Biography of Kabirdas: About Sant in Hindi
संत कबीर दास का जीवन परिचय – कबीर के जन्म के सम्बन्ध में बहुत से मत हैं , कुछ लोगों के अनुसार वे जगद्गुरु रामानंद स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे | ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को ,लहरतारा तालाब के पास फेंक आई | उस नवजात बच्चे को , नीरू नाम का जुलाहा अपने घर ले आया , उसी ने उसका पालन पोषण किया और आगे चलकर यही बच्चा संत कबीर कहलाया –about kabirdas in hindi
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About Kabirdas in Hindi |
Sant Kabirdas in Hindi: संत कबीर दास का जीवन परिचय
कतिपय कबीर पंथियों की मान्यता है की संत कबीर का जन्म काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ|
कुछ लोगों का कहना है की वो जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानंद के प्रभाव से , उन्हें हिन्दू धर्म की बातें मालूम हुईं | एक दिन एक पहर रात रहते ही , कबीर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े | रामानंद जी गंगा स्नान करने के लिए , सीढ़ियाँ उतर रहे थे की तभी उनका पैर कबीर दास के शरीर पर पड़ गया उनके मुंह से तत्काल राम राम शब्द निकल पड़ा | उसी राम को कबीर ने दीक्षा मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपना गुरु स्वीकार लिया | संत कबीर के जन्मस्थान के सम्बन्ध में भी दो मत हैं – काशी , मगहर
मगहर के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है की कबीर ने अपनी रचना में वहां का उल्लेख किया है : पहिले दरसन मगहर पायो पुनि कासी बसे आई अर्थात काशी में रहने से पहले उन्होंने मगहर देखा , मगहर आजकल वाराणसी के निकट ही है और वहां कबीर का मकबरा भी है |
कबीर दास की शिक्षा – Kabirdas Education
समय के साथ कबीरदास बड़े होने लगे | कबीर जी पढ़े लिखे नहीं थे , अपनी अवस्था के बालकों से एकदम भिन्न रहते थे | मदरसे भेजने लायक साधन , माता – पिता के पास नहीं थे | जिस पिता के पास हर दिन भोजन के लिए ही चिंता रहती हो , उस पिता के मन में , कबीरदास को पढ़ाने का विचार भी न उठा होगा | यही कारण है वो स्कूली विद्या नहीं प्राप्त कर सके थे |
मसि कागद छूवो नहीं , कलम गहि नहिं हाथ ( sant kabir dohe )
ये रचनाये कबीर के द्वारा ही लिखी हुईं है
कबीर का वैवाहिक जीवन – Kabirdas’ Marriage Life
कबीर का विवाह, वानखेडी वैरागी की पालिता कन्या , “लोई ” के साथ हुआ था | कबीरदास को ” कमाल ” और ” कमाली ” नाम की दो संताने भी थीं , जबकि कबीरदास को कबीर पंथ में बाल ब्रह्मचारी माना जाता है | इस पंथ के अनुसार ” कामात्य ” उनका शिष्य था और ” कमाली ” और पत्नी लोई उनकी शिष्या थीं | ” लोई शब्द का इस्तेमाल कबीरदास ने एक स्थान पर कम्बल के रूप में भी किया है | वस्तुतः कबीर की संतान और पत्नी दोनों थे | एक जगह लोई को पुकारकर कबीरदास जी कहते हैं की – कहत कबीर सुनह रे लोई | यह भी मत है की , पहले लोई पत्नी होगी बाद में कबीरदास ने इसे शिष्या बना लिया हो |
आरम्भ से ही कबीरदास , हिन्दू भाव की उपासना की ओर आकर्षित हो रहे थे | अतः उन दिनों जबकि रामानंद जी की बड़ी धूम थी , अवश्य ही वे उनके सत्संग में भी सम्मिलित होते रहे होंगे | रामानुज की शिष्य परम्परा में होते हुए भी रामानंद जी भक्ति का एक अलग , उदार मार्ग निकाल रहे थे जिसमे जाति पांति , आचरण और खानपान के भेदभाव को दूर कर दिया गया था | अतः इसमें कोई शक नहीं है की कबीर ” राम नाम ” रामानंद जी से ही प्राप्त हुआ, पर आगे चलकर कबीरदास के ” राम ” , रामानंद के ” राम ” से भिन्न हो गए | अतः उनकी प्रवृत्ति निर्गुण उपासना की ओर मजबूत हुई |
संत शब्द संस्कृत ” सत ” के प्रथमा का बहुवचन रूप है जिसका अर्थ होता है सज्जन और धार्मिक व्यक्ति | हिंदी में साधू पुरुषों के लिए यह शब्द व्यवहार में आया | कबीरदास , सूरदास और गोस्वामी तुलसीदास आदि पुराने कवियों ने , इस शब्द का व्यवहार साधू और परोपकारी , पुरुष के अर्थ में बहुलांश किया है और उसके लक्षण भी दिए हैं | यह आवश्यक नहीं है की संत उसे ही कहा जाये जो निर्गुण ब्रह्म का उपासक हो | इसके अंतर्गत लोकमंगल विधायी सभी सत्पुरुष आ जाते हैं , किन्तु आधुनिक कतिपय साहित्यकारों ने , निर्गुनिये भक्त को ही ” संत ” की उपाधि दे दी है और अब यह शब्द उसी वर्ग में चल पड़ा है |
मूर्ति पूजा को लेकर उन्होंने , एक साखी हाज़िर कर दी –
पाहन पूजे हरि मिलें , तो मैं पूजोंपहार
था ते तौ चाकी भली , जासे पीसी खाय संसार
कबीरदास के विचार – Thought of Sant Kabirdas
कबीरदास ने जो व्यंगात्मक प्रहार किये हैं और अपने को सभी ऋषियों मुनियों से आचारवान और सच्चरित्र घोषित किया , उसके प्रभाव से समाज का निम्न वर्ग भी अप्रभावित न रह सका | रविंद्रनाथ ठाकुर ने ब्रह्म समाजी विचारों से मेल खाने के कारण कबीरदास की बानियों का अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया और उससे आजीवन प्रभावित भी रहे |
कबीर की रचना मुख्यतः ” साखियों ” और ” पर्दों ” में हुई है | इसमें उनकी स्व-अनुभूतियाँ तीव्र रूप से सामने आई हैं | संत परम्परा में हिंदी के पहले संत साहित्य भ्रष्टा जयदेव हैं | ये गीत गोविन्दकार जयदेव से भिन्न हैं |, सेन भाई , रैदास , पीपा , धन्ना , नानकदेव , अमरदास , धर्मदास , दादू दयाल , गरीबदास , सुन्दरदास , दरियादास , कबीर की प्रेम साधना है |
कबीरदास का व्यक्तित्व – Personality of Sant Kabirdas
हिंदी साहित्य के हज़ार वर्षों के इतिहास में , कबीर जैसा व्यक्तित्व बनकर कोई लेखक खड़ा नहीं हुआ | महिमा में यह व्यक्तित्व केवल एक ही प्रतिद्वंदी को जानता है – तुलसीदास !
वास्तव में कबीरदास और तुलसीदास के व्यक्तित्व में बड़ा अंतर था | यद्यपि दोनों ही भक्त थे , परन्तु दोनों स्वाभाव और संस्कार और दृष्टिकोण में , एकदम भिन्न थे | मस्ती , फककड़ी स्वभाव और सबको झाड़ फटकार कर चल देने वाले कबीरदास को , हिंदी साहित्य का अद्वितीय व्यक्ति बना दिया है | उसी ने कबीरदास की वाणियों में अनन्य असाधारण , जीवन रस भर दिया है ||
इसी व्यक्तित्व के कारण , कबीरदास की उक्तियाँ श्रोता को बलपूर्वक आकर्षित करती है | इसी व्यक्तित्व के आकर्षण को , सहृदय समालोचक संभाल नहीं पाता और रीझकर कबीरदास को, ” कवि ” कहने में संतोष पाता है|
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