Nitish Kumar नीतीश कुमार की सफलता की कहानी Success Story in Hindi
आज हम आपको बिहार के मुख्यमंत्री Nitish Kumar के बारे में कुछ ऐसी रोचक बात बताने वाले हैं जिसके बारे में आपने न तो कभी सुना होगा और न ही कभी पढ़ा होगा|
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Nitish Kumar |
नीतीश कुमार की कहानी Success Story in Hindi
28 मार्च 1974 को कांग्रेस के खिलाफ बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचारी को लेकर पटना में जे पी आन्दोलन की शुरुवात हुई थी जिसमे राज्य भर से आये छात्रों, युवकों और कार्यकर्ताओं ने बिहार विधान मंडल का घेराव किया था जिसमे Nitish Kumar
ने अहम् भूमिका निभाई थी| इस आन्दोलन के बाद
Nitish Kumar काफी प्रचलित हो गए थे|
25 जून 1975 को रात में आपातकाल लगा दिया गया था जिसमे करीब सवा लाख लोगों को अलग अलग जेलों में बंद कर दिया गया था जिसमे छात्र कार्यकर्त्ता और पत्रकार भी शामिल थे| 20 जून 1975 को उनकी पत्नी मंजू सिन्हा ने एक बालक को जन्म दिया जिसका नाम निशान्त रखा गया|
साल 1977 में Nitish Kumar ने पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था, उस समय जनता पार्टी बेहतर प्रदर्शन कर रही थी लेकिन उसके बाद भी Nitish Kumar चुनाव हार गए थे |
साल 1978 में उनके पिता जी राम लखन सिंह का देहांत हो गया उन्हें प्यार से लोग वैद्य जी कहकर पुकारते थे| Nitish Kumar कभी कभी दवाई की पुड़िया बनाने में अपने पिताजी की मदद किया करते थे जिसका ज़िक्र वो आज भी अपने भाषण में करते हैं की पुड़िया, वो इस तरह से बांधते थे की गिरने के बाद भी नहीं खुलता था|
Nitish Kumar के पिता की मृत्यु के उपरांत, घर की जिम्मेदारी उनके कन्धों के ऊपर पहुँच चुकी थी, उनकी धर्मपत्नी पटना में रहकर वहीँ स्कूल में बच्चों को पढ़ातीं थीं| Nitish Kumar के गाँव कल्याण बीघा में उनके पास कुछ जमीनें थीं, उसी से उनके परिवार का गुजारा होता था परन्तु Nitish Kumar ने हिम्मत नहीं हारी और राजनीति में कदम आगे बढ़ाया|
वो बख्तियारपुर से पटना ट्रेन से जाया करते थे कभी कभी तो उनके पास अखबार खरीदने भर का, पैसा नहीं होता था तो वो ट्रेन में बैठे दूसरे यात्री से, अखबार मांगकर पढ़ लिया करते थे| उनकी पत्नी मंजू सिन्हा को ये सब बातें अच्छी नहीं लगती थी|
उनकी पत्नी उन्हें राजनीति से दूर रहने को कहती लेकिन Nitish Kumar का मन राजनीति के अलावा कहीं और नहीं लगता था इसलिए पत्नी के साथ, वो कम ही रहते थे वो चाहते तो पत्नी के साथ पटना में भी रह सकते थे लेकिन फिर उन्हें राजनीति से दूर होना पड़ता जोकि उन्हें पसंद नहीं था इसलिए Nitish Kumar सुबह बख्तियारपुर से खाना खा के पटना के लिए निकलते तो देर रात को ही घर बख्तियारपुर आते थे| कभी कभी पटना में उन्हें दोपहर का खाना भी नहीं नसीब होता था|
बताया जाता है की इस विकत परिस्थिति में उनका बहनोई देवेन्द्र सिंह ने उनका साथ दिया था जो पटना में ही रहते थे और रेलवे में कार्यरत थे| साल 1980 में बिहार विधानसभा का चुनाव होने वाला था जिसमे वो लड़ने का मन बना चुके थे लेकिन चुनाव लड़ने के बाद, इन्हें इस बार भी हार का मुंह देखना पड़ा|
अब Nitish Kumar के कैरियर पर सवाल खड़ा होने लगा, लोग तरह तरह की बातें करने लगे उनकी पत्नी और उनके परिवार के सभी लोग उन्हें राजनीति से दूर होने के लिए, कहने लगे| परिवार के दबाव के कारण कहीं न कहीं Nitish Kumar भी टूट चुके थे लेकिन एक बार फिर यहाँ Nitish Kumar चुनाव लड़ने की तैयारी करने लगे|
साल 1985 में उन्हें लोक दल से टिकट दिया गया जिसमे उन्हें चुनाव प्रचार के लिए कुछ रुपये और एक जीप दिया गया था लेकिन पार्टी की तरफ से जो रुपये मिले थे वो एक उम्मीदवार के खर्च के लिए पर्याप्त नहीं था| ऐसे समय में उनकी पत्नी यह कह कर उनका साथ दिया था की इस बार अगर जीत नहीं हुआ तो उन्हें राजनीति से दूर रहना पड़ेगा और अपनी सैलरी से बचाए पैसे उन्हें दे दिए, जो पार्टी के द्वारा दिए गए पैसे से कहीं ज्यादा था|
मेहनत रंग लायी और Nitish Kumar harnaut vidhan sabha सीट से चुनाव जीत गए फिर इस सुशासन बाबू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा| उनका काम करने का अंदाज मेहनत और लगन रंग लाने लगी| साल 1987 में Nitish Kumarको युवा लोक दल का अध्यक्ष चुन लिया गया| उसके बाद Nitish Kumar ने बहुत मेहनत किया|
साल 1989 में उन्हें जनता दल का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, उन्हें पहली बार लोक सभा चुनाव लड़ने का मौका मिला जिसमे और सांसद के साथ केंद्र में मंत्री भी बने| साल 1990 में Nitish Kumar को पहली बार केन्द्रीय मंत्रिमंडल में कृषि राज्यमंत्री का पद मिला| उसके बाद वो केन्द्रीय रेलमंत्री और भूतल एवं परिवहन मंत्री में रहे|
बिहार के मुख्यमंत्री बने Nitish Kumar Success Story in Hindi
साल 2000 में Nitish Kumar पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए लेकिन उनका कार्यकाल मात्र सात दिनों तक ही चला और उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया| साल 2002 में Nitish Kumar रेलमंत्री बने| उस समय उन्होंने तत्काल और ई टिकट जैसी सुविधा, जनता को मुहैया कराया|
30 अक्टूबर 2003 को Nitish Kumar ने, एक नई पार्टी जनता दल यूनाइटेड का गठन किया जिसमे कई पार्टियों का विलय किया गया| साल 2004 में वो नालंदा और बाढ़, दो जगह से वो चुनाव में उतरे जिसमे वो बाढ़ से वो चुनाव हार गए लेकिन नालंदा से उन्हें जीत हासिल हुई|
साल 2005 में राष्ट्रीय जनता दल जोकि पंद्रह साल से बिहार में शासन कर रही थी उसे, उन्होंने पीछे छोड़ दिया और भाजपा के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई और फिर से उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला| मुख्मंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने बिहार में महिलाओं को आगे बढ़ने का मौका दिया| हर क्षेत्र में महिलाओं को विशेष छूट दी गई जिससे महिलाएं आगे बढ़ सकें| स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं को साईकिलें बांटी गई जिससे छात्राओं में पढ़ने का उत्साह बढ़ा|
अपराध को कण्ट्रोल किया गया जिससे रोजगार के साधन बढ़ने लगे| बिहार तरक्की की तरफ बढ़ने लगा और नीतीश कुमार का नाम विकास पुरुष में गिना जाने लगा लेकिन अचानक 14 मई 2007 को उनकी पत्नी मंजू का देहांत हो गया|
बताया जाता है की उस समय Nitish Kumar फूट फूट कर रोये थे और अपने बेटे निशान्त के साथ उन्होंने अर्थी को कन्धा दिया था| हर साल पुण्यतिथि के दिन पटना के कंकड़बाग स्थित मंजू सिन्हा पार्क और अपने गाँव कल्याण बीघा की वाटिका में अपनी पत्नी मंजू सिन्हा को माल्यार्पण और श्रद्धांजली देने जाते हैं|
2010 में नीतीश के पिछले कामकाज को देखते हुए, बिहार के युवाओं ने भारी संख्या में मतदान किया और भाजपा में शामिल Nitish Kumar को जीत दिलाया|
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