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Happy Navratri Best wishes Hindi Shayari Images
First Day of Navratri Happy Navratri Hindi wishes Best Shayari
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First Day of Navratri Happy Navratri Hindi wishes Best Shayari
शैल शब्द का अर्थ होता है ” पहाड़ ” इसलिए माँ शैलपुत्री Shailputri को माता दुर्गा का ही एक अवतार हैं|
माँ शैलपुत्री Shailputri बैल पर सवारी करती हैं जो सम्पूर्ण हिमालय पर राज करती हैं|
माता शैलपुत्री के दायें हाथ में एक त्रिशूल बाएँ हाथ में एक कमल का फूल विराजमान है|
पर्वतराज हिमालय के घर, माता पुत्री के रूप में उत्पन्न हुईं थीं, इसलिए इनका नाम शैलपुत्री Shailputri पड़ा|
Navratri नवरात्रि के दिन माँ शैलपुत्री की पूजा करने के लिए हमें, उनकी तस्वीर रखनी चाहिए| माँ शैलपुत्री की तस्वीर न मिले तो माता नवदुर्गा , जिसमे नौ स्वरुप रहते हैं आप उनके तस्वीर के सामने भी पूजन अर्चन कर सकते हैं|
शुभ नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की उपासना का विशेष विधान है| माँ का यह स्वरुप बेहद ही शुभ माना गया है| खासकर महिलाओं को माता शैलपुत्री की पूजा आराधना अवश्य करनी चाहिए| इससे उनके जीवन में स्थिरता आती है| सुख सौभाग्य और समृद्धि बनी रहती है|
माता की तस्वीर को किसी लकड़ी की चौकी पर, लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करना चाहिए| इसके बाद आपकी जो भी मनोकामना है, अपनी मनोकामना की पूर्ती के लिए मन ही मन, माता के सामने संकल्प लें|
खासकर महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान देती हैं माँ, माता को लाल पुष्प बेहद पसंद हैं|
तो माता को लाल पुष्प अर्पित करें| और तमाम धूपदीप से माता का पंचोपचार दशोप्चार जिस भी विधि आप पूजन करना चाह्ते हैं, जरूर करें|
माता जी के ध्यान का मंत्र हम आपको बता दें-
ॐ एं हीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे|
ॐ शैलपुत्री देव्यै नमः|
वन्दे वांच्छित लाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम |
वृषारुढ़ाम शूलधराम शैलपुत्रीं यशस्विनीम ||
इस मन्त्र से आपको माता का आह्वान करना चाहिए और जो भी मनोकामना है वो माता को जरूर बोलें|
माता को आप सफ़ेद भोग लगायें|
माता को सफ़ेद भोग बहुत प्रिय हैं और इसके बाद मंत्रो का जप जरूर करें|
मंत्रो का जप कम से कम 108 बार आपको जरूर करना चाहिए|
अब माँ शैल पुत्री Shailputri जिनकी नवरात्रि के प्रथम दिन, हम पूजा आराधना करते हैं उनका विशेष उपाय आपको बता दें|
इस उपाय में आपको करना क्या है? अगर हो सके, तो माँ शैलपुत्री के चरणों में गाय का घी अर्पित करें| ऐसा करने से माता, भक्तो को आरोग्य का आशीर्वाद देती है| व्यक्ति का मन और शरीर दोनों ही निरोगी बना रहता है| तो इस तरीके से Navratri में आप माता की पूजा आराधना करें| और ये विशेष उपाय जरूर करें अपनी आरोग्यता के लिए|
माँ दुर्गा अपने पहले स्वरुप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं| यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं| अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष के यहाँ कन्या के रूप में अवतरित हुईं थी| तब इनका नाम सती था| इनका विवाह भगवान् शंकर जी से हुआ था|
एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया| इसमें उन्होंने सभी देवताओं को, अपना-अपना यज्ञ भाग ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया| किन्तु शंकर जी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रण नहीं दिया|
सती ने जब सुना की हमारे पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहें हैं| तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा| अपनी ये इच्छा उन्होंने शंकर जी को बताई|
हर चीज, हर बात पर विचारमंथन करने के बाद महादेव शंकर जी ने कहा-
” प्रजापति दक्ष किसी कारण वश हमसे रुष्ट हैं”| उन्होंने अपने यज्ञ में सभी देवता गणों को निमंत्रित किया है| उनके यज्ञ भाग भी उन्हें समर्पित किये हैं| किन्तु उन्होंने हमें जानबूझकर नहीं बुलाया है| कोई सूचना तक नहीं भेजी है| ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार से श्रेयस्कर नहीं होगा| “
भगवान शंकर जी के इतना कहने पर भी, माँ सती को उनकी बात समझ नहीं आई| अपने पिता का यज्ञ देखने की इच्छा से, वहां पहुँचकर अपनी माँ और बहनों से मिलने की उनकी व्याकुलता, किसी भी तरीके से, कम न हो रही थी|
उनके प्रचंड आग्रह को ध्यान में रखते हुए, महादेव शंकर जी ने, उन्हें वहां जाने की आज्ञा दे दी|
सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा की, कोई भी आदर और प्रेम के साथ, उनसे बातचीत नहीं कर रहा है| सारे लोग मुंह फेरे हुए हैं| केवल उनकी माता ने, बड़े प्रेम से उन्हें गले लगा लिया| उनकी बहनों की बातों में उपहास और व्यंग्य के भाव, झलक रहे थे| अपने प्रिय जनों के, इस तरह के आचरण से, उनके मन में गहरी ठेस लगी|
उन्होंने यह भी देखा की वहां चतुर्दिक भगवान् शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है| दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे| यह सब देखकर सती का ह्रदय क्रोध, आत्मा ग्लानि से संतप्त हो गया| उन्होंने सोचा अपने स्वामी जी की बात को न समझने के कारण, मैंने यहाँ आकर, बहुत बड़ी गलती कर दी है|
अपने पिता के द्वारा, अपने पति का इतना बड़ा अपमान, माँ सती को सहन न हो सका| उन्होंने अपने उस रूप को तत्काल, उसी स्थान पर यज्ञ की अग्नि के द्वारा जलाकर, भस्म कर डाला| वज्रपात के समान, इस दारुण दुखद घटना को सुनकर, शंकरजी क्रुद्ध हो गए और अपने गणों को भेजकर, दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंश करा दिया|
सती माता ने अपने शरीर को, आग में भस्म करने के पश्चात, फिर से जन्म लिया| और इस बार वो, शैलराज हिमालय की बेटी के रूप में, शरीर धारण किया| इस जन्म में वो, ” शैलपुत्री ” के नाम से प्रसिद्द हुईं|
माता सती के नाम ही ‘पार्वती’ और ‘हैमवती’ भी हैं|
उपनिषद की एक कथा के अनुसार, माता दुर्गा ने अपने हैमवती स्वरुप से ही देवताओं का गर्व – भंजन किया था|
” शैलपुत्री ” देवी का विवाह भी शंकर जी से हुआ| पूर्व जन्म की भांति इस जन्म में भी, वह शिवजी की अर्धांगिनी बनी| नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत हैं|
नवरात्र पूजन में प्रथम दिवस, इन्ही की पूजा और उपासना की जाती है| इस प्रथम दिन की उपासना में, योगी अपने मनको ” मूलाधार ” चक्र में स्थित करते हैं और यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है|
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