Bhagwat Gita quotes in hindi Bhagavad Geeta Shlok Updesh
बेस्ट 5 Bhagwat Gita quotes in hindi Bhagavad Geeta Shlok Updesh
1. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
इस श्लोक में बताया जा रहा है कि हमें अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना है, लेकिन हमें अपने कर्मों के फलों की चिंता नहीं करनी चाहिए। फल की चिंता करना हमें कर्म में बाधित कर सकता है, और इसलिए यह श्लोक हमें कर्मयोग का महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाता है – कर्म करो, फल की चिंता मत करो
।
2. योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय। Translation: “Perform your duties with equanimity, O Arjuna, abandoning all attachment, and remain in yoga.”
भगवद गीता का एक और महत्वपूर्ण श्लोक है और इसका हिंदी में अर्थ है:
“अर्जुन, योग में स्थित होकर आसक्ति को त्यागकर कर्म कर।”
इस श्लोक में बताया जा रहा है कि योग (साधना और एकाग्रता) में स्थित रहकर कर्म करें और कर्म में आसक्ति को छोड़ दें। यह हमें सार्थक और निष्काम कर्म का मार्ग दिखाता है, जिससे आत्मा का समर्पण होता है और कर्मफल की चिंता से मुक्ति होती है।
Bhagwat Gita quotes in hindi Bhagavad Geeta Shlok Updesh
3. दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय।
Translation: “Perform your duty efficiently and without attachment to the results, for by remaining fixed in devotion to yoga, one attains the supreme.”
भगवद गीता का एक और महत्वपूर्ण श्लोक है, और इसका हिंदी में अर्थ है:
“दुर्बल होने पर भी कर्म को बुद्धियोग से कर, ऐ धनंजय (अर्जुन)!”
इस श्लोक में बताया जा रहा है कि कभी-कभी जीवन में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन उस समय भी हमें बुद्धियोग के साथ कर्म करना चाहिए। यह हमें बताता है कि अगर हम बुद्धिपूर्वक और समर्पण भाव से कार्य करते हैं, तो हम किसी भी परिस्थिति को पार कर सकते हैं।
4. कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः। स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्।
इस भगवद गीता के श्लोक का हिंदी में अर्थ है:
बुद्धिमान मनुष्य कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देख सकने के योग्य होता है| ऐसा मनुष्य ही सम्पूर्ण कामों को करने वाला होता है|
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जो व्यक्ति कर्मों के एकाग्रता और समर्पण के साथ, सभी कर्मों को देखता है, वही व्यक्ति बुद्धिमान है और वह सम्पूर्ण कर्म करता है, लेकिन उसका अकर्म में आसक्ति नहीं होता।
“जहां योगेश्वर कृष्ण हैं, वहां पार्थ धनुर्धर (अर्जुन) हैं। उस स्थान पर श्री, विजय, भूति, दृढ़ नीति – यह सब मेरी मति हैं।”
इस श्लोक में श्रीकृष्ण को योगेश्वर और और अर्जुन का धनुर्धर के रूप में परिचय किया गया है और यह बताता है कि जहां ये दोनों होते हैं, वहां श्री, विजय, भूति, और दृढ़ नीति हमेशा होती हैं।