Isa Masih ka Jivan Parichay 25 दिसंबर मेर्री क्रिसमस : ईसा मसीह का जीवन परिचय
आईये जानते हैं ईशा मसीह Isa Masih के बारे में, उनकी पूरी कहानी और कुछ अद्भुत तथ्य हमारे इस आर्टिकल में|
आखिर ईशा मसीह Isa Masih कौन है क्या यीशु परमेश्वर हैं ? क्या ईशा मसीह Isa Masih ने खुद को परमेश्वर होने का दावा किया था? यीशु की जिंदगी से मिलने वाले साक्ष्य को देखकर आईये जानते हैं की क्यों यीशु पर विश्वास करना अन्धविश्वास नहीं है|
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ईसा मसीह बायोग्राफी : Isa Masih ka Jivan Parichay
2000 साल पहले पलेस्टाइन Palestine के एक रेगिस्तानी गाँव के अस्तबल में एक बच्चे का जन्म हुआ| आज पूरा संसार ईशा मसीह Isa Masih के जन्म का उत्सव मना रहा है|
25 December in history: Isa Masih ka Janm
कई स्रोतों के अनुसार ईसा मसीह का जन्म 25 दिसंबर 25 December का माना जाता है और इसी मान्यता की वजह से हर साल इस दिन को क्रिसमस डे के तौर पर मनाया जाता है और यहूदी लोग इस दिन को हनुकाह के त्यौहार के रूप में सेलिब्रेट करते हैं|
2000 साल पहले की बात है एक बढ़ई था, उसका नाम युसूफ था वह इजराइल के नाजेरथ नामक एक गाँव में रहता था| युसूफ की शादी मैरी से हुई थी|
एक दिन एक जादुई परी मैरी के सामने प्रकट हुई और उसने कहा की आपके घर एक दिव्य बालक जन्म लेगा, वह एक महान व्यक्ति बनेगा और वह दुनिया को बदल देगा|
मैरी कुछ दिनों बाद गर्भवती हुई और इसी दौरान बेथलेहम शहर में जनगणना आयोजित की जा रही थी| राज्य में हर किसी को उसमे भाग लेकर, अपना नाम दर्ज करवाना था और इसलिए मैरी भी युसूफ के साथ बेथलेहम के लिए रवाना हुई|
बेथलेहम एक भीड़ वाला शहर था इसलिए इन दोनों को आराम करने के लिए भी कोई स्थान नहीं मिला|
अंत में उन्हें रात गुजारने के लिए एक जगह मिली और उसी रात isa masih ka janm यीशु मसीहा का जन्म हुआ| उस समय सूखी घास के अलावा उनके पास और कोई बिस्तर नहीं था और उनसे मिलने के लिए वहाँ मौजूद चरवाहों के सिवा कोई नहीं था|
isa masih ka janm यीशु का जन्म हुआ जल्दी ही पूरी दुनिया में घोषित किया गया| लोगों को पता चला की बेथलेहम में एक दिव्य बच्चे ने जन्म लिया है|
बेथलेहम से बहुत दूर तीन बुद्धिमान पुरुषों ने आसमान में चमकते हुए एक उज्जवल सितारे को देखा, वे उसे नए राजा का प्रतीक मानते थे और उस सितारे की रौशनी के साथ उन्होंने यात्रा शुरू की, असल में वो क्रिसमस का सितारा था|
वो तीनो बुद्धिमान मनुष्य यीशु से मिले और आशीर्वाद भी दिया| उन्होंने यीशु को यहूदी साम्राज्य का राजा बनने के लिए मुबारकबाद भी दिया लेकिन एक व्यक्ति यीशु के जन्म से खुश नहीं था, उस देश का राजा हेरोद ने सोचा की ये बच्चा तो अपना प्रतिद्वंदी है, वह ये नहीं जानता था की कौन स बच्चा दिव्य है इसलिए उसने दो साल के उम्र तक के बच्चों को मारने का आदेश दे दिया|
इस नरसंहार से बचके यीशु का परिवार सौभाग्य से मिस्त्र जा पहुँचा| वे राजा की मृत्यु के उपरांत ही अपने घर वापस लौटे|
यीशु दूसरे बच्चों से हमेशा अलग था, वो शास्त्रों के बारे में पढ़ा करता था, व्याख्या और बहस भी किया करता था| यीशु की जिंदगी के 13 से 29 वर्षों के बीच का कोई साक्ष्य बाईबिल ग्रन्थ में नहीं मिलता|
30 की उम्र में युहन्ना से दीक्षा बपतिस्मा और उपवास लेने के बाद ईसा मसीह Isa Masih ने अपने विचारो का प्रचार करना शुरू कर दिया | उनकी शिक्षायें बहुत सरल और स्पष्ट थीं| इन्होने लोगों से अपने पापों के लिए पश्चाताप करने को कहा| उन्होंने लोगों से अपने पूरे दिल से भगवान से प्यार करने की विनती की|
ईसा मसीह ने लोगों को सलाह दिया की वो अपने पड़ोसियों से प्यार करें क्योंकि वो खुद से प्यार करते थे| लोग इनके विचारों से वास्तव में आकर्षित हुए थे| बारह प्रेषितों के अलावा ईसा मसीह Isa Masih ने सैकड़ों शिष्यों को इकठ्ठा किया जो उनके विचारों से प्यार करते थे| ईसा मसीह Isa Masih ने अपने विचारों का प्रचार प्रसार करने के लिए यात्राएं करना शुरू कर दिया |
कभी कभी शिक्षण कार्य करते समय उन्हें समुदाय के बुजुर्गों के साथ बहस करनी पड़ती थी| उन्हें उन अमीर व्यापारियों से लड़ना पड़ता था जिन्होंने गरीबों पर अत्याचार किया था इसी के परिणामस्वरूप ईसा मसीह Isa Masih के खिलाफ कई सारे शक्तिशाली दुश्मन पैदा हो गए थे और ये सभी ईसा मसीह को ख़त्म कर देना चाहते थे|
33 साल के उम्र में ईसा मसीह अपने प्रेषितों के साथ येरूशलम की यात्रा की| वे जानते थे की येरुशलम के अधिकारी उन्हें मारने के मौके की तलाश कर रहे थे फिर भी उन्होंने अपना रास्ता नहीं बदला| शिष्यों के साथ अपने आखिरी रात्रि भोज के समय ईसा मसीह Isa Masih ने भविष्यवाणी की थी की जल्द ही उन्हें अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किया जायेगा और कुछ ही घंटो के अन्दर ईसा मसीह के शब्द , सही साबित हुए|
जुदास नाम के एक शिष्य ने ईसा मसीह Isa Masih को धोखा दिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया| सभी अधिकारी ईसा मसीह Isa Masih को क्रॉस पर चढ़ाने के लिए उत्सुक थे हालाँकि राज्यपाल मृत्यु परिक्षण के खिलाफ थे| अधिकारियों ने उन्हें क्रॉस पर चढ़ाने के लिए मजबूर कर दिया|
ईसा मसीह ने अपना क्रॉस खुद अपने कन्धों पर उठाया| येरुशलम के सड़कों पर चलते चलते उन्हें कोड़ों से मारा गया| शहर के बहरी इलाके में उन्हें क्रॉस पर चढ़ाया गया|
भाले से उनके शरीर पर छेद कर दिए गए और मौत की पुष्टि के लिए, भाला शरीर में घुसाया गया लेकिन मृत्यु ईसा मसीह के विचारों को नहीं रोक सकी|
पुष्टि हो जाने के बाद ईसा मसीह के शरीर को क्रॉस से उतारा गया फिर उनके शव को सुगन्धित पदार्थों के साथ एक चादर में लपेटकर कब्र में (जोकि एक चट्टान में निर्मित की गई थी) दफना दिया गया और कब्र के प्रवेश द्वार पर एक बड़ा भारी पत्थर टीका दिया गया ताकि कब्र का शव सुरक्षित रहे और कब्र पर एक सरकार रोमन मुहर लगाकर ये सुनिश्चित कर दिया गया की ये एक सरकारी धरोहर है|
चूंकि येशु ने मरने से पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी की मैं अपनी मृत्यु के तीन दिन बाद अपने मृत शरीर से जीवित हो उठूँगा इसलिए उनकी कब्र के पास प्रशिक्षित रोमन सैनिकों को पहरेदार के रूप में नियुक्त कर दिया गया|
तीन दिनों के पश्चात ईसा मसीह का शव गायब था
इतने क्रिया कलापों और सुरक्षा के बीच तीन दिनों के पश्चात कब्र के मुख्य द्वार पर रखा भारी भरकम बड़ा पत्थर, कब्र से दूर, नीचे ढलान पर पाया गया और तो और कब्र के अंदर से ईसा मसीह का शव भी गायब था थी तो सिर्फ चादर उस कब्र के अन्दर|
यीशु मसीह का येरुशलम में प्रवेश करने का दिन रविवार का था इसलिए रविवार का दिन Palm Sunday पाम सन्डे के नाम से प्रसिद्ध है और शुक्रवार को उनको शूली पर चढ़ा दिया गया था इसलिए शुक्रवार को Good Friday गुड फ्राइडे कहा जाता है और उनकी मृत्यु के तीन दिन बाद एक मैरी मेग्दलेन नाम की एक महिला ने उन्हें उनकी ही कब्र के पास जिन्दा देखा|
मृत्यु के बाद जिंदा देखे जाने की इस घटना को ईस्टर उत्सव के रूप में मनाया जाता और इस वाकये के बाद वो कभी यहूदी राज्य में दिखाई नहीं दिए|
ईसाई नामक एक नया धर्म दुनिया भर में फ़ैल गया इसके अलावा उनके प्यार और शांति के विचारो ने हर इंसान के दिल को छुआ है और उन्हें अमर बना दिया है|
अपने जीवन के अंत समय में जीसस यानि यीशु ने कहा की हे परमेश्वर इन्हें माफ़ कर देना ये नहीं जानते की ये क्या कर रहे है|
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