटखट किस्म के बालक थे| और लोगों का बहुत मजाक भी बनाया करते थे| स्वामी विवेकानंद बहुत कोमल दिल के स्वामी थे| बाल्यकाल से ही नरेन्द्र के मन में, सन्यासियों के प्रति बहुत श्रद्धा थी|
Swami Vivekananda Hindi Biography Story
एक घटना है, Swami Vivekananda का दिल इतना अच्छा था की ये कहीं भी अगर किसी साधू सन्यासी को देख लेते थे तो ये सब कुछ दे देते थे! पैसा है, ले जाओ! खाना है, ले जाओ|
ये देखकर, इनके माता-पिता ने इन्हें, कमरे में बंद कर दिया और कहा इसे बंद करो इससे पहले ये सबकुछ लुटा न दे हमारा बेटा|बंद कमरे की खिड़की से उन्हें जो कोई मार्ग में आते जाते दिख जाता उसको खिड़की से सारा सामान उठा उठा के, दे दिया करते थे| ये लो ! ये लो ! तुम ले जाओ ! ये सब!
स्वामी विवेकानंदपढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी अव्वल थे| उन्होंने संगीत में, गायन और वाद्य यंत्रो को बजाने की, शिक्षा ग्रहण की थी|
Swami Vivekananda Education
स्वामी विवेकानंद जब आठ साल के हुए, सन 1871 में, तब इनकी स्कूली पढ़ाई के लिए, इनका ईश्वर चन्द्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटन संस्थान स्कूल में, एडमिशन करवा दिया गया|
और यहाँ पर उन्होंने अपनी, शुरुवात की छः साल की, शिक्षा ग्रहण की 1877 तक और फिर साल 1877 से साल 1879 तक दो साल, स्वामी विवेकानंद, अपने परिवार के साथ, कलकत्ता छोड़कर, रायपुर में रहे|
लेकिन जब दो साल बाद फिर से इनका परिवार, कलकत्ता वापस लौट आया, तो 1979 में इन्होने अपनी मीट्रिक की परीक्षा पास की और प्रेसिडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में, एकमात्र छात्र बने, जिसने सर्वोच्च अंक प्राप्त किया|
एक साल बाद Swami Vivekananda ने कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में प्रवेश लिया और फिलोसफी पढना आरम्भ किया, यहाँ उन्होंने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी फिलोसफी और यूरोपीय देशों के इतिहास के बारे में, ज्ञानार्जन किया|
Swami Vivekananda Hindi Biography Story
रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात
साल 1881 में स्वामी विवेकानंद जी की भेंट रामकृष्ण परमहंस से हुई| श्री रामकृष्ण परमहंस, माँ काली के बहुत बड़े उपासक हुआ करते थे|
साल 1884 में, नरेन्द्र नाथ ने अपनी स्नातक की शिक्षा, कला वर्ग में पूरी की| विवेकानंद की बेहद ही गजब और आश्चर्यजनक याददाश्त की वजह से लोग श्रुतिधर (विलक्षण स्मरण शक्ति वाला व्यक्तित्व) भी कहते थे|
स्वामी विवेकानंदका ज्ञान, बीतते दिनों के साथ, तेज़ी से बढ़ ही रहा था, साथ ही उनके तर्क भी अत्यन्त प्रभावी, होते जा रहे थे| उनके मन में परमेश्वर के अस्तित्व की बात और भी गहरी होती जा रही थी, और इसी ने उन्हें ब्रह्म समाज से जोड़ा|
परन्तु उनके प्रार्थनाओं के तरीके और भजन आदि में, निहित सार भी उनकी ईश्वर के प्रति, जिज्ञासा को शांत नहीं कर पाया| विवेकानंद एक बड़े स्वप्न द्रष्टा थे|
सन 1881 में स्वामी रामकृष्ण परमहंस से, अपनी पहली मुलाकात के दौरान ही, अपनी आदत और जिज्ञासु स्वाभाव के कारण, उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से भी पूछ लिया- क्या उन्होंने ईश्वर को देखा है?
तो रामकृष्ण परमहंस ने जवाब दिया की, हाँ मैंने ईश्वर को देखा है और बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह तुमको देख पा रहा हूँ!
नरेन्द्र यानि Swami Vivekananda को इस तरह का जवाब देने वाले प्रथम व्यक्ति रामकृष्ण परमहंस ही थे और नरेन्द्र उनकी बातों की सत्यता को, अनुभव भी कर पा रहे थे|
और अब तक वो पहली बार, किसी मानव रूप से इतना अधिक प्रभावित हुए थे| इसके बाद उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से कई दफा मुलाकातें की|
रामकृष्ण परमहंस को स्वामी जी ने अपना गुरु बना लिया
अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने में सक्षम इस इंसान यानि परमहंस को, उन्होंने अपना गुरु मान लिया|
सिर्फ पांच साल के बाद 1886 में, स्वामी श्री रामकृष्ण परमहंस ने अपने शरीर का त्याग कर दिया और पंचतत्व में विलीन हो गए| स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने, अपनी मृत्यु दर्शन के पहले ही, नरेन्द्र नाथ दत्त को अपना उत्तराधिकारी बना चुके थे|
Swami Vivekananda Hindi Biography Story
स्वामी विवेकानंद की यात्रा की शुरुवात
और साल 1890 में Swami Vivekanandaने लम्बी-लम्बी यात्राएं करनी शुरू कर दी, उन्होंने लगभग पूरे देश में यात्रा की| अपने सफ़र के बीच, वो वाराणसी, अयोध्या, आगरा, वृन्दावन और अलवर आदि स्थानों पर गए और इसी दौरान उनको नाम मिला स्वामी विवेकानंद| ये नाम उन्हें खेत्री के महराज ने दिया था|
अब तक Swami Vivekananda वेदादि के प्रख्यात विद्वान और एक नौजवान धार्मिक गुरु बन चुके थे|इन यात्राओं के दौरान वो राजाओं के महल में भी रुके और गरीबों की कुटिया में भी|
इससे उन्हें भारत के अलग अलग स्थानों और वहाँ निवासियों के सम्बन्ध में काफी महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिली|
उन्हें समाज में जाति पाति के नाम पर फैली तानाशाही की जानकारी मिली| सबसे अंततः उन्हें यह समझ आया की, यदि उन्हें एक विकसित भारत का निर्माण करना है तो उन्हें इन बुराईयों को ख़तम करना होगा|
स्वामी विवेकानंद की शिकागो यात्रा
अपनी यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद के साथ उनकी कुछ किताबें हमेशा रही जिसमे श्रीमदभगवत गीता भी थी| इस भ्रमण के दौरान उन्होंने भिक्षा भी मांगी|
सन 1893 में Swami Vivekananda, अमेरिका के शिकागो शहर पहुंचे, यहाँ सम्पूर्ण विश्व के धर्मो का सम्मलेन आयोजित किया गया था| इस सम्मलेन में, एक विशेष जगह पर, हर धर्म के धर्म प्रतिनिधियों ने अपने धर्म की किताब रख रखी थीं|
उसी स्थान पर, हमारे देश के धर्म के व्याख्या के लिए, श्रीमदभगवत गीता की एक छोटी किताब रखी गई थी, जिसका कुछ लोग उपहास भी कर रहे थे|
परन्तु जैसे ही Swami Vivekananda के भाषण देने का नंबर आया और उन्होंने अपना भाषण देना आरम्भ किया, और तुरंत ही सारा हाल तालियों की गडगडाहट से गूँज पड़ा, क्योंकि स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण के शुरू में ही जो शब्द बोले- मेरे अमेरिकी भाईयों और बहनों !
इसके बाद, उनके द्वारा किये गए अपने धर्म के वर्णन से भी, वहां मौजूद लोग अभिभूत हो गए और हमारी धार्मिक किताब श्रीमदभगवत गीता का सभी ने लोहा माना|
Swami Vivekanandaने लगभग दो सालों तक, पूर्व एवं मध्य यूनाइटेड स्टेट्स में लेक्चर देने में व्यतीत किये, जिनमे मुख्य रूप से शिकागो, न्यू यॉर्क, डेटराइड और बोस्टन शामिल है|
वेदांत सोसाइटी की स्थापना
वर्ष 1894 में न्यूयॉर्क में, स्वामी विवेकानंद ने वेदांत सोसाइटी को स्थापित किया और अगले साल यानि वर्ष 1895 तक, उनके बेहद ही व्यस्त कार्यक्रमों के कारण उनकी दिनचर्या प्रभावित हो रही थी और इसका सीधा प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ने लगा था इसलिए अब उन्होंने अपने लेक्चर यात्रा को अभी विराम, देने का निर्णय ले लिया और वेदान्त और योग पर आधारित, छोटी कक्षाओं को शिक्षा देने लगे|
इस साल के नवम्बर महीने में Swami Vivekananda, एक आयरिश लेडी जिनका नाम था – मार्गरेट एलिजाबेथ, से मिले, जो बाद में आगे चलकर उनके मुख्य शिष्यों में से एक बनी, फिर बाद में उन्हें भगिनी, यानि की सिस्टर निवेदिता के नाम से जाना गया|
सन 1896 में स्वामी जी, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के मैक्स मुलर से मिले जो एक इंडो लोजिस्ट थे और स्वामी विवेकानंद जी के गुरु श्री रामकृष्ण परम हंस की जीवनी swami vivekananda biography लिखने वाले पश्चिम में प्रथम व्यक्ति थे| Swami Vivekananda Hindi Biography Story
हार्वर्ड और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रस्ताव से इंकार
उनके ज्ञान और विद्वता को देखते हुए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी से उन्हें अकादमी पद का प्रस्ताव दिया गया परन्तु अपने मठवासी जीवन के बन्धनों के कारण, Swami Vivekananda जी ने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया|
पश्चिमी राष्ट्रों के चार साल के लम्बे सफ़र के बाद, साल 1897 में स्वामी विवेकानंद जी अपने वतन हिन्दुस्तान पुनः लौट आये, और अपनी यूरोप यात्रा के बाद, स्वामी विवेकानंद भारत के दक्षिणी क्षेत्र के स्थानों जैसे मद्रास, रामेश्वरम, पंबन, मदुरई और कई जगहों पर लेक्चर देने गए|
वो अपने भाषण में सदैव, निम्न वर्ग के लोगों की उत्थान की बात पर जोर देते थे और इन सभी स्थानों पर सामान्य पब्लिक और राज परिवारों ने इनका उत्साह के साथ स्वागत किया|
सन 1899 में अपने गिरते स्वास्थ्य के बावजूद, Swami Vivekanandaजी दूसरी बार अपनी पश्चिम की यात्रा के लिए निकले| इस बार उनके साथ इनकी शिष्य निवेदिता और एक स्वामी तुर्यानंद भी गए|
इस दौरान उन्होंने सैन फ्रांसिस्को और न्यू यॉर्क में, वेदांत सोसाइटी की स्थापना की और कैलिफ़ोर्निया में शांति आश्रम को स्थापित किया| सन 1900 में वे धर्म सभा हेतु पेरिस चले गए| यहाँ उनके लेक्चर शिवलिंग की पूजा और श्री मदभगवत गीता की सत्यता पर आधारित हुए| इस सभा के बाद भी वे कई स्थानों पर गए|
स्वामी विवेकानंद की हिंदुस्तान वापसी
9 दिसंबर 1900 को वापस कलकत्ता वापस चले आये और फिर वेल्लूर स्थित, वेल्लूर मठ गए| वहां इनसे मिलने वालो में जन साधारण जनता से लेकर राजा और राजनैतिक नेता भी शामिल हुए|
How did Swami Vivekananda die?
4 जुलाई 1902 को, अपनी जिंदगी के अंतिम दिन को, स्वामी विवेकानंद, प्रातः जल्द ही बिस्तर छोड़ दिए थे, वे वेल्लूर स्थित मठ पहुँचे और वहीँ पर उन्होंने 3 घंटो तक ध्यान किया और फिर वहां मौजूद अपने शिष्यों को संस्कृत व्याकरण, फिलासफी, वेदों का ज्ञान, और योग की शिक्षा दी| 4 जुलाई को swami vivekananda jayanti होती है|
शाम को 7 बजे स्वामी विवेकानंद अपने कमरे में गए और किसी को भी उन्हें डिस्टर्ब करने से मना कर दिया| रात 9 बजकर 10 मिनट पर ध्यान के दौरान उन्होंने अपना मानव शरीर त्याग swami vivekananda death दिया|
उनके शिष्यों के अनुसार उन्होंने महासमाधि ली थी और Swami Vivekanandaका अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया|
स्वामी विवेकानंद की शिक्षा और फिलासफी कुछ इस प्रकार से है| स्वामी विवेकानंद की विचारों में राष्ट्रीयता हमेशा सम्मिलित रही| वे हमेशा देश और देशवासियों के विकास और उत्थान के लिए हमेशा कार्यरत रहे|
उनका कहना था की हर एक मनुष्य को अपनी जिंदगी में एक विचार या संकल्प, निश्चित कर लेना चाहिए और अपनी पूरी जिंदगी उसी संकल्प के लिए न्यौछावर कर देना चाहिए तब ही आप सफल हो सकें|
स्वामी विवेकानंद का योगदान
स्वामी विवेकानंद का योगदान कुछ इस प्रकार से है, अपने जीवन काल में स्वामी जी ने जो भी कार्य किये और इसके द्वारा जो योगदान दिया उसके क्षेत्र को हम निम्न तीन भागों में बाँट सकते हैं –
1- वैश्विक संस्कृति के प्रति योगदान
2- भारत के प्रति योगदान
3-हिंदुत्व के प्रति योगदान
वैश्विक संस्कृति के प्रति महत्वपूर्ण योगदान- Swami Vivekanandaने धर्म के बारे में एक नई और विस्तृत समझ विकसित की| उन्होंने शिक्षा और आचरण के नए सिद्धांत स्थापित किये|
उन्होंने सभी लोगों के मन में, प्रत्येक इंसान के प्रति नया और विस्तृत नजरिया रखने की प्रेरणा दी| उन्होंने पूर्व और पश्चिम के देशों के बीच, जुड़ाव का कार्य किया|
भारत के प्रति योगदान – उन्होंने भारत के साहित्य को अपनी रचनाओं के द्वारा और समृद्ध बनाया | उनके प्रयास से लोगों का संस्कृत से लगाव उत्पन्न हुआ| Swami Vivekananda ने भारतीय संस्कृति का महत्त्व समझाया और पश्चिमी सभ्यता के दुष्प्रभावों को वर्णित किया|
देश में जातिवाद को ख़त्म करने के लिए स्वामी जी ने निचली जातियों के कार्य के महत्व को समझाया और उन्हें समाज की प्रमुख धारा से जोड़ दिया| धन्यवाद
Books by Swami Vivekananda
उनकी कुछ रचनायें books written by swami vivekananda, जो उनके जीवन काल में ही प्रकाशित हुईं| उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी बहुत सी रचनाएँ प्रकाशित हुई|