Dashrath Manjhi Biography in Hindi | Pahad Baba ki kahani
ये कहानी 1 साधारण मजदूर की है जिसने अकेले ही 22 सालों (1960-1982) तक लगातार उस पहाड़ को तोड़ा जो उसकी वाइफ की मृत्यु कारण बना था। बिहार के दशरथ मांझी की प्रेम कहानी अब एक नई मिसाल बन चुकी है| Dashrath Manjhi Biography in Hindi
पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने की जिद के चलते इस व्यक्ति को लोगों ने पागल घोषित कर दिया था|
उनका जन्म 1929 में बिहार के गहलौर गाँव में हुआ था। दशरथ मांझी गया जिले के गहलौर घाटी में रहते थे| छोटी उम्र में ही मांझी घर छोड़ दिए थे और झारखंड पहुँचकर कोयले की खदानों में मजदूरी की| कुछ समय बाद वो घर वापस लौट आये और उनका विवाह फागुनी देवी से हो गया|
दशरथ मांझी गहलौर के पहाड़ों के उस पार मजदूरी करने जाया करते थे| प्रतिदिन उनकी पत्नी फागुनी देवी पहाड़ों को पार करके मांझी के लिए खाना-पानी ले जाया करती थी|
एक रोज मांझी का खाना पहुँचाने के दौरान पानी का घड़ा गिर गया और फागुनी का पैर फिसल गया| और घायल हुई पत्नी ने अस्पताल सही समय पर न पहुँच सकने के कारण रास्ते में ही दम तोड़ दिया| इस घटना ने दशरथ मांझी को अन्दर से झकझोर कर रख दिया|
इसी घटना के बाद दशरथ मांझी ने ये संकल्प कर लिया की इस पहाड़ को तोड़कर एक दिन रास्ता बना दूँगा| किसी और को सही समय पर चिकित्सा मिलने में अब ये पहाड़ अवरोध न बन सकेगा| उस पहाड़ को चीरकर रास्ता बनाना अब उनकी जिन्दगी का मुख्य मकसद बन गया था|
ये पर्वत अब नहीं रहेगा| काटकर इसको हम रास्ता बनायेंगे| ऐसा प्रेम था अपनी पत्नी के लिए, तभी तो 22 साल लगा दिए पहाड़ को हराने में| अपनी पत्नी के प्यार में पहाड़ को भी परास्त कर दिया| इसलिए सच्चे प्रेम के परिचायक भी हैं-दशरथ मांझी|
अपनी पत्नी को खोने के बाद दशरथ मांझी ने ये प्रतिज्ञा करी कि किसी और की पत्नी-बेटी, माँ, बाप, बुजुर्ग, इस ऊँचे पर्वत पर चढ़कर अपनी जान नहीं गवायेंगे|
पहाड़ से गिरकर अपनी पत्नी की मौत के बाद, वो नहीं चाहते थे किसी और के परिवार के सदस्य और आने वाली पीढ़ी में किसी को अपनी जान इस पहाड़ की वजह से गवानी पड़े|
अपनी पत्नी को खोने का दर्द तो था ही इसके साथ ही भावी पीढ़ी के लोगों की भी चिन्ता थी| उस क्षेत्र के लोगों की सुरक्षा के वास्ते दशरथ मांझी ने निश्चय किया कि इस पर्वत को तोड़कर रास्ता बनाने की जिम्मेदारी मुझे ही लेनी होगी| सरकार या किसी और इंसान के भरोसे बैठना सही नहीं है|
Dashrath Manjhi Biography in Hindi : पहाड़ बाबा की कहानी
साल 1959 में उन्होंने खुद ही पहाड़ को काटने का काम शुरू किया। उन्होंने जिन हथियारों का इस्तेमाल किया, वो थी छेनी और हथौड़ी।
अब क्या था दशरथ मांझी अपनी छेनी और हथौड़ी लेकर रोज सुबह घर निकल जाते और रात को घर वापस लौटते| 22 सालों तक लगातार न आंधी देखा न तूफ़ान न धूप देखी न छांव दिखा तो सिर्फ लक्ष्य – जिद थी पहाड़ों की ऊंचाई मिटा देना|
फिर क्या था अपनी जिन्दगी के 22 साल मांझी ने उस पहाड़ की ऊँचाई कम करने में झोंक दिया| सिर्फ छेनी और हथौड़ी के बलबूते दशरथ मांझी ने 55 किलोमीटर के रास्ते को 15 किलोमीटर का बना दिया|
और अंत में 22 वर्षों की लगातार मेहनत के बाद में उन्होंने 25 फुट ऊँची, 30 फुट चौड़ी और 360 मीटर लम्बे पहाड़ को काटकर सड़क बना दिया।
कितनी मेहनत करी होगी, क्या क्या दिक्कतें आई होंगी, कैसे-कैसे दर्द सहे होंगे, कितना प्रताड़ित हुए होंगें?
संघर्ष के दौर में उनकी माता कहती थीं कि बारह रोज में तो घूरे के भी दिन आ जाते हैं|
Dashrath Manjhi ka Success Mantra
यही मंत्र था उनका कि अपने धुन में रहो| ये मंत्र दशरथ मांझी की जिन्दगी से जुड़ गया था कि अपना कार्य करते रहो, चीजें प्राप्त हों, न हो, इसकी परवाह न करो| हर रात्रि के बाद दिन तो जरूर होता है| सूरज ढलने के बाद उदय अवश्य होता है|
कोई भी कार्य ‘संकल्प’ से संभव है, न कि पहलवानी या ताकत से.
दशरथ मांझी ने पहाड़ को क्यों काटा था?
दशरथ मांझी ने 22 वर्ष दूसरे के लिए खपा दिए| पत्नी की पहाड़ से गिरकर मौत के बाद वो नहीं चाहते थे किसी और के परिवार के सदस्य और आने वाली पीढ़ी में किसी को अपनी जान इस पहाड़ की वजह से गवानी पड़े|
किसी और को सही समय पर चिकित्सा मिलने में ये पहाड़ अब अवरोध न बन सकेगा| उस पहाड़ को चीरकर रास्ता बनाना अब उनकी जिन्दगी का मुख्य मकसद बन गया था|
लोगों की ये सोच अब मेरे परिवार के साथ जो होना था वह हो गया. अंग्रेजी में That’s all कहकर हाय-तौबा मचाते हुए, संसार समाज को कोसते रहते है|.
संसार में अभी तक एक-से-एक सूरमा पहलवान और शक्तिशाली लोग हुये पर कहाँ इनसे पहले किसी ने पहाड़ तोड़ दिया हो| संकल्प मनुष्य से असंभव काम को संभव करवा देता है|
जिद मनुष्य से हर असम्भव काम सम्भव करवा देती है सिर्फ लगन से करते जाइए| सम्भव कार्य को सम्भव तो कोई भी बना सकता है लेकिन असंभव में संभव नाम का दीपक केवल जिद्दी व्यक्ति ही जला सकता है|
दशरथ मांझी ने सिर्फ छेनी और हथौड़ी से पहाड़ को किया नतमस्तक Pahad Baba ki kahani
जिद ही दशरथ मांझी बनाती है जो अकेले छेनी-हथौड़ी के बलबूते संकल्पित होकर 360 फीट लम्बा, 30 फीट चौड़ा और 25 फीट ऊँचे पर्वत का नामोनिशान मिटा दिया|
दशरथ मांझी भारत के प्रधानमंत्री से मुलाकात करने पैदल दिल्ली चले गये थे|
मांझी साल 1972 में पैदल ही ट्रेन की पटरी के साथ साथ 2 महीने में दिल्ली पहुँच गए थे| बिहार के रामसुंदर दास से भेंट की थी और प्राइम मिनिस्टर से भी मुलाकात करने पहुँचे, लेकिन सुरक्षा कर्मियों ने मिलने से मना कर दिया था।
दशरथ मांझी के ऊपर फिल्म भी बन गई है|
2015 में फिल्म निर्देशक केतन मेहता ने ‘मांझी- द माउंटेन मैन’ के नाम से दशरथ मांझी की जिन्दगी और प्रेमस्टोरी पर फिल्म बना दी है।नवाजुद्दीन सिद्दिकी दशरथ मांझी के किरदार में है और राधिका आप्टे ने उनकी धर्मपत्नी फागुनी की भूमिका में हैं। इस मूवी की पचासी प्रतिशत शूटिंग गहलौर की घाटी में हुई थी|
निष्कर्ष : Dashrath Manjhi Biography in Hindi
दशरथ मांझी एक अद्भुत और प्रेरणादायक व्यक्तित्व थे, जिन्होंने अपने अद्वितीय पराक्रम से लोगों के दिलों में एक अविस्मरणीय स्थान बनाया।
दशरथ मांझी को “पहाड़ बाबा” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने अपनी जिंदगी में एक पहाड़ को छोटा किया था। उनके गाँव में एक पहाड़ था जो लोगों को अपने गाँव तक पहुंचने में कई किलोमीटर की दूरी देने के कारण कठिनाई प्रदान करता था। यह पहाड़ गाँव की सुख-सांतुष्टि में बड़ा अवरोध बन गया था।
एक दिन, उनकी पत्नी की मौत हो गई क्योंकि वह डॉक्टर के पास समय पर नहीं पहुंच पाई। इस घटना ने दशरथ मांझी के भीतर से झकझोर दिया।
उन्होंने अपना निर्णय लिया कि वह पहाड़ को काटकर छोटा कर देंगे ताकि गाँव के लोग आसानी से अस्पताल तक पहुंच सकें। मांझी ने एक चीज के लिए सबसे मुश्किल परिश्रम किया और वह था पहाड़ का कटाव।
दशरथ मांझी की यह कहानी देश और विदेश में व्यापक प्रसिद्धि प्राप्त की।
उन्हें 2007 में “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया|दशरथ मांझी ने वर्ष 2007 में अपनी आखिरी सांस ली, लेकिन उनका परिश्रम और समर्पण आज भी लोगों को प्रेरित करता है।