5th Guru Arjan Dev Ji Shaheedi Story & Biography

5th Guru Arjan Dev Ji Shaheedi Story & Biography

ईर्ष्या उस ज्वलनशील आग के जैसी है जो अपने संपर्क में आने वाली हर चीज को जलाकर भस्म कर देती है| लेकिन प्रेम, करुणा और दया उस पावन पानी के सरीखी है जो धधकती हुई आग को भी शान्त करने का सामर्थ्य रखती है|

ईर्ष्या समेत सभी इंसानी कुप्रवित्तियों को, इंसानियत का पाठ पढ़ाने के लिए Shri Guru Arjan Dev Ji, ने मरने के पहले घोर यातनाओं को सहते हुए आत्म बलिदान guru arjan dev ji shaheedi किया| उनकी इस शहीदी ने, सर्वोच्च मानवीय मूल्यों की रक्षा कर, आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्शों ने नए मापदंड स्थापित कर दिए|

आगे चलकर इन्ही आदर्शों पर चलते हुए श्री गुरु तेगबहादुर जी ने और श्री गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु गद्दी की गरिमा को बरक़रार रखा|

पांचवे सिख गुरु श्री Guru Arjan Dev Ji ने अपने जीवन काल में सिख सम्प्रदाय के उन्नति के लिए अति महत्वपूर्ण कार्य किये | उनका सम्पूर्ण जीवन हमें त्याग, परोपकार, मन की निर्मल प्रवृत्ति, सहृदयता, कर्तव्य एवं धर्म निष्ठा जैसे उच्चतम मानवीय मूल्यों से परिचित करवाता है |

आज हम इस पोस्ट के माध्यम से पांचवे सिख गुरु श्री guru arjan dev ji के जीवन पर एक नजर Guru Arjan Dev Ji Shaheedi & Biography Hindi डालते हैं |

Guru Arjan Dev Ji Shaheedi Story & Biography

श्री गुरु अर्जनदेव जी की जीवनयात्रा 

श्री guru arjan dev ji का जन्म 15 अप्रैल सन 1563 में अमृतसर के गोइंदवाल साहिब में हुआ था| वे चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी के सबसे छोटे पुत्र थे| बीवी भानी, guru arjan dev ji के माँ का नाम था| तीसरे सिख गुरु श्री गुरु अमरदास जी उनके नाना का नाम था|

इन्ही महान व्यक्तियों के सानिध्य में पले बढ़े श्री guru arjan dev ji के भीतर आध्यात्मिक गुण झलकने लगे थे| उन्होंने अपने नाना श्री गुरु अमरदास जी के द्वारा गुरुमुखी ज्ञान प्राप्त किया|

गोइंदवाल की धर्मशाला से उन्होंने देवनागरी का ज्ञान हासिल किया| अपने मामा से उन्होंने गणित की शिक्षा प्राप्त की और मामा से ही उन्होंने ध्यान लगाने का ज्ञान प्राप्त किया| उन्हें संगीत के राग विद्याओं की भी अच्छी परख थी| घोड़े की सवारी और तीरंदाजी में भी वे निपुण थे|

लेकिन मूलतः गुरूजी गंभीर एवं शांत स्वाभाव के स्वामी थे| वे दिन रात संतो की सेवा में लगे रहते थे| उनके मन में सभी धर्मो के प्रति अत्यंत स्नेह था | 19 जून सन 1579 में guru arjan dev ji का विवाह माता गंगा जी के साथ पूर्ण हुआ |

और 28 अगस्त सन 1581 में पांचवे सिख गुरु के रूप में गुरु गद्दी पर विराजमान हो गए |

वैसे देखा जाये तो guru arjan dev ji, गुरु रामदास के छोटे पुत्र थे| पृथ्वी चंद उनका सबसे बड़ा पुत्र था और सबसे बड़ा होने के कारण वो स्वयं को गुरु गद्दी का स्वाभाविक अधिकारी भी समझता था लेकिन उसमे गुरु बनने योग्य गुणों का अभाव था|

Shri Guru Nanak Dev Ji ka Jivan Parichay

 arjan dev ji को गुरु गद्दी मिलने से पृथ्वी चंद हुआ क्रोधित

लेकिन पुत्र arjan dev ji में मौजूद सभी उच्चतम गुणों के कारण, गुरु रामदास ने उन पर ही गुरु गद्दी की जिम्मेदारी सौंपना उचित समझा | अपने छोटे भाई को गुरु गद्दी मिलने के कारण पृथ्वी चंद गुस्से से आग बबूला हो गया |

और वो अब मन ही मन अपने छोटे भाई arjan dev ji से घृणा करने लगा| इसी घृणा के चलते पृथ्वी चंद  arjan dev ji को कष्ट देना शुरू कर दिया |

सबसे पहले उसने शहर से बाहर अलग से अपना डेरा लगाकर भक्तो द्वारा लाई गई कीमती चीजों पर अपना कब्ज़ा करना शुरू कर दिया जिस कारण दरबार की पूरी आमदनी लगभग बंद हो गई |

दरबार में होने वाले दैनिक कीर्तन और लंगर को खर्चे की आवश्यकता थी लेकिन धीरे धीरे धन की कमी से स्थिति इतनी ख़राब हो गई की लंगर एक बार ही होने लगा | गुरु अर्जन देव जी ने लंगर को चालू रखने के लिए अपनी पत्नी गंगा जी के सारे गहने बेच डाले | बाद में घर का अन्य सामान बेचा |

स्थिति बद से बदतर होने लगी| पृथ्वी चंद दरबार में हो रही इस दुर्वयव्स्था के पूरे मज़े ले रहा था | उसने दरबार में कीर्तन करने वाले भाई बलवंत और भाई सट्टा को बहला फुसलाकर अपने पक्ष में कर लिया | जिसके चलते उन्होंने भी कीर्तन करने से मना कर दिया |

भाई बल्वंड और सट्टा के अहंकार को ख़त्म करने के लिए गुरूजी ने खुद ही दरबार में कीर्तन करना आरम्भ कर दिया | इसी बीच सिखों के प्रचार और प्रसार के लिए यात्रा पर गए भाई गुरदास अपनी यात्रा से वापस लौटे |

Guru Arjan Dev Ji Shaheedi Story & Biography

भाई गुरदास ने पृथ्वी चंद की साजिश को किया बेनकाब 

उन्होंने दरबार के हालात को देखा और वो पृथ्वी चंद की साजिश को समझ गए | तुरंत हरकत में आते हुए उन्होंने दरबार के सभी प्रमुख शिष्यों की मदद से पृथ्वी चंद की साजिश को संगत के समक्ष बेनकाब कर दिया | जिससे दरबार की आमदनी पहले जैसी फिर से शुरू हो गई |

बेरोजगार हो चुके बल्वंड और सट्टा को भी अपनी गलती का एहसास हुआ उन्होंने guru arjan dev ji से माफ़ी मांगी | गुरूजी ने भी उन्हें बड़े दिल से माफ़ करके फिर से दरबार में कीर्तन करने की आज्ञा दे दी |

सन 1577 में श्री गुरु रामदास जी ने 500 बीघा भूमि खरीदकर वहाँ पर गुरुद्वारा बनाने की योजना बनाई थी | लेकिन 1 सितम्बर साल 1581 में श्री गुरु रामदास जी ज्योति ज्योत समा गए | उनके इस कार्य को श्री guru arjan dev ji ने आगे बढ़ाते हुए उस जमीन पर भव्य सरोवर का निर्माण करवाया | जिसका नाम अमृत सरोवर रखा गया |

इसी सरोवर के नाम पर उस नगरी का नाम अमृतसर हुआ | अक्टूबर साल 1581 में गुरु साहिब ने सरोवर के बीचो बीच एक भव्य गुरूद्वारे का निर्माण कार्य हाथ में लिया| सन 1590 में इस गुरूद्वारे की ईमारत बनकर तैयार हो गई | इसका नाम हरमंदिर साहिब रखा गया |

Harmandir sahib golden temple amritsar

इसी के साथ गुरु जी ने तरण तारण सरोवर और वहाँ के गुरूद्वारे की भी नींव रखी|इसी बीच 15 जून सन 1595 में guru arjan dev ji को उनके विवाह के लगभग 16 साल बाद पुत्र की प्राप्ति हुई | उनके इस पुत्र का नाम हर गोबिंद रखा गया |

सिखों को गुरु अर्जन देव जी का प्रोत्साहन

श्री guru arjan dev ji सिखों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए, उनको व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया |

जिस कारण सिख देश के दूर दराज कोनो में जाकर व्यापार करने लगे और अधिक मात्रा में धन कमाने लगे | सम्प्रदाय को आर्थिक रूप मजबूत करने के लिए श्री guru arjan dev ji ने सिखों को अपनी आमदनी का दसवां हिस्सा दरबार में जमा करने का आदेश दिया| जिससे सम्प्रदाय के कामों को गति मिलने लगी |

सूखे और महामारी के दौर में पीड़ित जनता को दरबार की तरफ से मदद मिली| लंगर चलाये गए और जगह जगह कुएं और बावड़ियों को बनाया गया | नए नगर बसाये गए | व्यापार और कारोबार में वृद्धि होने लगी | परिणामस्वरूप लाखों की तादाद में लोग सिख संप्रदाय से जुड़ने लगे |

इन दिनों गुरु नानक देव जी की पोथी के रूप में लिखी हुई वाणी गुरु अमृत देव जी से होते हुए गुरु अमरनाथ जी और गुरु रामनाथ के बाद श्री guru arjan dev ji के पास पहुँची | इस पोथी पर समय समय पर अन्य गुरुओं ने भी अपनी वाणी को जोड़ा था | श्री guru arjan dev ji ने इस वाणी की पोथी को ग्रन्थ की पक्की शक्ल देने का निर्णय लिया |

Guru Arjan Dev Ji Shaheedi Story & Biography

guru arjan dev ji ने महान ग्रन्थ ” गुरुग्रंथ साहिब  ” का कराया प्रकाशित

ताकि कोई भी व्यक्ति इस वाणी में अपने हिसाब से फेर बदल न कर पाए | सन 1601 में श्री guru arjan dev ji ने भाई गुरदास की सहायता से इस महान कार्य का आरम्भ किया| उन्होंने पांच गुरुवों और छत्तीस संतो और पंद्रह भक्तो के भजनों को एकत्रित करके एक महान ग्रन्थ की रचना कर डाली | जिसे हम आदिग्रंथ गुरु ग्रन्थ साहिब के नाम से जानते हैं |

इस ग्रन्थ को पूर्ण करने में उन्हें तीन साल का समय लगा | आखिरकार 30 अगस्त सन 1604 में, इस दिव्य ग्रन्थ सर्वप्रथम दरबार में प्रकाशित किया गया | बाबा बुड्ढा जी को पहली ग्रंथि होने का सम्मान मिला| गुरुग्रंथ साहिब में श्री guru arjan dev ji की वाणी संकलित है |

गणना की दृष्टि से सबसे अधिक वाणी पंचम गुरु श्री guru arjan dev ji की ही है | गुरु ग्रन्थ साहिब में कुल 31 राग है जिसमे जय जयवन के राग को छोड़कर बाकी सभी रागों में guru arjan dev ji की वाणी दर्ज है | 1430 पृष्ठों के साथ इसमें कबीरदास, संत रविदास और शेख फरीद की वाणी भी संकलित है |

बादशाह अकबर से पृथ्वीचंद ने करी शिकायत

guru arjan dev ji के इस महान कार्य के बाद, गुरु साहिब से ईर्ष्या करने वालों के पेट में कुछ अधिक दर्द होने लगा | पृथ्वी चंद और उसके समर्थकों ने सीधे बादशाह अकबर के दरबार में शिकायत की कि guru arjan dev ji ने अपने ग्रन्थ के माध्यम से मुसलमानों के पीर पैगम्बर और हिन्दुओं के देवी देवताओं की निंदा की है |

बादशाह अकबर फ़ौरन इस शिकायत पर हरकत में आते हुए guru arjan dev ji को अपने ग्रन्थ के साथ दरबार में उपस्थित होने का आदेश दिया | सन 1605की शुरुवात में गुरूजी के तरफ से भाई गुरदास और बाबा बुड्ढा जी ग्रन्थ को लेकर बादशाह के दरबार में हाज़िर हो गए |

सम्राट ने मांगी माफ़ी

उन्होंने बादशाह अकबर के सामने, गुरु ग्रन्थ साहिब की एक एक वाणी को प्रस्तुत किया| आखिर तक बादशाह अकबर को इस ग्रन्थ में परमात्मा की सच्ची वाणी के सिवा कुछ भी नजर न आया | अपनी गलती का एहसास होते ही बादशाह अकबर ने भाई गुरदास और बाबा बुड्ढा जी से माफ़ी मांगी | और तो और उन्हें 51 सोने की मोहरें उपहार के रूप में दिया |

पृथ्वी चंद का ये वार भी खाली गया| उस वक़्त बादशाह के दरबार में चंदू शाह नाम का एक ब्राह्मण ऊँचे ओहदे पर कार्यरत था| वो अपनी पुत्री का विवाह guru arjan dev ji के पुत्र से कराना चाहता था | लेकिन guru arjan dev ji चंदू शाह के अहंकारी स्वाभाव से भली भांति परिचित थे | उन्होंने चंदू शाह से इस रिश्ते को लेकर साफ़ मना कर दिया| जिससे चंदू शाह के स्वाभिमान को भारी ठेस पहुँची और उसके मन में गुरूजी के प्रति नफरत पैदा हो गई |

सन 1605 में बादशाह अकबर की मृत्यु हो गई और उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र जहाँगीर बादशाह बन गए| बादशाह बनते ही जहाँगीर के पुत्र शहजादा खुसरो ने उनसे बगावत कर ली | अपने इस बागी पुत्र को सबक सिखाने के लिए , बादशाह जहाँगीर ने शहजादा खुसरो को बंदी बनाने का आदेश दे दिया |

लेकिन शहजादा खुसरो ने guru arjan dev ji के शरण में पनाह ले ली | इस बात से नाराज होकर जहाँगीर ने 28 अप्रैल सन 1606 में श्री guru arjan dev ji  को पकड़ने और शाही कानून के अनुसार श्री गुरु जी को दण्डित करने हुक्म जारी कर दिया |

गुरूजी ने अपने पुत्र को गुरु गद्दी सौंप दिया

बादशाह के इस फरमान का पालन करने के लिए मुर्तजा खान अमृतसर की तरफ रवाना हो गया| एक तरह बादशाह का हुक्म और दूसरी तरफ पृथ्वी चंद की गुरु गद्दी हथियाने की कोशिशों को देखते हुए श्री guru arjan dev ji 15 मई सन 1606 को , अपने 11 साल के पुत्र हर गोबिंद जी पर गुरु गद्दी का जिम्मा सौंप दिया |

20 मई सन 1606 को, उन्होंने खुद को मुर्तजा खान के हाथों में सौंप दिया| मुर्तजा खान guru arjan dev ji को गिरफ्तार करके लाहौर ले गया| यहाँ पर चंदू शाह को अपने अपमान का बदला लेने का मौका मिल गया | उसने guru arjan dev ji  को जहाँगीर की इजाजत से खुद की गिरफ्त में ले लिया |

मौत की सजा से बचने के लिए चंदू शाह ने guru arjan dev ji के सामने बादशाह जहाँगीर की दस शर्ते रखी | लेकिन guru arjan dev ji ने न तो इस्लाम को कबूल किया और न ही गुरु ग्रन्थ साहिब में तबदीली करने की मांग को माना |जहाँगीर की सभी शर्तों को नामंजूर करते हुए गुरूजी ने मौत को गले लगाना बेहतर समझा |

गुरूजी ने कड़ी यातनाएं झेली 

चंदू शाह ने जहाँगीर के हुक्म के अनुसार guru arjan dev ji को कड़ी यातनाएं देना प्रारंभ कर दिया |

उसने गुरूजी को तपते उबलते पानी में बिठाया जिससे गुरूजी की पूरी खाल छिल गई | इस बात का पता जब सिखों को लगा तब भारी संघर्ष शुरू हो गया | जो भी लोग गुरु साहिब को बचाने के लिए आगे आ रहे थे, जहाँगीर के सिपाही उन्हें जान से मार रहे थे |

sri guru arjan dev ji ने इसे परमात्मा का आदेश मानकर, अपने साथियों को शांत रहने का आदेश दिया| इधर चंदू शाह ने guru arjan dev ji को तपते हुए तवे पर बिठाया और गर्म रेत को सिर पर डालता रहा |

धधकता तवा गुरूजी के निर्मल व्यवहार के समक्ष सुखदायी हो गया और बिल्कुल गर्म रेत भी गुरूजी की निष्ठा को भंग न कर सकी | guru arjan dev ji ने प्रत्येक कष्ट को सहकर यही अरदास की –

तेरा भाना मीठा लागे, हरी नाम पदारथ नानक मांगे | बाहर सभी त्राहि त्राहि कर रहे थे लेकिन चाहकर भी वो अपने गुरूजी को नहीं बचा पा रहे थे | गुरूजी के शरीर पर हर जगह छाले पड़ गए, लोग हाहाकार कर रहे थे | guru arjan dev ji ने अपना अंतिम समय जानकर चंदू शाह से रावी नदी में स्नान करने की इच्छा व्यक्त की |

Guru Arjan Dev Ji Shaheedi

गुरु अर्जन देव की मृत्यु कब हुई?

(guru arjan dev ji shaheedi diwas)30 मई सन 1606 में गुरूजी रावी नदी के ठन्डे जल में प्रवेश किया और वहीँ पर उन्होंने अपने प्राणों को त्याग दिया |

निष्कर्ष

guru arjan dev ji एक महान आत्मा थे| उनके द्वारा रचित वाणी ने मानवता को शांति का सन्देश दिया| सुखमणि साहिब उनकी अमर वाणी है | उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन से सन्देश दिया की उच्चतम मानवीय मूल्यों की रक्षा के हमें हर पल आत्मबलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए तब ही कौम और राष्ट्र अपने गौरव के साथ जीवित रह सकते हैं|

किसी भी मुग़ल बादशाह के हाथों शहादत पाने वाले पहले सिख गुरु थे उनकी ये शहादत सम्पूर्ण मानव जाति के लिए एक मिशाल की तरह है |

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FAQ

जहांगीर के उस बेटे का क्या नाम था जिसने बादशाह जहांगीर का विरोध किया और श्री गुरु अर्जुनदेव जी की शरण ली?

शहजादा खुसरो

गुरु अर्जन देव जी का जन्म कब हुआ?

15 अप्रैल सन 1563

गुरु अर्जन देव जी के कितने पुत्र थे?

1 – हर गोबिंद जी 

गुरु अर्जन देव जी की पत्नी का क्या नाम था?

माता गंगा जी 

कौन सा सिख गुरु अर्जन देव जी का समकालीन था जिन्होंने आदि ग्रंथ साहिब लिखा था?

सिक्खों के छठे गुरु – गुरु हर गोबिंद जी 

गुरु अर्जुन देव की हत्या कैसे हुई?

मुग़ल शासक जहाँगीर द्वारा कठोर यातनाओं की सजाएँ देने के कारण

 

 

 

 

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