होली पर निबंध Holi Festival Essay Paragraph Lines
जी हाँ आज का टॉपिक है हमारा होली पर निबंध Holi Festival Essay जिसके तहत हम होली त्यौहार के बारे में अधिक से अधिक जानकारी इस लेख में आपको देने की कोशिश करेंगे|
जी हाँ आज का टॉपिक है हमारा होली पर निबंध Holi Festival Essay जिसके तहत हम होली त्यौहार के बारे में अधिक से अधिक जानकारी इस लेख में आपको देने की कोशिश करेंगे|
Paragraph on my favourite festival holi
होली के त्यौहार को “होलिकोत्सव” के नाम से भी जाना जाता है| होलिका शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के “होल्क” शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है भुना हुआ अन्न! और ऐसे होलिका शब्द से ही होली शब्द की उत्पत्ति हुई है|
पुराने समय में जब लोग अपनी फसल को काटते थे तो उससे कोई भी काम करने से पहले भगवान को भोग लगाते थे इसलिए नए पैदा हुए इस अन्न को आग के प्रति समर्पित करके उसे भूना जाता था| अन्न को ठीक प्रकार से भूनने के बाद उसे सभी लोगों के बीच प्रसाद के रूप में बाँट देते थे और आग से सेक लेते हुए सभी बड़े ही चाव से प्रसाद ग्रहण करते थे|
इसी वजह से आज भी बहुत से क्षेत्रों में होलिकोत्सव को मनाया जाता है| some lines about holi
होली का त्यौहार हिन्दू धर्म के प्रमुख उत्सवों में से एक है| इसे रंगों का त्यौहार भी कहा जाता है| होली हर साल फाल्गुन यानि मार्च के महीने में कई रंगों के साथ मनाई जाती है| ये त्यौहार पूरे भारत वर्ष में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है| होली का त्यौहार लोग एक दूसरे को रंग लगाकर और गले मिलकर मनाते हैं|
इस दौरान धार्मिक और होली के गीत भी गाये जाते हैं|
रंगों के त्यौहार होली के पीछे एक ऐसे भक्त की कहानी है जिसने कभी अपनी भक्ति को हारने नहीं दिया|
होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है| होली का त्यौहार मनाने के पीछे एक प्राचीन इतिहास है| प्राचीन समय में हिरनकश्यप नाम का एक असुर हुआ करता था| जो भगवान विष्णु का विरोधी था| उसकी एक दुष्ट बहन थी जिसका नाम होलिका था| हिरनकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था |
इसी कारण हिरनकश्यप अपनी बहन होलिका से अपने पुत्र प्रहलाद को जान से मारने के लिए लेकर आग में बैठने को कहा क्योंकि होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था| इसके बाद होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ जाती है| लेकिन प्रहलाद को अग्नि कोई नुकसान नहीं पहुँचा पाती है जबकि होलिका उसी आग में जलकर भस्म हो जाती है|
होलिका दहन भारत के उत्तरी भाग में सबसे ज्यादा मनाया जाता है| जिस दिन होली जलाई जाती है वो दिन होलिकादहन का दिन होता है| कुछ लोग इस दिन को छोटी होली भी कहते हैं| इस दिन होली नहीं खेला जाता है| होलिकादहन से अगले दिन जिसे हम धूलंडी कहते हैं, वास्तव में होली खेलने का दिन यही होता है|
तो ये होलिकादहन क्यों किया जाता है ?
होलिकादहन मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है| पौराणिक कथाएं हमें जीवन को सही मायने में जीना सिखाती हैं| बहुत समय पहले पृथ्वी पर एक अत्यधिक शक्तिशाली और अत्याचारी राजा हिरनकश्यप राज किया करता था|
अपनी प्रजा पर वो तरह तरह के अत्याचार किया करता था| हिरनकश्यप का अभिमान इस कदर बढ़ चुका था की उससे लगने लगा था की पूरे ब्रह्माण्ड में उस सा ताकतवर कोई दूजा है ही नहीं| अपने आपको को वो भगवान से भी बड़ा समझने लगा था|
और एक दिन अपनी प्रजा में वो ये आदेश जारी कर दिया की कोई भी व्यक्ति अब भगवान की आरधना वंदना नहीं करेगा| कोई भी राज्यवासी अब श्री हरी विष्णु की पूजा नहीं करेगा | राज्य का हर व्यक्ति अब अपने राजा यानि उसे ही आराध्य मानेगा| और पूरी धरती पर सिर्फ और सिर्फ हिरनकश्यप की ही पूजा की जाएगी|
समय के बीतने के साथ राजा हिरनकश्यप के घर में एक पुत्र का जन्म हुआ| इस पुत्र प्राप्ति के उपलक्ष्य में बड़ी ही धूमधाम से खुशियाँ मनाई गई| हिरनकश्यप के इस बेटे का नाम रखा गया प्रहलाद | प्रहलाद अपने बाल्यकाल से ही भगवान श्री हरी विष्णु का परम भक्त था|
उसके पिता ने कई बार उसे समझाया की वो भगवान विष्णु की पूजा न करे, उनका ध्यान न लगाये लेकिन प्रहलाद तो ईश्वर की परम भक्ति में लीन रहना ही पसंद करता था| पिता के आदेश की अवहेलना करते हुए प्रहलाद ने प्रभु भक्ति जारी रखा|
अब लोगों में ये बात फैलने लगी की राजा के पुत्र ने ही राजा की आज्ञा को मानने से इनकार कर दिया है और श्री हरी विष्णु का ही जाप करता है| तो लोगों ने भी प्रभु श्री हरी विष्णु का जाप करना शुरू कर दिया| ये सब होता देख अत्याचारी राजा हिरनकश्यप परेशान हो उठा| अपने ही घर में अपने ही पुत्र से हारे जाने की आशंका से|
परिणामस्वरूप एक दिन हिरनकश्यप ने अपने ही पुत्र को दंड देने का निश्चय लिया| हिरनकश्यप के एक बहन थी जिसका नाम था होलिका| उसकी बहन भी अपने भाई की तरह ही क्रूर थी| होलिका ने लम्बी तपस्या करके ब्रह्मा जी से एक वरदान प्राप्त किया था|
उसे ये वरदान हासिल था की वो कभी भी किसी भी तरह की आग में जलेगी नहीं| अग्नि उसे कभी नुकसान नहीं पहुँचा सकेगी|
और हिरनकश्यप ने होलिका को उसके इसी वरदान के कारण जलती हुई आग में बिठाया और साथ ही अपने पुत्र प्रहलाद को भी होलिका के गोद में बैठा दिया|
भयंकर आग जलने लगी लेकिन ब्रह्म देव ने ने होलिका को वर देते समय इस बात से आगाह किया था की कभी भी तुम अगर अपनी शक्ति का इस्तेमाल किसी को नुकसान पहुचाने के लिए करोगी, उसी दिन तुम्हारा ये वरदान ख़त्म हो जायेगा| इस बात को अभिमानी राजा और राजा की बहन इस बात को भूल चुके थे|
होलिका आग में में जलकर खाक हो गयी
अपने पुत्र समान भतीजे को जलाने की आकांक्षा से होलिका जलती हुई आग में बैठ चुकी थी| उसकी इस बुरी नियत की वजह से उसको प्राप्त वरदान समाप्त हो गया उसी क्षण और होलिका आग की तेज़ लपटों में जलने लगी और चिल्लाने लगी बचाओ मुझे बचाओ और देखते ही देखते उस अग्नि लपटों के बीच में जलकर ख़ाक हो गई|
प्रभु कृपा से भक्त प्रहलाद को उस अग्नि से तनिक भी नुकसान न हुआ|
इसी होलिका को आज भी बुराई का प्रतीक मानते हुए, जलाये जाने की परम्परा है होलिका दहन के दिन| सूखे पेड़ो के तने और टहनियों को होलिका के प्रतीक के रूप में जलाया जाता और वहीँ हरे रंग की एक टहनी होलिका के बीच में भक्त प्रहलाद के रूप में लगाई जाती है|
साथ ही होलिका के गोद में भक्त प्रहलाद को भी बिठाया जाता है| और जब होलिका में आग लगाई जाती है उसी समय भक्त प्रहलाद को सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाता है| इस प्रकार होलिका दहन का रिवाज चलता आ रहा है| होली पर निबंध holi nibandh in hindi
शास्त्रों के अनुसार होली मनाने के एक दिन पहले हम पूजा करते हैं| इस अग्नि को बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना गया है| हम होलिका की पूजा नहीं करते हैं हम उस अग्नि की पूजा करते हैं जिसने प्रहलाद को सुरक्षित बचाया था और होलिका जैसी बुराई को जलाकर भस्म कर दिया|
इसके अलावा होलिका दहन का एक और महत्व है जोकि वास्तविक रूप में हमारे जीवन में सकारात्मकता भर देने वाला है|
हमारे खेतों में उगने वाले अनाज से, इस दिन हवन किया जाता है और फिर इसी हवन की पवित्र राख को अपने माथे पर लगाते हैं| इस हवन अग्नि को अपने घर में हर जगह घुमाते हैं| ऐसा करने से हमारे घर में पवित्र आग की सकारात्मक उर्जा प्रवेश करती है|
कोई बुरा साया हमारे घर पर न पड़े इस लिए होली की आग को हम अपने घर में ले आते हैं| होली की इस राख को श्री हरी विष्णु का प्रतीक माना जाता है| इसके अलावा होलिका दहन के और भी कई महत्व हैं|
होलिकादहन की तैयारी, होली से 40 दिन पहले से ही शुरू हो जाती है| लोग सूखी लकड़ियाँ और भी तरह तरह के समान इकट्ठे करने लगते हैं|
अब ऐसा नहीं होता है अब लोग रेडीमेड लकड़ी खरीद लेते हैं लेकिन पहले लोग स्वयं लकड़ियाँ इकठ्ठा किया करते थे| फाल्गुन पूर्णिमा की शाम को होलिका को जलाया जाता है साथ में विधिपूर्वक रक्षा मंत्रो का उच्चारण भी किया जाता है|
आज भी बुजुर्ग लोग होलिका दहन के दूसरे दिन नहाने से पहले होलिका की राख को अपने पूरे शरीर पर लगाते हैं और फिर स्नान करते हैं| ऐसी मान्यता है होलिका अग्नि की पवित्र राख को अपने शरीर पर लगाने से कोई भी बिमारी समीप नहीं आती है|
मन और इच्छाशक्ति मजबूत होती है| हमारे शरीर और मन में मौजूद विकृतियों का समापन हो जाता है| होलिका की अग्नि जैसे भक्त प्रहलाद को बचाया था ठीक उसी प्रकार इस अग्नि की राख हमारी भी रक्षा करती है|
ये कहानी सिद्ध करती है की बुराई कितनी भी पावरफुल क्यों न हो जाए, जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है| यही कारण है की आज कलयुग में भी इस मोबाइल computer की दुनिया में भी हर चौराहे पर होलिका दहन किया जाता है|
ये होली के महत्व को प्रदर्शित करता है की होली हमारे लिए कितनी जरूरी है|
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आपके बिना ये काम कभी भी संभव नहीं हो सकता था| होली पर निबंध holi lekh
जीवन खुशहाल बना देने वाली प्रेरणादायक किताबें
दोस्तों हिन्दुओं के दो बड़े त्यौहार होली और दीपावली ! दोनों ही त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक हैं| वैसे तो होली को रंगों का त्यौहार माना जाता है| जीवन में रंग भरने के लिए होली के त्यौहार का विशेष महत्व है| होली ढेर सारी खुशियाँ लेकर आती है|
होली के त्योहार से हमें क्या सीख मिलती है?
होली का जितना महत्व रंगों से है उतना ही महत्व होलिका दहन से भी है| होली के दिन आप अपनी किसी भी बुराई को आग में जलाकर भस्म कर सकते हैं| फिर पूरे साल प्यार और ख़ुशी के साथ जीवन जी लीजिये|
आप होली कैसे मनाते हैं?
इस दिन आप सभी लोग बड़े प्यार से रंगों के साथ खेलते हैं| होली के दिन में सभी एक दूसरे को रंग लगाकर झूमते नाचते हैं| शाम को लोग एक दूसरे के घर पहुँच जाते हैं और अबीर गुलाल लगाकर गले मिलते है| इस दिन सारे वैर दुश्मनी भुलाकर सबको गले लगाया जाता है| होली की गुझिया, होली के जश्न को बढ़ा देती है|
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